जयंती पर मुंशी प्रेमचंद को किया जा रहा है याद, मुंह चिढ़ा रही टूटी सड़क, साहित्यकार निराश
उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद की जयंती के अवसर पर कई कार्यक्रमों का आयोजन किया गया। प्रेमचंद साहित्य का वो नाम है जिसकी गूंज भविष्य में लम्बे समय तक देश और दुनिया में सुनाई देती रहेगी।
वाराणसी, नितीश कुमार पाण्डेय। आज उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद की जयंती है। मुंशी प्रेमचंद स्मारक पर मुंशी जी की लेखनी पर आधारित मुक्तिधन, गोदान, कफन का मंचन किया गया। इसके साथ ही मुंशी जी के आवास पर उनकी कहानियों पर आधारित चित्र प्रदर्शनी लगाई गई। लमही पूरी तरह से मुंशी जी के साहित्यिक रंग में रंगी नजर आई। एक तरफ प्रेमचंद की जयंती के मौके पर उनकी जन्मस्थली लमही में साहित्यकार जुटे तो वहीं दूसरी तरफ सांस्कृतिक आयोजनों के जरिए भी मुंशी जी को याद किया गया।
बता दें कि, हिंदी के उपन्यास सम्राट कहे जाने वाले मुंशी प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 को वाराणसी के लमही गांव में हुआ था। प्रेमचंद ने हिंदी साहित्य के खजाने को लगभग एक दर्जन उपन्यास और करीब 250 लघु-कथाओं से भरा है। प्रेमचंद के बचपन का नाम धनपत राय श्रीवास्तव था। आज मुंशी प्रेमचंद के बिना हिंदी की कल्पना भी करना मुश्किल है।
भले ही मुशी प्रेमचंद को कलम का जादूगर कहा जाता है लेकिन शायद वक्त आज भी उनके साथ न्याय नहीं कर सका है। मुंशी प्रेमचंद की जयंती पर उनके जन्म स्थान पर कई कार्यक्रमों का आयेजन किया जा रहा है। भले ही कार्यक्रम के जरिए उनको याद किया जा रहा है लेकिन गांव तक पहुंचने वाली टूटी सड़क इस पूरे आयोजन को मुंह चिढ़ाती नजर आ रही है।
कहना गलत नहीं होगा कि पैतृक आवास के पास बना मुंशी प्रेमचंद रिसर्च इंस्टीट्यूट दीवार बनकर रह गया। ऐसा हाल देखकर कई साहित्यकार निराश नजर आए। बताते चलें कि जयंती से पूर्व हर हाल में सड़क बनाने के दावे किए जाते रहे हैं लेकिन सड़क ज्यों की त्यों ही है और बरसात के मौसम में तो यहां चलना भी दूभर हो जाता है। इतना ही नहीं मुंशी प्रेमचंद रिसर्च इंस्टिटीयूट की हालत यहां आने वालों को निराश करती है।
लमही में मुंशी प्रेमचंद के घर के ठीक सामने आलीशान मुंशी प्रेमचंद मेमोरियल रिसर्च सेंटर तो एक साल पहले बनकर तैयार कर लिया गया मगर भवन अपनी सार्थकता सिद्ध नहीं कर पा रहा। केंद्र सरकार की पहल पर इस रिसर्च सेंटर की स्थापना की गई। इसका उद्देश्य था कि मुंशी प्रेमचंद, उनके उपन्यास, कहानियों और किरदारों पर शोध हो लेकिन ना तो यहां शोध कार्य शुरू हो सका न ही प्रेमचंद की पुस्तकों को संजोया जा सका।
मुंशी प्रेमचंद का पैतृक आवास लमही में है और हर साल मुंशी जी की जयंती मनाई जाती है। तमाम दावे भी किये जाते हैं। इस साल भी कार्यक्रम में पहुंचे वाराणसी कमिश्नर दीपक अग्रवाल ने मुंशी जी के गांव को साहित्य टूरिज्म के तौर पर विकसित करने का दावा किया। पैतृक आवास बेहाल है और लाइब्रेरी में किताबे नहीं। रिसर्च के लिए बना इंस्टीट्यूट दीवार बनकर रह गया है। ऐसे में देखना ये होगा कि क्या दावे सफल होते हैं या ये दावे भी दावे ही रह जाते हैं।
बता दें कि प्रेमचंद्र ने लगभग 300 कहानियां और चौदह बड़े उपन्यास लिखे हैं। उनके रचे साहित्य का अनुवाद लगभग सभी प्रमुख भाषाओं में हो चुका है, जिसमें विदेशी भाषाएं भी शामिल है। अपनी रचना 'गबन' के जरिए से एक समाज की ऊंच-नीच, 'निर्मला' से एक स्त्री को लेकर समाज की रूढ़िवादिता और 'बूढी काकी' के जरिए 'समाज की निर्ममता' को जिस अलग और रोचक अंदाज उन्होंने पेश किया, उसकी तुलना नही है। इसी तरह से पूस की रात, बड़े घर की बेटी, बड़े भाईसाहब, आत्माराम, शतरंज के खिलाड़ी जैसी कहानियों से प्रेमचंद ने हिंदी साहित्य की जो सेवा की है, वो अद्भुत है।