मेरठ: सुनने में कुछ अजीब लगता है लेकिन मेरठ में एक संस्था पांच रुपए में भरपेट भोजन उपलब्ध करवा रही है. 'सब की रसोई' नाम की ये संस्था पिछले साढ़े तीन साल से इस नेक कार्य में जुटी है. यहां हर रोज काउंटर पर इतनी भीड़ लगती है मानों कोई मेला लग गया हो. यहां कोई छोटा या बड़ा नहीं जिसे भूख लगे वह खाना खाता है. सभी यहां के स्वाद के दीवाने हैं. इस संस्था की समाजसेवा लॉकडाउन के दौरान भी जारी रही. लॉकडाउन के दौरान भी यहां रोज़ाना दो हज़ार लोगों को भोजन के पैकेट बांटे जाते थे.


महंगाई बढ़ने से हौसले नहीं डिगे


महंगाई चाहे जितनी बढ़े लेकिन इस संस्था में भोजन का रेट पिछले साढ़े तीन साल में पांच रुपए से छह रुपए नहीं हुआ. आज के युग में जहां पांच रुपए में पांच टॉफी मिल जाए तो बड़ी बात है. वहीं, मेरठ की एक संस्था सभी को पांच रुपए में भरपेट भोजन उपलब्ध करवाती है. इस संस्था का नाम है सब की रसोईं. सब की रसोई में रोज़ाना दोपहर में पांच रुपए में भोजन करने के लिए रिक्शेवाले, ऑटोवालों का जमावड़ा लग जाता है.


मेले जैसी भीड़ जुटती है


दूर से आप अगर सब की रसोई के काउंटर को देखेंगे तो लगेगा कि, क्या यहां कोई मेला चल रहा है. लेकिन हर रोज़ यहां शुद्ध भोजन की चाह में हर कोई खिंचा चला जाता है. दाम भी कम और भोजन भी शुद्ध. कुछ लोग तो यहां के स्वाद के ऐसे दीवाने हैं कि रोज़ाना दोपहर का भोजन यहीं करते हैं.


यहां का खाना इतना स्वादिष्ट है कि, कई बार तो कार सवार भी यहां पांच रुपए में भोजन करते देखे जा सकते हैं. सब की रसोई के ग्यारह काउंटर अलग अलग क्षेत्रों में खोले गए हैं. संस्था के लोगों का दावा है कि रोज़ाना यहां हज़ारों लोगों को भोजन कराया जाता है.


लॉकडाउन में भूखों को मिला भरपेट भोजन


यही नहीं लॉकडाउन जैसी विपरीत परिस्थितियों के दौरान भी ज़रुरतमंदों के लिए भोजन पैकेट्स ये संस्था उपलब्ध करवाती रही. संस्था को चलाने वाले डॉक्टर एसके सूरी का कहना है कि वो आजीवन ऐसे ही लोगों को पांच रुपए में भोजन करवाते रहेंगे चाहे महंगाई कितनी ही बढ़ जाए.


11 जगह चल रहे हैं काउंटर


वर्तमान में सब की रसोई मेरठ के बच्चा पार्क, बेगमपुल, मेडिकल कॉलेज, जेलजुंगी, दिल्ली रोड सहित कुल ग्यारह जगहों पर चलाई जा रही है. इन ग्यारह जगहों के साथ सब की रसोई रोज़ाना हज़ारों लोगों को पांच रुपए में भोजन उपलब्ध करवाती है. डॉक्टर एसके सूरी का कहना है कि एक काउंटर पर रोज़ाना चार सौ लोगों को भोजन कराया जाता है.


कभी कढ़ी-चावल, राज़मा-चावल तो कभी दाल-चावल, यहां खाने का मेन्यू भी हर रोज़ बदला जाता है. सब की रसोई में लोगों को रोज़गार भी दिया गया है. बाकयदा सभी एम्पलॉइज़ को आईकार्ड भी दिया गया है. यहां काम करने वाले लोग भी बेहद ख़ुश रहते हैं कि, वो ऐसी संस्था से जुड़े हैं जो इतना नेक कार्य कर रही है.


अपनी नानी और पीएम मोदी को मानते हैं प्रेरण स्रोत


प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और अपनी नानी को प्रेरणास्रोत मानने वाले डॉक्टर एसके सूरी का कहना है कि, किसी भूखे को खाना खिलाने से बड़ा पुण्य हो नहीं सकता. कोई भूखा न रहे, सबको दो वक्त का भरपेट भोजन मिल जाए, इसी सोच के साथ ‘सब की रसोई की शुरुआत की गई.


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