UP News: उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर (Muzaffarnagar) जनपद निवासी दिव्या काकरान (Divya Kakran) रेसलिंग में शुक्रवार की रात कॉमनवेल्थ गेम (Commonwealth Games) में ब्रॉन्ज मेडल जीतकर देश के साथ साथ जनपद का नाम भी रोशन करने का काम किया है. आपको बता दें कि रेसलर दिव्या काकरान जनपद के पुरबालियान गांव की रहने वाली हैं जहां उनके पैतृक निवास पर उनकी जीत के बाद परिवार वालों ने एक दूसरे को मिठाई खिलाकर अपनी खुशी का इजहार किया.


दिव्या काकरान के पिता भी रह चुके हैं रेसलर


दिव्या काकरान के पिता सूरज सिंह भी एक पहलवान रह चुके हैं लेकिन घर की दयनीय हालत ठीक न होने के चलते वह तो इस बुलंदी तक नहीं पहुंच सके लेकिन उन्होंने आज अपनी मेहनत और संघर्ष से अपनी बेटी को इस मुकाम तक पहुंचा दिया. दिव्या काकरान ने 2012 से रेसलिंग के गेम में अपना कदम रखा था और तब से अब तक दिव्या काकरान तकरीबन 60 मेडल जीत चुकी हैं.


चाचा ने जीत पर कही यह बात


दिव्या काकरान ने कॉमनवेल्थ गेम में 68 किलोग्राम भार वर्ग में दूसरी बार मेडल जीता है. बर्मिंघम के अखाड़े में अपने कल के मैच में अर्जुन अवार्डी दिव्या काकरान ने अपने प्रतिद्वंदी को मात्र 30 मिनट में चित ब्रॉन्स मेडल पर अपना कब्जा किया है. दिव्या के पैतृक गांव में उनके चाचा मोहनवीर सिंह ने बताया, 'दिव्या मेरी भतीजी है. उसने कल ब्रॉन्ज मेडल जीता है. दिव्या ने 2012 से पहलवानी शुरू की थी. मेडल तो उसने बहुत जीत रखे हैं लेकिन अब उसने कॉमनवेल्थ में जीता है. दिव्या से बात नहीं हो पाई लेकिन हम तो यही कहेंगे कि बेटी और मेडल जीते.'


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गांववालों ने जीत पर जताई खुशी


 पुरबालियान ग्राम पति शौकत अली ने कहा, 'बहुत खुशी की बात है हमारे गांव के ग़रीब घर की लड़की ने मेडल जीता है. दिव्या के परिवार की स्थति कभी बहुत ख़राब थी. दिव्या के पिता ने भी पहलवानी की है. आर्थिक स्थति के कारण वह वहां तक पहुंच नहीं पाए इसलिए उन्होंने अपनी बच्ची को मेहनत करके पहलवानी कराई. बहुत कष्ट उठाए और गांव के बहुत लोगों ने भी उनका सहयोग किया था. हम तो ये कहेंगे कि हमारे गांव से एक फूल खिल कर उठा है जो पूरे हिंदुस्तान को खुशबू दे रहा है.' उन्होंने बताया कि दिव्या काकरान जब पांच साल की थी तभी से उनके पिता के मन में यह विचार आया कि वह बेटी को पहलवान बनाएंगे.


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