उत्तराखंड के इतिहास का काला अध्याय है मुजफ्फरनगर रामपुर तिराहा कांड, गोलीबारी में हुई थी 7 की मौत
Muzaffarnagar Rampur Tiraha Kand: उत्तर प्रदेश से अलग राज्य के गठन को लेकर पहाड़ों में लंबे समय से मांग चल रही थी. 2 अक्टूबर 1994 की एक घटना ने उत्तरांचल जैसे राज्य की स्थापना में महती भूमिक निभाई.
Muzaffarnagar Rampur Tiraha Kand: उत्तराखंड राज्य की स्थापना में 2 अक्टूबर 1994 की मुजफ्फरनगर तिराहा कांड जैसी भयावह घटना ने खास भूमिका निभाई. इस घटना को याद करके आज भी लोग सिहर उठते हैं. हालांकि यह एक ऐसी दुखद और भयावह अध्याय है, जिसने उत्तराखंड आंदोलन को अभूतपूर्व गति प्रदान दी.
उत्तराखंड के आंदोलनकारियों पर हुई इस निर्मम कार्रवाई ने न केवल क्षेत्रीय बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर राजनीतिक माहौल को प्रभावित किया. इस घटना के बाद उत्तराखंड राज्य के गठन की प्रक्रिया को तेज हो गई. यह घटना उत्तराखंड के संघर्षशील आंदोलनकारियों के कुर्बानी और साहस का प्रतीक बन गई.
घटना का विवरण
पहाड़ों में लंबे समय से उत्तर प्रदेश से पृथक राज्य की मांग उठ रही थी. लोग उत्तर प्रदेश से अलग एक नए राज्य उत्तरांचल (वर्तमान में उत्तराखंड) की मांग कर रहे थे. इसके लिए लोग वर्तमान उत्तराखंड के अलग-अलग हिस्सों में शांतिपूर्ण तरीके से आंदोलनों में भाग ले रहे थे.
2 अक्टूबर 1994 को सैकड़ों आंदोलनकारी देहरादून से दिल्ली की ओर कूच कर रहे थे, जिससे वह अपनी मांग केंद्र सरकार के सामने रख सकें. जब ये प्रदर्शनकारी उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले में रामपुर तिराहा पर पहुंचे, तो पुलिस ने उन्हें रोकने की कोशिश की. इसके बाद जो हुआ, वह पूरे भारत और राज्य आंदोलन के इतिहास में एक गहरे घाव के रूप में दर्ज हो गया.
पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर गोलीबारी की, जिसमें सात लोगों की जान चली गई और कई अन्य गंभीर रूप से घायल हो गए. इस दौरान पुलिस पर आंदोलनकारी महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार और यौन उत्पीड़न के भी आरोप लगाए गए. इस निर्मम कार्रवाई से पूरे उत्तराखंड में भारी आक्रोश फैल गया.
घटना का ऐतिहासिक महत्व
आंदोलन को मजबूती: मुजफ्फरनगर तिराहा कांड के बाद, उत्तराखंड के लोग और भी संगठित हो गए. इस घटना ने उत्तराखंड आंदोलन को एक नई दिशा दी, जिससे पूरे उत्तराखंड में व्यापक विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए. इस घटना ने राज्य निर्माण की मांग को और अधिक जोरदार बना दिया और राष्ट्रीय मंच पर भी इस मुद्दे को उठाया गया.
शहादत का प्रतीक: यह घटना उत्तराखंड की जनता के लिए एक शहादत की तरह है. उन लोगों की कुर्बानी को हमेशा याद किया जाता है, जिन्होंने राज्य की स्थापना के लिए अपने प्राणों की आहुति दी. मुजफ्फरनगर तिराहा कांड ने उत्तराखंड के लोगों के दिलों में अपनी मांगो के प्रति दृढ़ कर दिया.
राजनीतिक परिवर्तन: इस घटना के बाद राजनीतिक दबाव इतना बढ़ गया कि केंद्र सरकार को उत्तराखंड की मांग को गंभीरता से लेना पड़ा. उत्तर प्रदेश की तत्कालीन सरकार और केंद्र सरकार दोनों ही इस आंदोलन के सामने झुकने को मजबूर हुईं. आंदोलन के दबाव और जनता के आक्रोश के चलते, आखिरकार 9 नवंबर 2000 को उत्तराखंड को एक अलग राज्य के रूप में मान्यता दी गई.
समाज पर प्रभाव
मुजफ्फरनगर तिराहा कांड न केवल उत्तराखंड के इतिहास का एक काला अध्याय है, बल्कि यह संघर्ष की उस लंबी यात्रा का प्रतीक है, जो जनता की इच्छा शक्ति और उनकी एकजुटता को दर्शाता है. यह घटना दर्शाती है कि अपने मूल्यों के लिए भारतवासी किसी भी कुर्बानी को तैयार है और वह किसी राजनीतिक तंत्र को बदलने में सक्षम हैं.
इस घटना ने पुलिस और तंत्र का घिनौना रूप भी पेश किया, जिसने एक शांतिपूर्ण आंदोलन में शामिल लोगों पर फायरिंग की और महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार किया.
इस भयावह अध्याय के बाद उत्तराखंड के गांवों और शहरों में इस कांड की स्मृति में कई स्मारक बनाए गए हैं, जो इस बात का प्रतीक हैं कि उत्तराखंड के लोग अपने संघर्ष और बलिदान को कभी नहीं भूलेंगे.
मुजफ्फरनगर तिराहा कांड ने उत्तराखंड राज्य निर्माण की मांग को एक नई दिशा दी और एक अलग राज्य के रूप में उत्तराखंड का गठन संभव हुआ. यह घटना उत्तराखंड के संघर्ष और साहस की गाथा है, जो आने वाली पीढ़ियों को उनके अधिकारों और स्वाभिमान के लिए लड़ने की प्रेरणा देती रहेगी.
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