प्रयागराज, मोहम्मद मोईन। उत्तर प्रदेश के प्रयागराज से एक चौंकाने वाली खबर सामने आई है जो हैरान भी करती है और सीख भी देती है. कोरोना के मुश्किल दौर में हंसाती और गुदगुदाती है तो साथ ही कुछ सोचने पर भी मजबूर करती है. यह खबर संगम नगरी प्रयागराज में हुई एक शादी की है. ये शादी भी दूसरी आम शादियों की तरह ही हुई. मंडप सजा, दूल्हा-दुल्हन तैयार हुए, पंडित जी ने मंत्र पढ़े, अग्नि को साक्षी मानकर फेरे हुए. जमकर नाच-गाना हुआ, दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ ही पूरे गांव ने दावत भी उड़ाई, लेकिन इसके बावजूद यह शादी हर तरफ चर्चा का सबब बनी हुई है. आखिर क्या खास है इस शादी में और यह अनूठी शादी किस तरह की सीख व सबक देती है...चलिए आपको बताते हैं.


प्रयागराज शहर से करीब 30 किलोमीटर दूर घूरपुर इलाके का भैदपुर गांव. खूबसूरत पहाड़ियों से घिरे इस गांव में अजय देवगन, सैफ अली खान और करीना कपूर की हिट फिल्म ओमकारा की शूटिंग हो चुकी है. बहरहाल, इस गांव में मंगलवार की शाम को एक बारात आई. ये बारात रेलवे के रिटायर्ड कर्मचारी 90 साल के शिव मोहन पाल के घर से निकली और गांव में घूमते हुए वापस उन्ही के घर आ गई. इसके बाद शुरू हुई शादी की रस्में. सबसे पहले महिलाओं ने मंगल गीत गाए. पंडित जी ने मंत्र पढ़े. मंत्रोच्चार के बाद सात फेरे हुए. लोगों ने 32 साल के दूल्हे राजा पंचराज को बधाई दी. इसके बाद पूरे गांव की दावत हुई. दावत के लिए टेंट और कनात के भी इंतजाम हुए थे. मेहमानों को खाने में कई तरह के व्यंजन परोसे गए. दावत के बाद एक बार फिर से नाच-गाने का दौर शुरू हुआ, जो देर रात तक चलता रहा. इस शादी में छोटी से लेकर बड़ी तक हर वह रस्म अदा की गई, जो दूसरी शादियों में होती है. जो कोई भी इस शादी में शामिल हुआ, वह इस मौके को यादगार और कभी न भूलने वाला बताता रहा.



आप सोच रहे होंगे, जब सारी रस्में दूसरी आम शादियों की तरह हुईं तो प्रयागराज की इस शादी में खास क्या हुआ. क्यों हर तरफ इस शादी के चर्चे हो रहे हैं. बेशक यह शादी भी दूसरी आम शादियों की तरह ही थी, सिवाय दुल्हन के. इस अनूठी शादी में दुल्हन कोई लड़की नहीं थी. दो लड़के भी आपस में शादी नहीं कर रहे थे. फिर ऐसे में सवाल यह उठता है कि 32 साल के दूल्हे पंचराज ने फेरे किसके साथ लिए. उसकी शादी आखिरकार किसके साथ हुई. शादी का लाल जोड़ा किसे पहनाया गया. सवाल उठना लाजिमी भी है कि जब शादी हुई, फेरे हुए, सारी रस्में अदा हुईं. दुल्हन कोई लड़की या महिला नहीं. कोई लड़का भी नहीं तो दूल्हे के बगल लाल जोड़े में आखिरकार कौन था. तो चलिए हम आपको बताते हैं कि बुजुर्ग शिव मोहन पाल ने अपने 8वें नंबर के बेटे पंचराज की शादी लकड़ी और कागज से तैयार किये गए एक पुतले से कराई है.



चलिए, यह सस्पेंस तो खत्म हुआ कि यह शादी अलग क्यों हैं, क्योंकि इसमें सभी रस्में किसी दुल्हन के बजाय एक पुतले के साथ कराई गई हैं. लेकिन अब सवाल यह उठता है कि रेलवे से रिटायर्ड हुए बुजुर्ग शिव मोहन ने अपने हट्टे-कट्टे और स्वस्थ बेटे पंचराज की शादी आखिर एक पुतले के साथ क्यों कराई. वह परिवार के लिए कोई बहू क्यों नहीं लाए. जिस पुतले के साथ शादी कराई, उसे बाद में तालाब में क्यों विसर्जित करा दिया गया. दरअसल, शिव मोहन के 9 बेटे और तीन बेटियां हैं. उन्होंने अपने सभी बच्चों की शादी वक्त पर कर दी थी, सिवाय 8वें नंबर के पंचराज के.



शिव मोहन खुद मास्टर डिग्री लिए हुए हैं. पढ़ाई की वजह से ही उन्हें सरकारी नौकरी मिली थी. उन्होंने अपने सभी बच्चों को बेहतर ढंग से पढ़ाया भी. लेकिन 8वें नंबर का बेटा पंचराज उनकी लाख कोशिशों के बावजूद कभी स्कूल नहीं गया. वह हमेशा पढ़ाई से जी चुराता था. स्कूल जाने के बजाय दोस्तों के साथ खेला करता था. पढ़ने के लिए कहने पर रोता या बहानेबाजी करता रहता था. अनपढ़ होने की वजह से आज उसके पास कोई रोजगार भी नहीं है. वह घर में पले हुए जानवरों को चराता है. शिव मोहन को इसका काफी मलाल है. वह बेटे पंचराज के बिलकुल न पढ़ने और उसके बेरोजगार होने की वजह से काफी दुखी रहते हैं. बेटे की लापरवाही और नालायकी की वजह से ही उन्होंने उसका ब्याह नहीं कराने का फैसला लिया था. उनका मानना था कि अनपढ़ और बेरोजगार पंचराज के साथ शादी कर कोई लड़की जीवन भर खुश नहीं रह सकेगी. उन्हें अपने बेटे की नहीं, बल्कि दूसरे की बेटियों की ज्यादा फिक्र थी, इसीलिये वह किसी लड़की की जिंदगी खराब नहीं करना चाहते थे.



शिव मोहन ने पुतले के साथ बेटे पंचराज की शादी कराकर उसे उसकी गलती का एहसास कराया तो साथ ही समाज को यह संदेश भी दिया कि बेटियां अनपढ़, गंवार व निठल्ले बेरोजगारों के साथ कभी विदा नहीं करनी चाहिए, क्योंकि ऐसा होने पर उनका पूरा जीवन नरक सा हो जाता है. शिव मोहन ने बेटे पंचराज को सबक तो सिखाया लेकिन एक पिता होने के नाते उन्हें हमेशा इस बात का एहसास होता रहा कि अगर पंचराज की शादी नहीं हुई तो हिन्दू रीति रिवाजों के मुताबिक देहांत होने पर उसकी तेरहवीं नहीं हो सकेगी. शिव मोहन खुद 90 साल के हो चुके हैं. उम्र के आखिरी पायदान पर हैं. ऐसे में वह अपने जीते जी पंचराज की शादी करा देना चाहते थे. किसी लड़की की जिंदगी से खिलवाड़ नहीं कराना चाहते थे, इसीलिये पुतले के साथ बेटे की प्रतीकात्मक शादी कराई. शादी के बाद पंचराज को अपनी गलती का एहसास हुआ, इसलिये उसके मुंह से अल्फाज नहीं निकल रहे थे.



बुजुर्ग शिव मोहन का यह फैसला स्वार्थी हो रहे समाज के लिए सीख भी है नसीहत भी. उन्होंने खुद अपने बेटे का घर नहीं बसाने की कुर्बानी दी है तो साथ ही बेटियों के साथ खड़े होकर उनका हौसला भी बढ़ाया है. उन्होंने यह संदेश दिया है कि अपनी खुशी के लिए दूसरों का हक मारना बेहद आसान है, लेकिन दूसरों को मुसीबत में पड़ने से बचाने के लिए अपनी खुशियां और इच्छाओं की कुर्बानी देना भी बहुत मुश्किल नहीं है.


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