वाराणसी, नीतेश पांडे। जन्माष्टमी पर्व पर काशी में गंगा जमुनी तहजीब की मिसाल देखने को मिलती है। वाराणसी में मुस्लिम परिवार कई पुश्तों से मुकुट बनाता है। हिन्दू देवी देवताओं का शिरोधार्य होने वाला मुकुट काशी की साम्प्रदायिक सौहार्द की मिसाल है। मुस्लिम बंधु बड़ी ही शिद्दत और स्वच्छता के साथ भगवान का मुकुट तैयार करते हैं।



आपको बता दें कि बनारस शहर के मुस्लिम बंधु सदियों से चली आ रही जरदोजी की कला को अभी तक जीवित रखे हुए हैं और यह बात और भी खास हो जाती है जब मुस्लिम कारीगर अपने हाथ से नटखट बाल गोपाल के सिर पर सजने के लिए मुकुट और जन्माष्टमी में उनको सजाने के लिए वस्त्र और माला अपनी कारीगरी से सुशोभित करते हैं। सिर्फ बनारस ही नहीं बल्कि काशी के बने मुकुट की डिमांड पूरे देश में है।



बनारस के बुनकरों की कारीगरी में बना मुकुट वस्त्र और माला भगवान कृष्ण को सजाती है और विदेशों से इसके लिए खासतौर पर आर्डर भी दिए जाते हैं। मुकुट श्रृंगार का यह काम बनारस से बुनकरों की कला की एक अहम पहचान है।

मुस्लिम कारीगरों का कहना है कि जिस मेहनत से वह इस काम को करते हैं। जब भगवान श्री कृष्ण इसे धारण करते हैं तो वह मेहनत सफल होती नजर आती है। इसके साथ ही बनारस का यही रस हिंदू मुस्लिम एकता की मिसाल बना हुआ है। यहां के मुकुट देश के कोने- कोने में मशहूर हैं और बनारस से मथुरा, वृंदावन, दिल्ली, आगरा ,अयोध्या ,राजस्थान जैसे कई शहरों में मुकुट बनाकर भेजे जाते हैं।