Mirzapur News: मिर्जापुर (Mirzapur) में स्थित आदिशक्ति जगत जननी मां विंध्यवासिनी (Maa Vindhyavasini) की नवरात्र में नौ रूपों की आराधना की जाती है. छठवे दिन सिंह पर सवार चार भुजा वाली माता "कात्यायनी" के रूप में  पूजन किया जाता है .मां कात्यायनी का स्वरूप अत्यन्त दिव्य और स्वर्ण के समान चमकीला है. यह अपनी प्रिय सवारी सिंह पर विराजमान रहती हैं. इनकी चार भुजायें भक्तों को वरदान देती हैं, इनका एक हाथ अभय मुद्रा में है, तो दूसरा हाथ वरदमुद्रा में है, अन्य हाथों में तलवार तथा कमल का फूल है.


मां का "कात्यायनी" स्वरूप सभी के लिए अराधनीय
प्रत्येक प्राणी  को सदमार्ग पर प्रेरित वाली वाली मां का "कात्यायनी" स्वरूप सभी के लिए अराधनीय है. देवी कात्यायनी अमोघ फलदायिनी हैं इनकी पूजा अर्चना द्वारा सभी संकटों का नाश होता है. मां कात्यायनी दानवों तथा पापियों का नाश करने वाली हैं.देवी कात्यायनी जी के पूजन से भक्त के भीतर शक्ति का संचार होता है. इस दिन साधक का मन आज्ञा चक्र में स्थित रहता है. योग साधना में इस आज्ञा चक्र का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है. साधक का मन आज्ञा चक्र में स्थित होने पर उसे सहजभाव से मां कात्यायनी के दर्शन प्राप्त होते हैं. साधक इस लोक में रहते हुए अलौकिक तेज से युक्त रहता है.


माता कात्यायनी का पूजन दर्शन करने से धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति के साथ ही भक्त, रोग, शोक, संताप से मुक्ति प्राप्त करता है. माता कात्यायनी की आराधना करने से मनचाहा पति और स्त्री की प्राप्ति भी होती है. विन्ध्य और माँ गंगा के तट पर विराजमान माँ विंध्यवासिनी कात्यायनी का दिव्य रूप धारण कर भक्तों का कष्ट दूर करती है. अनादिकाल से आस्था का केंद्र रहे विन्ध्याचल में विन्ध्य पर्वत और पतित  पावनी मां भागीरथी के संगम तट पर श्रीयंत्र पर विराजमान माँ विंध्यवासिनी का छठवे दिन "कात्यायनी" के रूप में पूजन और अर्चन किया जाता है.


महिषासुर के वध के लिए उत्पन्न हुई देवी की सर्व प्रथम पूजा महर्षि कात्यायन ने की थी इससे देवी का नाम कात्यायनी पड़ा. विन्ध्यक्षेत्र में मां को विन्दुवासिनी अर्थात विंध्यवासिनी के नाम से भक्तों के कष्ट को दूर करने वाला माना जाता है. प्रत्येक प्राणी को सदमार्ग पर प्रेरित वाली माँ  माता कात्यायनी  सभी के लिए आराध्य है. मां सभी भक्तों के मनोकामना को पूरा करती है. 


इस गृहस्थ जीवन में जिस-जिस वस्तुओं की जरूरत प्राणी को होती है वह सभी प्रदान करती है. माता कात्यायनी बड़ी दयालू है. भक्त जिस कामना पूजन अर्चन कर उनके मंत्रो का जप करते है, वह उन्हें प्रदान करती है. धाम में आने पर ममता बरसाने वाली माता का दर्शन पाकर भक्त विभोर हो जाते है. माता के ममतामयी छवि को निहार वह इस कदर निहाल होते है की उन्हें सब कुछ मिल जाता है.


देवी को लेकर ये है मान्यता
देवी कात्यायनी जी के संदर्भ में एक पौराणिक कथा प्रचलित है जिसके अनुसार एक समय कत नाम के प्रसिद्ध ऋषि हुए तथा उनके पुत्र ऋषि कात्य हुए, उन्हीं के नाम से प्रसिद्ध कात्य गोत्र से, विश्वप्रसिद्ध ऋषि कात्यायन उत्पन्न हुए थे.देवी कात्यायनी जी देवताओं, ऋषियों के संकटों को दूर करने लिए महर्षि कात्यायन के आश्रम में उत्पन्न होती हैं. महर्षि कात्यायन जी ने देवी पालन पोषण किया था. जब महिषासुर नामक राक्षस का अत्याचार बहुत बढ़ गया था, तब उसका विनाश करने के लिए ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने अपने अपने तेज़ और प्रताप का अंश देकर देवी को उत्पन्न किया था और ऋषि कात्यायन ने भगवती जी की कठिन तपस्या, पूजा किये, इसी कारण से यह देवी कात्यायनी कहलाई, माता कात्यायनी पूजन से आद्या चक्र जागृत होता है.


देश के कोने कोने से श्रद्धालु मां विंध्यवासिनी के दर्शन के लिए लंबी लंबी कतारों में खड़े होकर जयकारा लगाते हुए दर्शन पाने के लिए बेताब रहते हैं.श्रद्धालु का कहना है कि मां की ममता सभी पर बरसती है. जगत का कल्याण करने वाली माता की भक्त नवरात्र में नौ दिन माँ के अलग अलग रूपों की पूजा कर सभी कष्टों से छुटकारा पाते  हैं .माता के किसी भी रूप का दर्शन पाकर सभी कष्टों से छुटकारा पा जाता है.


यह भी पढ़ें:-


Uttarakhand News: बद्रीनाथ हाईवे पर अचानक दरकी पहाड़ी, बोल्डर की चपेट में आने से फटा बस का टायर, बाल-बाल बचे यात्री


UP Politics: सपा के दलित कार्ड से बसपा में मची खलबली, BSP के सामने अपने काडर वोट बैंक को सहेजने की चुनौती बढ़ी, मंथन शुरू