Nag Panchami 2024: प्रयागराज का वह मंदिर जहां कालिया नाग को हुई थी बैकुंठ की प्राप्ति, द्वापर युग से गहरा जुड़ाव
Prayagraj News: सम्पूर्ण सर्प जाति के स्वामी भगवान तक्षक और नागराज वासुकि का मूल निवास होने की वजह से प्रयागराज में नाग पंचमी का विशेष महत्व है. श्रद्धालुओं की गहरी आस्था है.
Nag Panchami 2024: नागपंचमी का पर्व आज संगम नगरी प्रयागराज में भी पूरी श्रद्धा और आस्था के साथ मनाया जा रहा है. नाग देवताWorship of snake god in Shiva templeओं के मंदिरों और दूसरे शिवालयों में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ी हुई है. लोग नाग देवताओं के दर्शन- पूजन कर उन्हें दूध चढ़ा रहे हैं और रुद्राभिषेक कर काल सर्प दोष और विष बाधा से मुक्ति की प्रार्थना कर रहे हैं. सम्पूर्ण सर्प जाति के स्वामी भगवान तक्षक और नागराज वासुकि का मूल निवास होने की वजह से प्रयागराज में नाग पंचमी का विशेष महत्व है.
नाग पंचमी के मौके पर प्रयागराज में नाग देवताओं के मंदिरों में भक्तों का सैलाब उमड़ा हुआ है. सबसे ज़्यादा भीड़ संगम किनारे स्थित नागवासुकी मंदिर में हैं. यहां भक्तों की भारी भीड़ उमड़ी हुई है. लम्बी लाइनों में लगे भक्तगण नाग देवताओं की जय- जय कार कर रहे हैं. श्रद्धालु अपने घर- परिवार और कुल को सांपों की काली छाया से दूर रखने की प्रार्थना कर रहे हैं. पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक़ प्रयागराज के नाग मंदिरों से कंकड़ ले जाकर घर के चारों तरफ रखने वालों पर कभी साँपों और नागों की काली छाया नहीं पड़ती. नागपंचमी पर प्रयागराज में कई जगहों पर मेले भी लगते हैं. इन मेलों में शामिल होने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं.
साधना में कालिया नाग को मिला था बैकुंठ
प्रयागराज में यमुना तट स्थित तक्षक तीर्थ का द्वापर युग के साथ गहरा जुड़ाव है. द्वापर युग में वृन्दावन में कृष्ण प्रिया यमुना में वास करने वाले नागराज कालिया का जहर जब गोकुल वासियों की मौत की वजह बनने लगा तब कृष्ण कन्हैया ने नाग नथैया कर कालिया के अभिमान का मर्दन किया. नागराज की रानियों की विनती पर भगवान कृष्ण ने कालिया को मुक्त तो कर दिया लेकिन उसके जहर को ख़त्म कर उसे तुंरत वृन्दावन छोड़ने और कही दूसरी जगह आश्रय लेने का आदेश दिया. दर-दर भटकने के बाद भी कालिया को जब कही आश्रय नही मिला तो उसने अपने देवता तक्षक के धाम प्रयागराज में शरण ली. यहाँ उसने कई दिनों की साधना और उपासना के बाद तक्षक को प्रसन्न कर न सिर्फ़ काल सर्प योग से मुक्ति पायी बल्कि बुरे कर्मो को छोड़कर तक्षक, कृष्ण और विष्णु की साधना में लीन हो गया और बैकुंठ को प्राप्त हुआ.
तक्षक और कालिया के साथ ही यहाँ तीन अन्य नाग देवता कर्कोटक, कम्बल और अश्वेतक भी विराजमान हैं. इन नाग देवताओं की वजह से ही तक्षक तीर्थ को काल सर्प दोष और विष बाधा से मुक्ति का समूची दुनिया में इकलौता स्थान माना जाता है. यहाँ देश ही नही बल्कि दुनिया के कोने-कोने से लोग अपने दोष से मुक्ति पाकर नागेश्वर तक्षक का आशीर्वाद लेने के लिए आते हैं. कोई दूध और जल से तक्षक, कालिया व अन्य नाग देवताओं का अभिषेक करता है तो कोई आरती व शीश झुककर मंत्रोच्चार के जरिये इन नाग देवताओं को खुश करने का प्रयत्न करता है.
तक्षक धाम को लेकर ये है पौराणिक मान्यता
तक्षक धाम में अधिकांश समय यज्ञ और हवन चलता रहता है तो यमुना की ह्रदय-स्थली में छिपे तक्षक कुंड पर भी श्रद्धालुओं की गहरी आस्था है. पौराणिक मान्यता है की पृथ्वी का मूल आधार संगम तट पर स्थित अगर अक्षयवट है तो सृष्टि का मूल आधार यह शक्तिपूरक तीर्थ तक्ष्केश्वर जहाँ पर कुण्डलिनी जागरण जैसी कठिन साधनों के लिए यहाँ हर साल हजारों साधक आते हैं और योगस्थ होकर अपनी साधना का फल प्राप्त करते हैं. तक्षक तीर्थ में आज भी सुबह से ही पूजा अर्चना हो रही है.
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