सवा सौ साल से कृष्ण जन्म की बधाइयां गाता आ रहा है ये मुस्लिम परिवार, पढ़ें- पूरी खबर
मथुरा के कलाकार खुदाबख्श का परिवार पिछली सात पीढ़ियों ने कान्हा के जन्म की बधाई गा रहा है। भगवान की सारी लीलाओं का बधाइयों में इस तरह वर्णन करते हैं कि मानो उन्हें भगवान की हर एक लीला कंटस्थ है।
मथुरा, एजेंसी। कृष्ण भक्ति में लीन एक मुस्लिम परिवार ब्रज में हिन्दू-मुस्लिम सांस्कृतिक एकता की अनूठी मिसाल पेश कर रहा है। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर गोकुल में होने वाले नन्दोत्सव में यह परिवार आठ पीढ़ियों से लगातार बधाइयां गाता आ रहा है।
रविवार को इस परिवार के वंशजों - अकील, अनीश, अबरार, आमिर, गोलू आदि ने गोकुल के नन्दभवन में नन्दोत्सव के आयोजन के दौरान सुबह से दोपहर तक लगातार बधाइयां गा-बजाकर वहां पहुंचे देश-विदेश के श्रद्धालुओं को अपनी श्रद्धा व भक्ति से अभिभूत कर दिया।
मथुरा के कलाकार खुदाबख्श का परिवार पिछली सात पीढ़ियों ने कान्हा के जन्म की बधाई गा रहा है। भगवान की सारी लीलाओं का बधाइयों में इस तरह वर्णन करते हैं कि मानो उन्हें भगवान की हर एक लीला कंटस्थ है।
खुदाबख्श मथुरा में यमुनापार के रामनगर में रहते हैं। वह एक अरसे से नंदोत्सव में कान्हा के जन्म की बधाई गाते हैं। उनके साथ परिवार के अकील खां, तुफैली खां और शकील भी रहते हैं। 16 लोगों का एक पूरा ग्रुप है। उन्होंने बताया कि उनके पूर्वज नंदभवन गोकुल में सात पीढ़ियों से शहनाई, नौहवत बजाते चले आ रहे हैं।
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर रात 12 बजे से एक बजे तक ढोल नगाड़ा बजाते हैं और 'स्वागतम् कृष्णा' गायन करते हैं। अगले दिन गोकुल में सुबह नौ बजे से नंद भवन से लेकर नंद चौक में बधाई गायन, शहनाई व नौहवत वादन करते हैं। इन लोगों का कहना है कि कान्हा के जन्म की बधाई गायन का सिलसिला कई पीढ़ियों से चल रहा है।
गोकुल पहुंच कर पारम्परिक वाद्ययंत्र नगाड़ा, ढोलक, मजीरा, शहनाई, खड़ताल, मटका व नौहबत बजाते हैं और श्रीकृष्ण जन्म की बधाइयां गाते हैं। ऐसे में जो कुछ भी भक्तजन भेंट स्वरूप उन्हें देते हैं, वही पारितोषिक के रूप में प्रसाद समझकर ग्रहण कर लेते हैं। मंदिर प्रशासन अथवा किसी और से कोई मांग नहीं करते।
खुदाबख्श ने बताया, 'अपने दादा की सीख पर चलते हुए ही वे लोग गोकुल के अलावा गौड़ीय सम्प्रदाय के मंदिरों, वृन्दावन में रंगजी मंदिर के आयोजनों, मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मस्थान के कार्यक्रमों, राधाष्टमी पर उनके मूल गांव रावल के कार्यक्रमों में भी भजन आदि भक्ति संगीत गाते व बजाते हैं। इससे उन्हें अलौकिक आनन्द की अनुभूति होती है।'