Uttar Pradesh News: 10 मई 1857 को उत्तर प्रदेश के मेरठ से शुरू हुई क्रांति में बागपत जनपद के बिजरौल गांव के रहने वाले बाबा शाहमल ने भी बड़ी भूमिका निभाई थी. क्रांतिकारी बाबा शाहमल के नेतृत्व में छह हजार किसानों की फौज ने बल्लम और भालों जैसे देशी हथियारों से ही अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिए थे. बाबा शाहमल ने बड़ौत तहसील पर हमला बोलकर सरकारी खजाना लूट लिया था. अंतिम मुगल शासक बहादुर शाह जफर ने उन्हें बड़ौत क्षेत्र का सूबेदार नियुक्त किया. बाबा शाहमल ने दो बार यमुना का पुल भी तोड़ दिया था जिससे अंग्रेज दिल्ली न जा सकें. बाबा शाहमल लड़ते-लड़ते बड़का गांव के जंगल में शहीद हो गए थे. उनकी बहादुरी के किस्से आज भी सुनाए जाते हैं.
बनाई थी 6 हजार किसानों की फौज
स्वतंत्रता के लिए उठी चिंगारी की आग बागपत और बड़ौत क्षेत्र में भी फैली. बागपत के बिजरौल गांव के रहने वाले क्रांतिकारी बाबा शाहमल के नेतृत्व में छह हजार किसानों फौज बनाई गई थी, जो अंग्रेजों से लड़ सके. बाबा शाहमल ने अंग्रेजी सेना के खिलाफ बड़ी लड़ाई लड़ी. बाबा शाहमल ने वीरता दिखाते हुए बड़ौत तहसील पर हमला बोलकर सरकारी खजाना लूट लिया था और अंग्रेज अफसरों को मार भगाया था. भारत में क्रांतिकारियों की अगुवाई करने वाले अंतिम मुगल शासक बहादुर शाह जफर ने दिल्ली दरबार से शाहमल को बड़ौत क्षेत्र का सूबेदार नियुक्त किया.
अंग्रेजों को रोकने के लिए उड़ाया पुल
इसके बाद अंग्रेजों को रसद पहुंचाने के लिए प्रयोग किया जाने वाले बागपत में यमुना किनारे बने नाव के पुल को दो बार बारूद से उड़ा दिया था ताकि अंग्रेज दिल्ली न जा सकें. अंग्रेजी हुकूमत के दांत खट्टे करने वाले बाबा शाहमल पर 18 जुलाई 1857 में बड़का गांव के जंगल में हमला बोल दिया. एटोनॉकी नामक फ्रांसीसी सैनिक के हमले में बाबा शहीद हो गए. अंग्रेज कमांडर बिलियम द्वारा लिखी गई ‘आंखों देखी’ पुस्तक में इस बात का जिक्र है कि अंग्रेजी फौज के सैनिक घंटों तक शाहमल के शव से भी डरते रहे. शहादत स्थल पर आए हुक्मरानों ने अपने सैनिकों का यह व्यवहार देख उन पर ही गोलियां बरसा दी थीं.
32 क्रांतिकारियों को दी गई थी फांसी
यही नहीं अंग्रेजी सेना को जब इस बात का पता चला कि बाबा शाहमल के गांव बिजरौल में उनके खिलाफ रणनीति बनाई जा रही है जिसके बाद अंग्रेजी सेना ने 32 क्रांतिकारियों को बरगद के पेड़ पर एक साथ फांसी पर लटका दिया था. किसी गद्दार ने उन्हें यह जानकारी दे दी थी. बिजरौल गांव में वह पेड़ आज भी क्रांतिकारियों के उस जज्बे का गवाह है, जहां एक साथ मोहनलाल, दिलसुख, भाग मल, राज रूप, धर्मा, दाताराम, सुंदरा, डोला, बिंद्रा, गरीब, देशराज, राजाराम, रूपराम, केबल, सालक, रामधन, इज्जत, थूल्ला, दिलसुख, डाली, माइबक्स, दीवाना, मनोहर आदि 32 क्रांतिकारियों को अंग्रेजी सरकार ने फांसी पर लटकाया था.
बाबा शाहमल के पड़पौत्र ने क्या बताया
बाबा शाहमल के पड़पौत्र यशपाल चौधरी ने बताया, बाबा शाहमल हमारे बाबा थे और बिजरौल में पैदा हुए थे. उनका बहुत बड़ा परिवार है. उन्होंने संपूर्णानंद जी से प्रेरणा लेकर और दयानंद जी के साथ देश की आजादी के लिए काम किया. देश की आजादी के लिए उन्होंने 6000 सैनिकों की फौज बनाई जिसमें किसान थे. किसानों की फौज के पास बल्लम भाले जैसे हथियार और अंग्रेजी फौज के पास में गोले बारूद थे. उन्होंने लड़ते-लड़ते यमुना नदी का नाव का पुल तोड़ दिया जिससे दिल्ली से अंग्रेजों का संपर्क टूट जाए. मेरठ में 1857 का गदर शुरू हुआ था. बसौद में 8000 मन अनाज और हथियार थे. फौज ने उस पर कब्जा कर लिया था.
शव के पास भी जाने से डरते से अंग्रेज
यशपाल ने आगे बताया, बाबा शाहमल बड़का गांव में आमने सामने की लड़ाई में शहीद हो गए थे, लेकिन शहीद होने के बाद भी तीन-चार घंटे किसी भी अंग्रेजी फौज के सैनिक की हिम्मत नहीं पड़ी थी कि उसके शव के पास चले जाएं. शाहमल ने बड़ौत तहसील पर भी कब्जा कर लिया था. बहादुर शाह जफर ने उनको यहां का सदर नियुक्त कर दिया. उसके बाद बिजनौर गांव में उनके साथियों की जो मीटिंग चल रही थी उन 32 लोगों को अंग्रेजों ने बरगद के पेड़ पर फांसी पर लटका दिया था लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि आजतक इतिहास में उनका नाम नहीं है.
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