यूपी उपचुनाव: कैसे लगेगी जंयत चौधरी की नैया पार, BJP के साथ राह मुश्किल! एक साथ कई दिग्गजों ने चल बड़ा दांव
मीरापुर उपचुनाव आरएलडी प्रमुख जयंत चौधरी के लिए अग्नि परीक्षा की तरह होगा. बीजेपी के साथ भी उनकी राह आसान नहीं होगी. इस बार कई दिग्गजों ने अपने उम्मीदवार उतारे हैं.
Meerapur ByElection 2024: यूपी में होने वाले उपचुनाव को लेकर बिगुल बज चुका है. यूं तो सभी नौ सीट पर होने वाला चुनाव बेहद दिलचस्प है, लेकिन सबकी नजरें उस विधानसभा सीट पर टिकी हैं, जो बीजेपी ने लोकदल के लिए छोड़ी है. इस सीट के समीकरण को समझना किसी भी राजनीतिक पंडित के लिए आसान नहीं है. लेकिन अभी तक के आंकड़ों की बात करें और सियासी माहौल को समझे तो यहां होने वाला चुनाव बेहद दिलचस्प होगा. रालोद मुखिया और केन्द्रीय राज्यमंत्री जयंत चौधरी की अग्नि परीक्षा होगी तो अखिलेश भी कम नहीं हैं और सांसद चन्द्रशेखर आजाद के अलावा बसपा सुप्रीमो भी पूरा दंभ भरेंगी. इ
मीरापुर विधानसभा सीट पर चुनाव के नतीजे क्या होंगे. कौन यहां जीतेगा. ये सवाल सभी के मन में उमड़ रहा है. पश्चिमी यूपी की इस महत्वपूर्ण सीट पर हर सियासी पंडित की नजरें टिकी हैं. चुनावी तारीखों का एलान हो चुका है, लेकिन सबसे दिलचस्प बात ये है कि सबसे पहले सांसद चन्द्रशेखर आजाद की आजाद समाज पार्टी ने यहां जाहिद हसन को अपना प्रत्याशी घोषित कर सबसे पहले प्रत्याशी घोषित करने में बाजी मारी, इसके बाद बसपा सुप्रीमो मायावती ने भी अपना प्रत्याशी घोषित किया और शाह नजर को मैदान में उतारा.
हालांकि चुनावी तारीखों का एलान होने के बावजूद आरएलडी और इंडिया गठबंधन पीछे चल रहें हैं. बीजेपी ने गठबंधन धर्म का पालन करते हुए ये सीट आरएलडी को सौंप दी है, जबकि आरएलडी ने अभी नाम फाइनल नहीं किया है. इंडिया गठबंधन में अभी ये तस्वीर साफ नहीं है कि आखिर ये सीट कांग्रेस को मिलेगी या फिर सपा अपने पास रखेगी. पिछली बार अखिलेश यादव और जयंत चौधरी साथ थे इस बार राह अलग-अलग हैं.
2012 में अस्तित्व में आई थी मीरापुर सीट
मुजफ्फरनगर जिले में आने वाली मीरापुर सीट का राजनीतिक इतिहास समझना भी बेहद जरूरी है. मोरना विधानसभा से जानी जाने वाली विधानसभा सीट अब मीरापुर के नाम से जानी जाती है और 2012 में अस्तित्व में आई थी. 2012 के चुनाव में बसपा का हाथी सबको कुचलता हुआ आगे निकल गया और मौलाना जमील यहां से पहली बार विधायक बने. इसके बाद 2017 में विधानसभा चुनाव हुआ और इस बार यहां से बीजेपी के अवतार सिंह भड़ाना विधायक बने.
बीजेपी के जीत की चर्चा हर तरह हुई क्योंकि वो मात्र 193 वोट से ही चुनाव जीते थे. कांग्रेस सपा गठबंधन के प्रत्याशी लियाकत अली ने अवतार भड़ाना से पूरा मुकाबला किया, लेकिन मामूली अंतर से हार गए. 2022 के विधानसभा चुनाव में सपा रालोद गठबंधन ने सबको धूल चटा दी और चंदन चौहान यहां से करीब 27 हजार वोटों से चुनाव जीते, जो जीत का बड़ा आंकड़ा था. चंदन चौहान के लोकसभा सांसद बनने के बाद मीरापुर में उपचुनाव हो रहा है.
मुस्लिम-दलित वोटों का बंटवारा
मीरापुर सीट के समीकरण हर पल बदलेंगे, लेकिन फिलहाल क्या समीकरण हैं और किसका पलडा भारी है, ये जानना भी बेहद जरूरी है. इसके लिए हमने वरिष्ठ पत्रकारों से बातचीत की तो चौकाने वाली बातें सामने आईं हैं. वरिष्ठ पत्रकार पुष्पेन्द्र शर्मा का कहना है कि हरियाणा में नायब सिंह सैनी को फिर से मुख्यमंत्री बनाकर बीजेपी ने जो दाव चला है उसका असर मीरापुर पर पड़ेगा. खतौली उपचुनाव में सैनी सहित कई बिरादरी की वोटो की नाराजगी बीजेपी को भारी पड़ी थी और रालोद के मदन भैया चुनाव जीत गए थे, लेकिन बीजेपी ने ये दांव चलकर ओबीसी वोटो को संभाला है.
बीजेपी ने ये सीट आरएलडी को दी है. अब यदि दलित और मुस्लिम वोटों में बंटवारा होता है तो सीधा फायदा आरएलडी को मिलेगा और यदि वोट नहीं बंटी तो फिर मुकाबला कड़ा भी होगा और दिलचस्प भी. मायावती और चन्द्रशेखर आजाद जिस तरीके से अपने प्रत्याशी उतार चुके हैं इससे अंदाजा लगाइए कि वो चुनाव को किस तरीके से लड़ेंगे. साफ है जयंत चौधरी की अग्नि परीक्षा होगी और वो कैसे नैया पार लगाएंगे ये भी देखना होगा.
RLD-RLD गठबंधन के लिए सीट आसान नहीं
वरिष्ठ पत्रकार हरि शंकर जोशी ने ये बात कहकर चौंका दिया कि मीरापुर में आरएलडी और बीजेपी गठबंधन के लिए राह आसान नहीं है. लोकसभा चुनाव की तर्ज पर यदि ये मीरापुर उपचुनाव हुआ तो फिर मुकाबला रोमांचक होगा. अखिलेश यादव पूरी कोशिश करेंगे कि पश्चिमी यूपी में लोकसभा चुनाव के दौरान जो कास्ट कॉम्बिनेशन बैठाया उसी तर्ज पर ये चुनाव लड़ा जाए. अखिलेश और राहुल गांधी बड़ा दांव चलेंगे.
अब यदि मुस्लिम-दलित नहीं बंटे और लोकसभा चुनाव की तर्ज पर एक पाले में गए तो फिर कुछ भी इस सीट पर हो सकता है. पश्चिम में सपा-कांग्रेस ने नया समीकरण बनाया है और वो लोकसभा में पास भी हुआ है, अब इसी समीकरण पर अखिलेश यादव और राहुल गांधी चुनाव लड़ेंगे. इंडिया गठबंधन का जो भी प्रत्याशी होगा वो भी बहुत कुछ तय करेगा, आरएलडी किसे मैदान में उतारेगी ये भी देखना दिलचस्प होगा.
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बहुत जटिल हैं मीरापुर के सियासी हालात
मीरापुर को लेकर पत्रकारों से अपने-अपने तर्क हैं. मीरापुर का सियासी मौसम क्या कह रहा है, इस पर जब हमने वरिष्ठ पत्रकार संतोष शुक्ला से बात की तो उन्होंने कहा कि मीरापुर के सियासी हालात बहुत जटिल हैं. सांसद चन्द्रशेखर और बसपा सुप्रीमो ने मुस्लिम कार्ड खेलकर सपा कांग्रेस की मुश्किल बढ़ा दी हैं. इससे चुनावी अखाड़ा दिलचस्प मोड पर है.
कांग्रेस और सपा असमंजस में हैं कि किसे सीट दी जाए, जबकि रालोद भी अभी तक अपना प्रत्याशी तय नहीं कर पाई है. ये चुनाव दो गठबंधनों के बीच रहेगा या फिर चेहरों पर वोट बंटेंगी ये भी देखना होगा. ये भी बेहद दिलचस्प होगा कि मुस्लिम और दलित लोकसभा चुनाव की तरह ही वोट करेंगे या फिर इधर-उधर बटेंगे. अभी दो बड़े दलों के प्रत्याशी आने बाकी हैं तब और तस्वीर साफ होगी कि मीरापुर की रणभूमि में क्या होगा, लेकिन मुकाबला बड़ा कड़ा होने के आसार दिख रहें हैं.