Aligarh News: अलीगढ़ जिले में मुहर्रम महीने की 10वीं तारीख यानी आशूरा दिवस के जुलूस के दौरान कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के इंतजाम किए गए, जगह-जगह पूरे शहर को अलग-अलग भागों में विभाजित किया गया. मजिस्ट्रेटों की तैनाती पूरे अलीगढ़ में की गई, सभी रूठों को डाइवर्ट कर दिया गया. अलीगढ़ की खूबसूरती की अगर बात कही जाए तो आजतक अलीगढ़ के इतिहास में मुहर्रम के दौरान कभी भी कोई अप्रिय घटना देखने को नहीं मिलती. जिले में जब भी ताजियादारों से अपील की गई तो उन्होंने गंभीरता से उसका पालन किया प्रशासन का समर्थन किया.


आशूरा के दिन, किसी ने कभी भी ऐसा कुछ नहीं किया जिससे किसी को ठेस पहुंचे, उसी को लेकर अलीगढ के थाना सिविल लाइन में आशूरा दिवस का जुलूस ताजिये के रूप में परम्परागत तरीके से अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (Aligarh Muslim University) बैत-उल-सलात से शुरू हुआ आशूरा के दिन इमाम हुसैन और उनके साथियों को शहीद कर दिया गया था. आज भी पूरी दुनिया में इमाम हुसैन और उनके साथियों के हत्यारों को क्रूरता से देखा जाता है, हर कोई धर्म, राष्ट्र के भेदभाव के बिना दुखी और गंभीर दिखता है. वहीं एएमयू के बैत-उल-सलात से निकले जुलूस में लोग उदास और गंभीर भी दिखे, हालांकि एएमयू प्रशासन की ओर से गर्मी की छुट्टियों के चलते जुलूस में शामिल लोगों की संख्या पिछले साल की तुलना में कम थी.


एएमयू में पिछले सौ साल से किया जा रहा मातम
जुलूस में शामिल एएमयू कर्मचारी नादेर अब्बास नकवी ने कहा कि एएमयू के बैत-उल-सलात में यह मातम पिछले 100 साल से किया जा रहा है. करीब 1400 साल बाद भी इमाम हुसैन की शहादत का गम ताजा है, जिसमें भारत और एएमयू समेत पूरी दुनिया शामिल है. उन्होंने आगे कहा कि इमाम हुसैन ने जो कुर्बानी दी थी वह आतंकवाद के खिलाफ थी, यजीद कह रहा था कि इस्लाम खत्म हो जाए और इंसानियत खत्म हो जाए, जिसके खिलाफ इमाम हुसैन ने आवाज उठाई थी और अपनी जान कुर्बान करना चाहते थे, लेकिन बैत नहीं दिया गया.


एएमयू प्रोफेसर इमराना नसीम ने कहा कि इमाम हुसैन का संदेश इंसानियत और जुल्म के बारे में है, इसलिए दुनिया में किसी को भी किसी भी हालत में मजलूमों को परेशान नहीं करना चाहिए, चाहे फिलिस्तीन हो या मस्कट, ये सभी आतंकवादी गतिविधियां हैं. आशूरा दिवस के जुलूस में शामिल हुए एएमयू के प्रोफेसर लतीफ काजमी ने पत्रकारों को बताया कि इमाम हुसैन ने कर्बला में अपनी गवाही दी थी और बताया था कि दुनिया में सच और झूठ दोनों साथ-साथ चलते हैं और देने वाले हमेशा सच के साथ होते हैं. परीक्षण के लिए अल्लाह के दूत के पोते ने खुद को और अपने साथियों को पेश करने की कोशिश की और अंत में साथियों से कहा कि यह बलिदान केवल मेरा है.


आगे बताया कि, साथी साथी इमाम हुसैन से इतना प्यार करते थे कि वह नहीं चाहते थे उन्हें छोड़ने के लिए और कुर्बानी देकर उन्होंने कहा कि इस्लाम ही एकमात्र रास्ता है जो इंसानियत और न्याय के लिए सबके सामने आ सकता है, इसलिए इमाम हुसैन का बलिदान किसी खास संप्रदाय, या जाति के लिए नहीं, बल्कि इंसानियत के लिए है. आशूरा दिवस के जुलूस के दौरान, पिछले 20 वर्षों से शोक मनाने वालों को मुफ्त शरबत और पीने का पानी वितरित करने के लिए फ्लैग पार्टी ऑफ इंडिया द्वारा शमशाद बाजार में एक सबील का आयोजन किया जाता है, क्योंकि कर्बला में पानी बंद कर दिया गया था उनके बच्चे, इसलिए हम उन्हें मुफ्त पानी और शरबत देकर लोगों को बताना चाहते हैं कि हमें इन अत्याचारियों से कोई लेना-देना नहीं है, हम उनके खिलाफ हैं.


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