Kanpur News: ग्लोबल वार्मिंग (Global Warming) को लेकर वैश्विक मंच पर कई बार बढ़ते तापमान को लेकर चिंता जताई जा चुकी है. लेकिन अब ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव जल्दी-जल्दी देखने को मिल रहे हैं. कानपुर के चंद्रशेखर आजाद कृषि विश्वविद्यालय के मौसम वैज्ञानिकों ने पिछले 5 दशक के आंकड़ों को खंगालने के बाद जो बात कही है वह परेशान करने वाली दिखती है. मौसम वैज्ञानिकों की माने तो इस बार मार्च महीने में ही मौसम में बदलाव देखने को मिलने लगेगा.


जलवायु परिवर्तन को लेकर कृषि और मौसम वैज्ञानिकों की ओर से किए गए अध्ययन के अनुसार जलवायु परिवर्तन के असर से इस बार मार्च में ही अधिकतम तापमान 40 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच सकता है. ऐसे में यह तापमान ना तो मनुष्यों के लिए और ना ही खेती-बाड़ी के लिए सही माना जा रहा है.


पिछले 5 दशकों में नहीं देखा गया इतना उतार-चढ़ाव
वैज्ञानिकों की मानें तो इस सीजन की फसलें फोर्स मैच्योरिटी यानी समय से पहले पक जाने का शिकार हो सकती हैं. जिससे फसलों का उत्पादन बुरी तरह प्रभावित हो सकता है. अध्ययन के अनुसार पृथ्वी के तापमान में लगातार हो रही बढ़ोतरी इसकी प्रमुख वजह है. सीएसए विश्वविद्यालय में मौसम के बदलते चक्र को लेकर जो अध्ययन किया है, उसके अनुसार पिछले 5 दशक के इतिहास में मौसम में इतना उतार-चढ़ाव कभी नहीं देखा गया. बदलाव का सबसे ज्यादा असर दिन और रात के तापमान में आने वाला अंतर है जो फसलों के साथ-साथ लोगों के स्वास्थ्य पर असर डाल रहा है.


मौसम विशेषज्ञ डॉक्टर एसएन पांडे के अनुसार सामान्य रूप से दिन और रात के तापमान में 10 से 12 डिग्री का अंतर होना चाहिए, लेकिन पिछले मार्च से लेकर अभी तक ये अंतर 20 से 23 डिग्री तक आ गया है. आशंका है कि ये अंतर अभी और बढ़ सकता है, पिछले वर्ष मार्च में अधिकतम तापमान 39 डिग्री से ज्यादा हो गया था. इस बार इसके 40 डिग्री सेल्सियस को पार करने के अनुमान लगाए जा रहे हैं.


मौसम में देखा गया ये अंतर
मौसम वैज्ञानिक डॉक्टर एसएन पांडे के अनुसार पिछले एक दशक में मौसम के उतार-चढ़ाव के साथ ऋतु के बदलने का ट्रेंड भी देखा गया है. ऋतु समय पर ना आकर या तो पहले आ जा रही है या बाद में और या फिर ऋतु आ ही नहीं रही है. साल 2022-23 के सीजन में समय से बारिश नहीं हुई लेकिन बाद में सामान्य से अधिक बारिश हो गई. इससे किसानों को जबरदस्त नुकसान हुआ. इसी तरह गर्मी में जब तापमान पीक पर होना चाहिए था तब ना होकर पहले और बाद में हुआ. नवंबर का महीना पिछले वर्षों के मुकाबले बहुत गर्म रहा और दिसंबर भी अपेक्षाकृत गर्म रहा लेकिन जनवरी अपेक्षाकृत बहुत अधिक ठंडी रही.इस तरह के ट्रेंड पिछले तीन दशक में देखे गए हैं इस वर्ष भी मौसम में उसी तरह का उतार-चढ़ाव देखा जा रहा है.जो मनुष्य और खेतीबाड़ी के लिए बिल्कुल भी ठीक नहीं कहा जा सकता. 


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