Meerut News: मेरठ में 20 नवंबर को कबूतरबाजी का मुकाबला होने जा रहा है. ये प्रतियोगिता दिल्ली और मेरठ के रहने वाले दो काबूतरबाजों के बीच आयोजित होने जा रही है. मुकाबले में जिसमे 542 कबूतर उड़ेंगे. इस उड़ान की हर तरफ चर्चा है. अब तक लाखों रुपए कबूतरों की डाइट पर खर्च हो चुके हैं. दोनों की कबूतरबाजों के शागिर्द रात दिन तैयारियों में जुटे है. इस उड़ान में मद्रासी और पंजाबी नस्ल के कबूतर उड़ान भरेंगे. दावा किया जा रहा है कि मद्रासी और पंजाबी नस्ल के 271-271 कबूतरों की ये अब तक की देश की सबसे बड़ी उड़ान है.
20 नवंबर को होगी प्रतियोगिता, प्रतिनिधि मंडल होंगे शामिल
जिन दो बड़े कबूतरबाजों में बड़ा मुकाबला होने जा रहा है, उनमें दिल्ली के जाहगीरपुरी के रहने वाले नीटा उस्ताद और मेरठ के शाहपीरगेट इमलियान रहने वाले खलीफा हाजी राशिद शामिल हैं. दोनों की गिनती बड़े कबूतरबाजों में होती है .20 नवंबर को दोनों के बीच कड़ा मुकाबला होगा. दोनों ही कबूतरबाज पिछले छह महीने से तैयारी में जुटे हैं. उड़ान के लिए कबूतरों को तैयार किया जा रहा है. मेरठ से 10 सदस्यीय प्रतिनिधि मंडल दिल्ली जाएगा और दिल्ली से भी 10 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल मेरठ आएगा.
ऐसे होगा विजेताओं टीम की घोषणा
कबूतरबाजी प्रतियोगिता में दोनों तरफ से 542 कबूतर उड़ान भरेंगे. मेरठ में खलीफा हाजी राशिद के घर की छत से 271 कबूतर और दिल्ली के नीटा उस्ताद के यहां से भी 271 कबूतर उड़ेंगे. सोमवार को सुबह साढ़े छह से सात बजे तक कबूतर उड़ाए जाएंगे. इसके बाद पांच घंटे का बॉर्डर होगा. यानी जो कबूतर 12 बजे से पहले आसमान से उतरकर घर की छत पर बैठ जाएगा वो उड़ान से बाहर हो जाएगा और जो 12 कबूतर बजे के बाद वापिस घर की छत पर बैठेगा उसके घंटे जोड़ दिए जाएंगे.
लेकिन शाम सात बजे तक ही जो कबूतर घर की छत पर बैठेगा उसी के घंटे काउंट किए जाएंगे. शाम 7 बजे के बाद आने वाले कबूतर इस उड़ान से बाहर हो जाएंगे. सुबह सात बजे से उड़ान भरने वाले जो भी कबूतर शाम 7 बजे बजे तक घर वापिस आएंगे उन कबूतरों की उड़ान के घंटे जोड़कर विजेता का एलान कर दिया जाएगा.
एक किलों मिठाई के लिए होगा कबूरबाजों के बीच मुकाबला
कबूतरों के बीच होने वाला मुकाबला मात्र एक किलों मिठाई के लिए होगा. मेरठ के कबूतरबाज खलीफा हाजी राशिद उड़ान जीत जाते हैं तो दिल्ली से एक किलों मिठाई मेरठ आएगी. दिल्ली के नीटा उस्ताद जीत जाते हैं तो मेरठ की मशहूर मिठाई दिल्ली जाएगी. हालांकि कई जगह लाखों की उड़ान होती है, लेकिन इन दोनों कबूतरबाजों ने अपने अपने शोक के लिए ये उड़ान मात्र एक किलों मिठाई की लगाई है.
मिस्र में शुरू हुआ था कबूतरों को पालने का सिलसिला
कबूतरबाजी का शोक बड़ा पुराना है. मिस्र में करीब 3000 साल पहले से कबूतरबाजी की शुरुआत हुई थी, लेकिन अब कबूतरबाजी का शोक पूरी दुनिया में है. कबूतरों को संदेश लाने ले जाने के लिए भी इस्तेमाल किया जाता था...कबूतरों को शांति का दूत भी कहा जाता है और कई मौके पर कबूतर उड़ाने की परंपरा है.