Metro Train in Dehradun: उत्तराखंड (Uttarakhand) में मेट्रो ट्रेन एक सपना जैसा लगने लगा है. चार साल पहले सरकार ने मेट्रो ट्रेन चलाने का ऐलान किया था. मेट्रो के नाम पर करोड़ों रुपये खर्च भी किए गए, लेकिन हकीकत यही है कि मेट्रो के लिए अभी तक एक ईंट भी नहीं लगी है. पिछले चार सालों से उत्तराखंड में मेट्रो के नाम पर केवल बातें की जा रही हैं. ऐसे में मेट्रो प्रोजेक्ट अधर में लटका दिखाई दे रहा है.
गौरतलब है कि साल 2017 में देहरादून मेट्रो प्रोजेक्ट की घोषणा हुई थी. उसी दौरान मेट्रो कॉरपोरेशन का गठन भी हुआ. दिल्ली मेट्रो प्रोजेक्ट में काम कर चुके जितेंद्र त्यागी को कॉरपोरेशन का एमडी बनाया गया. मेट्रो कॉरपोरेशन के गठन को चार साल हो गए हैं, लेकिन इन 4 सालों में अब तक मेट्रो प्रोजेक्ट के नाम पर एक ईंट तक नहीं लग पाई, जबकि प्रोजेक्ट के नाम पर करोड़ों खर्च कर दिए गए हैं. बार बार-प्लान चेंज होने की वजह से आज तक मेट्रो का सपना हकीकत में तब्दील नहीं हो सका है.
मेट्रो कॉरपोरेशन के कार्यालय में इस समय 28 कर्मचारी काम कर रहे हैं. कॉरपोरेशन का कार्यालय भी किराए पर है. उसके बाद कर्मचारियों की सैलरी, ऑफिस किराया समेत अन्य खर्चों पर तकरीबन सरकार हर महीने 55 से 60 लाख खर्च करती है. इसके अलावा मेट्रो के नाम पर अलग-अलग लेटेस्ट टेक्नोलॉजी की आड़ में मंत्री और अधिकारी कई विदेश दौरे भी कर चुके हैं, लेकिन देहरादून में मेट्रो प्रोजेक्ट का रिजल्ट शून्य है.
मेट्रो प्रोजेक्ट की फाइल फिलहाल शासन स्तर पर लटकी है. कई बार प्लान चेंज होने के बाद बार-बार डीपीआर बनाई जाती है. वित्त विभाग उस पर बजट की वजह से रोक लगा देता है. फाइल शासन के चक्कर काट रही है और सरकार बजट पर करोड़ों खर्च कर रही है. पिछले चार सालों से मेट्रो फाइल सचिवालय में घूम रही है. वहीं इसके पीछे राजनीतिक लोगों की कमजोर इच्छा शक्ति और अधिकारियों में दूरदर्शिता की कमी भी साफ तौर पर देखी जा सकती है.
देहरादून में चलेगी मेट्रो नियो!
देहरादून में सबसे पहले मेट्रो लाइट का प्लान तैयार किया गया, उसके बाद रोपवे प्लान तैयार हुआ. अब तय किया गया है कि देहरादून में मेट्रो नियो चलाई जाएगी जो लेटेस्ट टेक्नोलॉजी है. यह फाइल भी अब कैबिनेट की मंजूरी के लिए रुकी हुई है, जबकि कॉरपोरेशन के एमडी का कहना है कि अगर उन्हें शासन स्तर से मंजूरी मिल जाती है तो इस प्रोजेक्ट को 3 साल में पूरा कर देंगे.
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