Muharram 2024: कर्बला की महफिलों का हुआ समापन, उलमा किराम ने कहा- 'वह सत्ता के लिए जंग नहीं थी'
UP News: बुधवार को दसवीं मुहर्रम का समापन हुआ. वहीं गोरखपुर की मस्जिदों में ओलमा किराम ने इमाम हुसैन के शहादत के किस्सों को बताया गया. उन्होंने यह भी बताया कि वह सत्ता के लिए जंग नहीं थी.
Gorakhpur News: पहली मोहर्रम से शुरू हुई जिक्रे शोहदाए कर्बला महफिलों का समापन दसवीं मुहर्रम बुधवार को कुल शरीफ की रस्म के साथ हुआ. फातिहा ख्वानी व दुआ ख्वानी हुई. मरकजी मदीना जामा मस्जिद रेती चौक में मुफ्ती मेराज अहमद क़ादरी ने कहा कि मोहर्रम की दसवीं तारीख को पैग़ंबरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बेटी हजरत फातिमा जहरा के आंखों के तारे इमाम हुसैन को दहशतगर्दों ने बेरहमी के साथ तीन दिन के भूखे प्यासे कर्बला के तपते हुए रेगिस्तान में शहीद कर दिया था.
गोरखपुर में बुधवार को दसवीं मोहर्रम के मौके पर रसूलपुर जामा मस्जिद में मौलाना जहांगीर अहमद अजीजी ने कहा कि दहशतगर्दों ने इमाम हुसैन को यह सोच कर शहीद किया था कि इंसानियत दुनिया से मिट जाएगी. लेकिन वह भूल गए कि वह जिस इमाम हुसैन का खून बहा रहे हैं, यह नवासे रसूल का है. जो दीन-ए- इस्लाम व इंसानियत को बचाने के लिए घर से निकले थे. इमाम हुसैन ने अपने नाना का रौजा, मां की मजार, भाई हसन के मजार की आख़िरी बार जियारत कर मदीना छोड़ दिया. यह काफिला रास्ते की मुसीबतें बर्दाश्त करता हुआ कर्बला पहुंचा और अज़ीम कुर्बानी पेश की.
क्या बोले कारी शराफत हुसैन कादरी
बेलाल मस्जिद अलहदादपुर में कारी शराफत हुसैन कादरी ने कहा कि हज़रत इमाम हुसैन ने दीन-ए-इस्लाम व सच्चाई की हिफाजत के लिए खुद व अपने परिवार को कुर्बान कर दिया. जो शहीद-ए-कर्बला की दास्तान में मौजूद है. हम सब को भी उनके बताए रास्ते पर चलने की जरूरत है. मकतब इस्लामियात चिंगी शहीद इमामबाड़ा तुर्कमानपुर में कारी मोहम्मद अनस रजवी ने कहा कि इमाम हुसैन से लोगों के प्यार की सबसे बड़ी वजह यह थी कि वो दीन-ए-इस्लाम के आखिरी नबी के नवासे थे और मिटती हुई इंसानियत को बचाने के लिए जुल्म के खिलाफ निकले थे.
'वह सत्ता के लिए जंग नहीं थी'
सुन्नी बहादुरिया जामा मस्जिद रहमत नगर में मौलाना अली अहमद ने कहा कि मुहर्रम की दसवीं तारीख को हजरत सैयदना इमाम हुसैन व आपके जानिसारों ने मैदान-ए-कर्बला में तीन दिन भूखे-प्यासे रह कर दीन-ए-इस्लाम के तहफ्फुज के लिए जामे शहादत नोश फरमा कर हक के परचम को सरबुलंद फरमाया. हजरत इमाम हुसैन और यजीद के बीच जो जंग हुई थी. वह सत्ता की जंग नहीं थी, बल्कि हक़ व सच्चाई और बातिल यानी झूठ के बीच की जंग थी.
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