मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) का आज हरियाणा (Haryana) के गुरुग्राम के एक निजी अस्पताल में निधन हो गया. वो 82 साल के थे. धरती पुत्र के नाम से मशहूर मुलायम सिंह यादव ने उत्तर प्रदेश में कांशीराम (Kanshiram) की बसपा (BSP) से हाथ मिलाकर सबको चौंका दिया था. उत्तर प्रदेश में 1990 के दशक में मुलायम-कांशीराम के इस गठजोड़ को दलित-पिछड़ा के गठडोड़ के रूप में देखा गया. लेकिन लखनऊ में जून 1995 में हुए गेस्ट हाउस कांड के बाद यह गठबंधन टूट गया था. आइए हम आपको बताते हैं कि गेस्ट हाउस कांड है क्या.
सपा-बसपा की दोस्ती
बसपा के संस्थापक कांशीराम ने 1991 का इटावा से लोकसभा का उपचुनाव लड़ा था. वो यह चुनाव जीते भी थे. इटावा मुलायम सिंह यादव का गृह जिला है. मुलायम और कांशीराम के दोस्ती की शुरूआत इटावा से ही हुई. इटावा से चुनाव जीतने के बाद एक इंटरव्यू में कांशीराम ने कहा था कि अगर मुलायम सिंह यादव उनके साथ आ जाएं तो तो सभी विरोधी दलों का किला ध्वस्त हो जाएगा. मुलायम इससे काफी प्रभावित हुए थे.
मुलायम सिंह यादव ने बाद में कांशीराम से दिल्ली में मिले थे. इसी मुलाकात के बाद मुलायम सिंह यादव ने चार अक्तूबर 1992 को समाजवादी पार्टी का गठन किया. इसके बाद उन्होंने बसपा से गठबंधन कर 1993 का चुनाव लड़ा. इस चुनाव में सपा-बसपा के गठबंधन ने शानदार प्रदर्शन किया था. मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री बने थे.
लखनऊ का गेस्ट हाउस कांड
सपा-बसपा का यह गठबंधन बहुत दिनों तक नहीं चल पाया था. साल 1995 में दोनों पार्टियों में अनबन शुरू हो गई थी. इस दौरान दो जून 1995 को बसपा नेता मायावती लखनऊ के सरकारी गेस्ट हाउस में पार्टी के विधायकों के साथ मीटिंग कर रही थी. कहा यह जाता है कि इस बैठक में वो मुलायम सिंह यादव की सरकार से समर्थन वापस लेने पर चर्चा कर रही थीं.
इस दौरान समाजवादी पार्टी के कुछ विधायक और कार्यकर्ता गेस्ट हाउस पहुंच गए. उन लोगों ने गेस्ट हाउस में तोड़-फोड़ करनी शुरू कर दी. सपा विधायकों और कार्यकर्ताओं के बीच इस हंगामे से घबराकर मायावती ने खुद को गेस्ट हाउस के एक कमरे में बंद कर लिया. इस दौरान तत्कालीन बीजेपी विधायक ब्रह्मदत्त द्विवेदी ने गेस्ट हाउस पहुंचकर मायावती को समाजवादी पार्टी के गुस्साए कार्यकर्ताओं से बचाया था. इसके बाद मुलायम सिंह यादव की सरकार गिर गई थी. इसके अगले ही दिन मायावती बीजेपी के सहयोग से मुख्यमंत्री बनी थीं.
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