नई दिल्ली, एबीपी गंगा। आखिरकार जम्मू-कश्मीर में धारा 370 को लेकर मोदी सरकार के ऐतिहासिक फैसले ने घाटी की सियासत को नया मोड़ दे दिया है। जम्मू-कश्मीर का पुराना वाला जम्मू-कश्मीर नहीं रहा। इस फैसले के साथ ही जम्मू-कश्मीर को लेकर मोदी सरकार अबतक 9 बड़े फैसले ले चुकी है। जिसमें पंचायत चुनाव से लेकर ऑपरेशन ऑल आउट समेत अलगाववादियों की सुरक्षा का मामला शामिल है। हालांकि, जम्मू-कश्मीर को लेकर आज मोदी सरकार के फैसले ने घाटी की सियासत में हलचल पैदा कर दी और कश्मीर कन्याकुमारी तक भारत को एक कर दिया है।

जम्मू कश्मीर को लेकर मोदी सरकार के बड़े फैसले

1- धारा 370

5 अगस्त, 2019 की तारीख को इतिहास याद रखेगा। आज मोदी सरकार ने ऐतिहासिक फैसले लेते हुए धारा-370 के उन तमाम प्रावधानों को हटा दिया है, जो जम्मू-कश्मीर को विशेषाधिकार दिया करते थे। यहां तक की राज्यसभा में गृहमंत्री अमित शाह ने जम्मू-कश्मीर के पुनर्गठन के लिए संकल्प भी पेश किया। इसके तहत लद्दाख को जम्मू-कश्मीर से अलग कर दिया गया है और दोनों को केंद्रशासित प्रदेश बनाने का फैसला फैसला किया है।

2- ऑपरेशन ऑल आउट

इससे पहले घाटी में आतंकियों के सफाए के लिए मोदी सरकार ने साल 2017 में ऑपरेशन ऑल आउट शुरू किया था। इस ऑपरेशन के चलते सुरक्षाबलों ने घाटी में बड़ी संख्या में आतंकियों को सफाया किया और उनकी कमर तोड़ने का काम किया। साल 2017 और 2018 में सुरक्षाबलों ने ढाई सौ से ज्यादा आतंकियों को मार गिराया। इस ऑपरेशन का नतीजा ये निकला कि पिछले कई वर्षों की तुलना में घाटी में आतंकी वारदातों में कमी देखी गई। बता दें कि ऑपरेशन ऑल आउट के खासा खुद एनएसए अजित डोभाल ने तैयार किया था।

3- अलगाववादियों पर कार्रवाई

इतना ही नहीं, मोदी सरकार ने अपने पिछले कार्यकाल में अलगाववादियों को मिलने वाली सुरक्षा भी हटाई। इस फैसले के तहत करीब 18 अगलाववादियों और 155 नेताओं के सुरक्षा कवर को हटाया गया। इनमें राज्य की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती के करीबी वाहिद मुफ्ती, पूर्व आईएएस अधिकारी शाह फैसल,मौलवी अब्बास अंसारी, आगा सैयद मोस्वी जैसे लोग शामिल थे। बता दें कि पुलवामा में हुए आतंकी हमले के बाद सरकार के निर्देश पर ये कदम उठाया गया था।

4- पंचायत चुनाव

मोदी सरकार के कारण जम्मू-कश्मीर में पंचायत चुनाव हो सके। सुरक्षा कारणों से पिछले कई सालों से यहां लगातार पंचायत और नगर निकाय चुनाव टाले जा रहे थे, जबकि पंचायत चुनावों का कार्यकाल 2016 में ही खत्म हो चुका था। मोदी सरकार ने 2018 में सकुशल पंचायत चुनाव कराने सफल साबित हुई। इन चुनावों में सबसे खास बात ये रही कि आतंक प्रभावित दक्षिण कश्मीर के चार जिलों के शहरी निकाय चुनाव में बीजेपी ने 32 वार्डों में से 53 पर जीत दर्ज की। बता दें कि 316 प्रखंडों के 4490 पंचायतों में चुनाव हुआ था।

5- कश्मीर मुद्दे के लिए वार्ताकार भी नियुक्ति

कश्मीर की समस्या को हल करने के लिए साल 2017 में मोदी सरकार ने वार्ताकार नियुक्त किया है, जो आईबी के पूर्व डायरेक्टर दिनेश्वर शर्मा थे। आईबी में रहते हुए 1979 बैच के आईपीएस दिनेश्वर शर्मा जम्मू-कश्मीर के मामले को देखते रहे थे। यहीं कारण था कि मोदी सरकार ने उन्हें कश्मीर समस्या को हल करने के लिए वर्ताकार चुना। इसके पीछे का मकसद जम्मू-कश्मीर के सभी पक्षों से बातचीत कर कश्मीर समस्या का हल निकालना था।

6- जम्मू कश्मीर आरक्षण संशोधन बिल

मोदी सरकार लोकसभा से जम्मू कश्मीर आरक्षण संशोधन बिल पास करा चुकी है। अभी इसका राज्यसभा से पारित होना बाकी है। इसका बिल का मकसद राज्य की अंतरराष्ट्रीय सीमा के 10 किमी के दायरे में रहने वाले लोगों को शैक्षणिक संस्थानों व सरकारी नौकरियों में तीन प्रतिशत आरक्षण को विस्तार देना है।

7- पंचायतों के विकास के लिए फंड

मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर में पंचायतों के विकास के लिए 3700 करोड़ का फंड भी आवंटित किया। जिसका सीधा फायदा पंचायतों को पहुंचेगा, ताकि इन पैसों से पंचायतों का विकास हो सके। पहले चरण में फंड का 700 करोड़ रुपये पंचायतों को भेजे जा चुके हैं और 1500-1500 करोड़ रुपये को दो किश्तों में जारी किया जाएगा।

8- महबूबा और फारुख अब्दुल्ला पर कसा शिकंजा

मोदी सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल में पूर्व मुख्यमंत्री व पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती और नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता फारुख अब्दुल्ला पर घोटालों के मामले में शिकंजा कसना शुरू किया। इस कार्रवाई के तहत ईडी ने जम्मू-कश्मीर क्रिकेट बोर्ड में हुए 113 करोड़ से अधिक घोटाले में फारुख अब्दुल्ला से में पूछताछ की। वहीं, एंटी करप्शन ब्यूरो (एसीबी) ने जम्मू-कश्मीर बैंक में सिफारिश के आधार पर हुई 1200 से अधिक नियुक्तियों के मामले में जवाब तलब किया।

9- जम्मू-कश्मीर बैंक के चेयरमैन पर कार्रवाई

वहीं, कथित टेरर फंडिंग और जम्मू-कश्मीर बैंक में फर्जी नियुक्तियों के आरोपों में जे एंड के बैंक के चेयरमैन परवेज अहमद पर बड़ी कार्रवाई करते हुए उन्हें भी पद से हटाया गया। जून, 2019 में उनकी जगह ये जिम्मेदारी आरके छिब्बर को सौंपी गई। बता दें कि इस मामले की जांच एंटी करप्शन ब्यूरो कर रही है।