यहां ठाठ से रहते हैं भालू, मोगली, गंभीर हो या एल्विस... रखा जाता है विशेष ख्याल
आगरा के सूर सरोवर पक्षी विहार स्थित संरक्षण गृह में रहने वाले भालुओं पर विशेष ध्यान दिया जाता है. यहां भालुओं के लिए एक अस्पताल भी बनाया गया है.
आगरा. सूर सरोवर पक्षी विहार स्थित संरक्षण गृह में सभी भालू ठाठ से रहते हैं. करीब 25 एकड़ से ज्यादा जगह में फैले इस संरक्षण केंद्र में 130 से ज्यादा भालू खुली हवा में सांस ले रहे हैं. सर्दियों में इन भालुओं के लिए जो इंतजाम किए गए हैं, उसे देखकर इंसान भी सोचने पर मजबूर हो जाएगा कि हमसे अच्छे तो बेजुबान ही हैं. साथ ही सुबह शाम दिया जा रहा दलिया और दिन में मौसमी फल इन भालुओं को वीवीआईपी फील करा रहा है.
दलिया और मौसमी फल है खुराक भालुओं को सर्दियों में ठंडे फर्श से बचाने के लिए पराली बिछाई जाती है. सर्दी से बचाव के लिए बिछाई गई पराली उनके लिए किसी ब्रांडेड गद्दे से कम नहीं है. भालू संरक्षण केंद्र को संचालित करने वाली संस्था वाइल्ड लाइफ एसओएस इनके खानपान का विशेष ध्यान रखती है. सुबह भालुओं को दलिया, अंडे, शहद, दूध और खजूर मिक्स कर खिलाए जाते हैं. वहीं दिन में मौसमी फलों का सेवन कराया जाता है. इसके साथ ही हर एक भालू का अलग-अलग हेल्थ रिकॉर्ड मेंटेन किया जाता है. साथ ही इस बात का भी विशेष ख्याल रखा जाता है किस भालू का क्या मिजाज है.
अलग है रोज़, छोटू और गंभीर का मिजाज सर्दियों में रोज़ नाम की मादा भालू सीजनल फ्रूट खाना बंद कर देती है. फिर चाहे जूली हो या छोटू, कीर्ति हो या मोगली या फिर गंभीर और एल्विस. हर एक भालू की पसंद और नापसंद का विशेष ख्याल रखा जाता है. वाइल्ड लाइफ एसओएस के डिप्टी डायरेक्टर वेटरनरी सर्विसेज इलया राजा के मुताबिक, ना केवल भालुओं के उठने-बैठने बल्कि खाने-पीने का विशेष ध्यान रखा जाता है. वहीं उनकी सेहत पर भी विशेष ध्यान दिया जाता है. उन्नत किस्म के उपचार के लिए सेंटर में ही एक अस्पताल भी है. इस अस्पताल में पांच डॉक्टर हमेशा ड्यूटी पर रहते हैं इसके साथ ही पूरे केंद्र में 70 के करीब स्टाफ है जो दिन-रात भालुओं की सेवा में लगा रहता है.
मौसम के हिसाब से बदलता रहता है स्वभाव इलया राजा आगे कहते हैं कि मौसम के हिसाब से भालुओं के स्वभाव में बदलाव भी देखा जाता है. इसीलिए अलग-अलग भालुओं से अलग तरीके से बर्ताव किया जाता है. बता दें कि वाइल्ड लाइफ एसओएस ने साल 1995 से देशभर में भालुओं के संरक्षण और संवर्धन का काम शुरू किया था. साल 2002 तक लगातार जागरुकता फैलाने के बाद पहला भालू रेस्क्यू किया गया था. साल 2009 तक 628 से ज्यादा भालुओं को रेस्क्यू किया गया है.
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