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मशहूर इतिहासकार गोपाल भारद्वाज ने बताया कुंभ मेले का इतिहास, बोले- बदल गया है स्वरूप

इतिहासकार गोपाल भारद्वाज ने बताया कि वर्तमान में कुंभ महापर्व का स्वरूप बदल दिया गया है. पूर्व में 15 दिनों का कुंभ होता था परंतु अभी इसे 2 से 3 महीने का कर मकर संक्रांति से जोड़ दिया गया है.

मसूरी: मशहूर इतिहासकार गोपाल भारद्वाज ने बताया कि कुंभ मेले का अपना ही पौराणिक महत्व है. भारत में आदिकाल से कुंभ मेला आयोजित किया जा रहा है और इसका वर्णन शास्त्रों में मिलता है. शास्त्रों के अनुसार समुद्र मंथन से निकले अमृत को पाने के लिए असुरों और देवताओं में युद्ध हुआ था. असुरों से अमृत को बचाने के लिए भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण किया और अमृत कलश लेकर भागने लगे. उस समय कुंभ (घड़े) से अमृत की कुछ बूंदें छलककर भारत के चार स्थानों में गिर गईं और ये तब हुआ जब सूर्य मकर राशि में जाता है. ये संयोग 12 साल में एक बार आता है. ये संयोग सूर्य से भी बनता है और बृहस्पति से भी.

बदल गया है कुंभ का स्वरूप गोपाल भारद्वाज ने कहा कि भारत के हरिद्वार, इलाहाबाद (प्रयागराज), उज्जैन, नासिक में अमृत की बूंदें गिरी थीं. जहां पर तब से कुंभ का महापर्व अलग-अलग समय में आयोजित होता है. उन्होंने कहा कि वर्तमान में कुंभ महापर्व का स्वरूप बदल दिया गया है. पूर्व में 15 दिनों का कुंभ होता था परंतु अभी इसे 2 से 3 महीने का कर मकर संक्रांति से जोड़ दिया गया है. जबकि, पहले ये अप्रैल माहीने में हुआ करता था. उन्होंने कहा कि जनवरी माहीने में काफी ठंड होती है ऐसे में हरिद्वार में लोग बहुत कम आते थे. उस समय आने-जाने के संसाधन भी बहुत कम थे. लोग हाथी और घोड़ों से आते थे.

व्यापार मेले के रूप में भी देखा जाता था गोपाल भारद्वाज ने बताया कि अंग्रेज बेशक हमारे देश में राज कर रहे थे परंतु उन्होंने कभी भी देश की धार्मिक आस्थाओं को ठेस नहीं पहुंचाई. 1828 में हरिद्वार में कुंभ को बेहतर आयोजित करने के लिए उस समय के गवर्नर जनरल लार्ड विलियम्स बेंटिक ने एक हजार रुपए दिए गए थे. उन्होंने बताया कि उस समय भी हजारों-लाखों लोग कुंभ मेले में स्नान करने के लिए आते थे. कुंभ मेले के दौरान देश से नहीं बल्कि विदेशों से भी लोग हरिद्वार में व्यापार करने के लिए आते थे. इसमें वो अपने अपने देश के महत्वपूर्ण सामान की बिक्री करते थे और इसे व्यापार मेले के रूप में भी देखा जाता था.

लोग कुंभ में स्नान करने के लिए आते थे पूर्व में पंचांग के माध्यम से ही पता लगता था कि कुंभ कब और कहां आयोजित होना है और उसी को देखते हुए लोग कुंभ में स्नान करने के लिए आते थे. मेरठ की बेगम सुमरो भी हरिद्वार के कुंभ में अपनी उपस्थिति देने के लिए 1000 घुड़सवारों के साथ आया करती थीं. महाराज पटियाला और आसपास के कई राजा भी अपनी सेना के साथ कुंभ में शामिल होते थे. उन्होंने कहा कि उस समय सिरमोर बटालियन मेला में सुरक्षा प्रदान करती थी.

म्यूजियम बनाने की मांग गोपाल भारद्वाज का कहना है कि मेले को लेकर हर सरकार अपने तरीके से काम करती है और बेहतर करने की कोशिश करती है. हिंदू धर्म में कुंभ सबसे बड़ी धार्मिक यात्रा मानी जाती है. उन्होंने कहा कि सरकार को कुंभ के इतिहास को भी के संभालने की जरूरत है, जिससे इसका पौराणिक महत्व बना रहे. उन्होंने सरकार से मांग की है कि कुंभ के इतिहास को लेकर हरिद्वार में म्यूजियम का निर्माण हो जिसमें कुंभ की पुरानी तस्वीरों के साथ इससे जुड़े इतिहास को प्रर्दशित किया जा सके. जिससे युवा पीढ़ी कुंभ के महत्व और इसके इतिहास को समझ सके.

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