Mulayam Singh Yadav Death: दशकों तक राजनीतिक दांवपेंच के पुरोधा और विपक्ष की सियासत की धुरी रहे समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) संस्थापक मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) कभी सियासी फलक से ओझल नहीं हुए. कभी कुश्ती के अखाड़े के महारथी रहे मुलायम सिंह यादव बाद में सियासी अखाड़े के भी माहिर पहलवान साबित हुए. मेदांता अस्पताल में सोमवार को उन्होंने आखिरी सांसें ली. समर्थकों के बीच नेताजी के नाम से मशहूर मुलायम सिंह करीब छह दशक तक राजनीति में सक्रिय रहे. इस यात्रा में उन्होंने ख्याति पाई तो इस यात्रा के दौरान असफलता भी हाथ लगी. लेकिन इससे उनकी लोकप्रियता पर असर नहीं हुआ. आज मुलायम सिंह यादव के इसी सफर पर रोशनी डालते हैं.


कैसे रहा 'धरतीपुत्र' मुलायम का शुरुआती जीवन


उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के सैफई गांव में एक किसान परिवार में 22 नवंबर 1939 को जन्मे मुलायम सिंह यादव शुरुआती दिनों में छात्र राजनीति में सक्रिय रहे. उन्होंने राजनीति शास्त्र में डिग्री हासिल करने के बाद एक इंटर कॉलेज में कुछ समय के लिए पढ़ाया. वह वर्ष 1967 में पहली बार जसवंत नगर सीट से विधायक चुने गए. उन्होंने वर्ष 1975 में तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार द्वारा देश में आपातकाल घोषित किए जाने का कड़ा विरोध किया. वर्ष 1977 में आपातकाल खत्म होने के बाद वह लोकदल की उत्तर प्रदेश इकाई के अध्यक्ष बने. सियासत की नब्ज जानने की बेमिसाल योग्यता रखने वाले मुलायम सिंह वर्ष 1982 में उत्तर प्रदेश विधान परिषद के लिए चुने गए और और इस दौरान वह वर्ष 1985 तक उच्च सदन में विपक्ष के नेता भी रहे. 


रक्षा मंत्रालय भी संभाला, लेकिन यूपी ही रहा राजनीतिक अखाड़ा


 राज्य का सबसे प्रमुख सियासी कुनबा भी बनाया. वह 10 बार विधायक रहे और सात बार सांसद भी चुने गए. एक समय उन्हें प्रधानमंत्री पद के दावेदार के तौर पर भी देखा गया था. वह दशकों तक राष्ट्रीय नेता रहे लेकिन उत्तर प्रदेश ही ज्यादातर उनका राजनीतिक अखाड़ा रहा. समाजवाद के प्रणेता राम मनोहर लोहिया से प्रभावित होकर सियासी सफर शुरू करने वाले उन्होंने उत्तर प्रदेश में ही अपनी राजनीति निखारी और तीन बार प्रदेश के मुख्यमंत्री बने. वर्ष 2017 में समाजवादी पार्टी की बागडोर अखिलेश यादव के हाथ में आने के बाद भी मुलायम सिंह यादव पार्टी समर्थकों के लिए नेताजी बने रहे और मंच पर उनकी मौजूदगी समाजवादी कुनबे को जोड़े रखने की उम्मीद बंधाती थी.


जोड़-तोड़ की राजनीति में माहिर रहे मुलायम


समाजवादी मुलायम सिंह यादव ने राजनीतिक संभावनाओं को हमेशा खोल कर रखा और वह हर अवसर का इस्तेमाल करने वाले राजनेता रहे. जोड़-तोड़ की राजनीति में भी माहिर माने जाने वाले यादव समय-समय पर अनेक पार्टियों से जुड़े रहे. इनमें राम मनोहर लोहिया की संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी और चरण सिंह के भारतीय क्रांति दल, भारतीय लोक दल और समाजवादी जनता पार्टी भी शामिल हैं. उसके बाद वर्ष 1992 में उन्होंने समाजवादी पार्टी का गठन किया. मुलायम सिंह यादव ने उत्तर प्रदेश में अपनी सरकार बनाने या बचाने के लिए जरूरत पड़ने पर बसपा, कांग्रेस और बीजेपी से भी समझौते किए. वर्ष 2019 में संसद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सत्ता में दोबारा वापसी का ‘आशीर्वाद’ देकर उन्होंने सभी को आश्चर्यचकित कर दिया था.


जब सपा नेता को बुलाया गया 'मुल्ला मुलायम' 


वह वर्ष 1989 में पहली बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने. इसी दौरान राम जन्मभूमि आंदोलन ने तेजी पकड़ी और देश-प्रदेश की राजनीति इस मुद्दे पर केंद्रित हो गई. अयोध्या में कारसेवकों का जमावड़ा लग गया और उग्र कारसेवकों से बाबरी मस्जिद को ‘बचाने’ के लिए 30 अक्टूबर 1990 को कारसेवकों पर पुलिस ने गोलियां चलाई जिसमें पांच कारसेवकों की मौत हो गई. इस घटना के बाद राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव बीजेपी और अन्य हिंदूवादी संगठनों के निशाने पर आ गए और उन्हें ‘मुल्ला मुलायम’ तक कहा गया.


धुर-विरोधी बसपा के समर्थन में बनाई सरकार 


नवंबर 1993 में मुलायम सिंह यादव बसपा के समर्थन से एक बार फिर राज्य के मुख्यमंत्री बने, लेकिन बाद में समर्थन वापस होने से उनकी सरकार गिर गई. उसके बाद यादव ने राष्ट्रीय राजनीति का रुख किया और 1996 में मैनपुरी से लोकसभा चुनाव जीते. विपक्षी दलों द्वारा कांग्रेस का गैर भाजपाई विकल्प तैयार करने की कोशिशों के दौरान मुलायम कुछ वक्त के लिए प्रधानमंत्री पद के दावेदार के तौर पर भी नजर आए. हालांकि, वह एचडी देवेगौड़ा के नेतृत्व में बनी यूनाइटेड फ्रंट की सरकार में रक्षा मंत्री बनाए गए. रूस के साथ सुखोई लड़ाकू विमान का सौदा भी उन्हीं के कार्यकाल में हुआ था. बाद में मुलायम सिंह यादव ने एक बार फिर उत्तर प्रदेश की राजनीति का रुख किया और वर्ष 2003 में तीसरी बार प्रदेश के मुख्यमंत्री बने. 2007 में हुए विधानसभा चुनाव के बाद बसपा की सरकार बनने पर वह विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष भी रहे.


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अंतिम क्षण तक परिवार को एकजुट करने में लगे रहे मुलायम


वर्ष 2016 में यादव परिवार में बिखराव शुरू हो गया. तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और उनके चाचा शिवपाल सिंह यादव के बीच वर्चस्व की जंग शुरू हो गई और 1 जनवरी 2017 को पार्टी के आपात राष्ट्रीय अधिवेशन में मुलायम सिंह के स्थान पर उनके बेटे अखिलेश यादव को पार्टी अध्यक्ष बना दिया गया. हालांकि मुलायम सिंह को पार्टी का संरक्षक बनाया गया. पार्टी में वाजिब ‘सम्मान’ नहीं मिलने पर शिवपाल ने वर्ष 2018 में प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के नाम से अपना अलग दल बना लिया. मुलायम इस दौरान अपने कुनबे को एकजुट करने की भरपूर कोशिश करते रहे लेकिन इस बार उन्हें लगभग मायूसी ही हाथ लगी.


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