नई दिल्ली, एबीपी गंगा। नरेंद्र मोदी की शानदार जीत ने सियासत की नई तस्वीर सामने रखी है। भारतीय राजनीति में ये बहुत कम देखने को मिला है कि सत्तारूढ़ सरकार दोबारा प्रचंड बहुमत से आई हो। लोग मोदी को करिश्माई नेता कह रहे हैं। ये कहना गलत नहीं होगा कि उनका संवाद और जनता से जुड़ने की ताकत उन्हें अलग नेता बनाती है। भाजपा के पास मोदी मैजिक है जिसका जवाब विपक्ष के पास नहीं है। इसके पीछे संगठन की शक्ति और सरकार की तमाम वह योजनाएं हैं जो गरीबों तक पहुंची और जमीन पर दिखाई दी।


मोदी ने 2014 से ही अपनी सरकार को मजबूत टीम बनाया। ऐसा करके उन्होंने संप्रग के दौरान मनमोहन सिंह की कमजोर प्रधानमंत्री की छवि को दूर कर एक मजबूत, साहसिक और जल्द फैसले लेनेवाले प्रधानमंत्री की छवि बनाई। इस छवि ने देश-विदेश में धूम मचाई। भले ही विपक्ष उन्हें ताने देता रहा हो, मगर जनता का साथ उन्हें मिला।


''मन-की-बात'' कार्यक्रम से उन्होंने जनता के साथ जुड़ाव को मजबूत बनाया। लेकिन यह आसान नहीं था। इसके लिए मोदी ने विकास को ही अपनी विचारधारा के रूप में पेश किया। वास्तविक विकास का स्वरूप सबसे सेक्युलर होता है। वह न हिंदू देखता है न मुसलमान। मोदी ने यह सुनिश्चित किया कि विकास योजनाओं का लाभ सबको बिना भेद-भाव के मिले।


यही नहीं मोदी पर विपक्ष के तमाम हमले हुये लेकिन मजबूत इच्छाशक्ति के चलते उन्होंने सभी को सधा जवाब दिया। 'जुमलेबाज' होने का आरोप राहुल गांधी और तमाम विपक्षी नेता लगाते रहे, लेकिन जिन गरीबों को मोदी की विकास योजनाओं का लाभ मिलने लगा उन्हें आरोप बेबुनियाद लगा। सामाजिक सुरक्षा और लोक कल्याण के जो भी कार्यक्रम मोदी सरकार ने शुरू किए वे जमीन पर साफ दिखाई दिए। महिलाओं का एक बड़ा तबका 'बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ', शौचालय, सफाई और तीन-तलाक जैसे प्रयोगों की वजह से मोदी की ओर आकृष्ट हुआ।


मोदी ने राजनीति में एक नया विमर्श गढ़ा। उन्होंने राजनीति को जातिवादी खांचे से निकल कर जनवादी अर्थात वर्गीय खांचे में डाल दिया है। आज समाज के तमाम वर्गों जैसे महिलाओं, पिछड़ों, दलितों और यहां तक कि मुस्लिमों का भी विश्वास मोदी में जगा है। 'सबका साथ-सबका विकास' जुमला नहीं, एक हकीकत बन गया है। इससे पार्टी के जनाधार में क्रांतिकारी परिवर्तन हुआ जिसमें भाजपा के परंपरागत मतदाताओं के साथ-साथ समाज के सभी वर्गों के नए मतदाता जुड़े।


हर समय घोटालों और भ्रष्टाचार में घिरी रहने वाली कांग्रेसी सरकारों के विपरीत मोदी सरकार का कार्यकाल साफ-सुथरा रहा। हालांकि राहुल गांधी ने राफेल पर मोदी को घेरने की कोशिश की, लेकिन जनता ने उसे खारिज कर दिया। यह मानने के पर्याप्त कारण हैं कि राहुल ने जिस प्रकार मोदी के लिये अमर्यादित भाषा इस्तेमाल की उससे जनता में राहुल के प्रति नाराजगी भर गई।


चुनाव जीतने के लिए संगठन का मजबूत होना बहुत जरूरी है। भाजपा ने इस पर बहुत ध्यान दिया। जहां अन्य पार्टियों की न तो कोई स्पष्ट विचारधारा रही और न प्रतिबद्ध कैडर, वहीं भाजपा अध्यक्ष अमित शाह पूरे पांच साल पार्टी का संगठनात्मक ढांचा मजबूत बनाने, उन्हें नए-नए तरह से सक्रिय रखने और उनकी क्षमताओं को सही प्रयोग करने में जुटे रहे। अन्य दलों के लोगों को यह सीखना चाहिए।