'चेहल्लुम के जुलूस में कोई भी नई चीज न शामिल हो' मौलाना सैफ अब्बास ने दी नसीहत
Chehlum 2024: चेहल्लुम पर्व इस्लाम धर्म का एक महत्वपूर्ण त्योहार है. इस दिन हजरत इमाम हुसैन की बहादुरी और वीरता की दास्तान सुनी और सुनाई जाती है. कई जगहों पर जुलूस भी निकाले जाते हैं.
Maulana Saif Abbas Chehlum 2024: पिछले कई सालों से चेहल्लुम के जुलूस में नई नई चीजों को शरीक करके जुलूस ए आजदारी के तकद्दुस और एहतेराम को कम करने की कोशिश की जा रही थी. उसको देखते हुए शहर के कुछ नौजवानों ने उलमा से राबता किया और इस बात पर अफसोस का इजहार किया के लखनऊ की आजदारी जो पूरी दुनिया में मशहूर है उसको खराब किया जा रहा है.
इस सिलसिले में नौजवानों ने आयतुल्लाह हमीदुल हसन रूहुल, मिल्लत मौलाना आगा रूही, मौलाना कल्बे जवाद, मौलाना सैफ अब्बास, मौलाना फरीदुल हसन से मुलाकात की और तमाम उलमा ने इस बात पर इत्तेफाक किया के चेहल्लुम के जुलूस में कोई नई चीज को न शरीक किया जाए और खदीमी रवायात से जुलूस को बरामद किया जाए. लिहाजा मोमिनीन जुलूस के तकद्दुस को कायम रखें और जुलूस में ख्वातीन जियारत की गरज से तशरीफ लाएं. उलमा ने अपनी तहरीर देकर नौजवानों के साथ इत्तेफाक किया.
चेहल्लुम में नई चीजें न जोड़ने की दी नसीहत
मौलाना सैफ अब्बास ने कहा, ''हमारे कौम के जो नौजवान हैं, उन्होंने कोशिश की है. एक हफ्ते पहले से चल रही थी उसी की कड़ी में पहले अंजुमन ए मातमी की मीटिंग की थी, फिर अपने तमाम बुजुर्गों उलमा से मुलाकात की. क्योंकि इधर कुछ सालों से चेहल्लुम के जुलूस के अंदर कुछ ऐसी चीजें शामिल की जा रही हैं, जिससे जुलूस की जो शान है, जो अजमत है, जो तकद्दुस है वो कम हो रहा है. तो उन नौजवानों ने अपनी इस बेकारी को अंजुमनों के सामने भी रखा, और उसके बाद उलमा के सामने भी रखा कि इसको रोकना चाहिए. इसको कम करना चाहिए. तो वहीं उलमा ने लिखित तौर पर सबको तहरीर लिखकर दी और लोगों से अपील की गई है कि जो पुराना, सैकड़ों सालों से हमारे जुलूस चले आ रहे हैं, उसको उसी तरह से जुलूस उठाए जाएं. उसमें जो नई चीजें जोड़ी जा रही हैं, उनको खत्म किया जाए.''
पहले ऐसे होते थे चेहल्लुम के जुलूस
मौलाना सैफ अब्बास ने आगे कहा, ''जुलूस जो है शहादती इमाम हुसैन से मुत्तलिक है. ये कोई त्योहार का जुलूस नहीं है, बल्कि गम का जुलूस है. इस दौरान इंसान का आंख और दिल दोनों ही रोए. तो पहले के जुलूस में ताबूत होती थी, झुनझुना, गहवारा और जरी होती थी. ऐसे में गम महसूस होता था, लेकिन अब के जुलूस में फोटो, झंडे, और दूसरी चीजें दाखिल कर दी गई हैं. तो अलम और ताबूत को देखकर आपका दिल गमगीन होगा, फोटो और झंडे को देखकर तो आपका दिल गमगीन नहीं होगा.''
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