Nainital News: उत्तराखंड में इन दिनों बाघ और तेंदुआ का आतंक बना हुआ है लगातार लोगो पर हमले हो रहे है पिछले 48 घंटों में बाघों ने दो लोगो की जान ली है. पिछले दिनों बाघ के हमले में महिला की मौत के बाद ग्रामीणों में आक्रोश है. ग्रामीणों ने कॉर्बेट पार्क के ढेला और झिरना पर्यटन जोन में की पर्यटकों की आवाजाही ठप कर दी. जिसके चलते पंजाब के जेड प्लस सुरक्षा प्राप्त एक वीआईपी को भी लौटना पड़ा. बाघों से अपनी सुरक्षा को लेकर ग्रामीण चिंतित हैं और सरकार से बड़ा मुआवजा दिए जाने की मांग कर रहे हैं. साथ ही आदम खोर बाघों को शिफ्ट करने की मांग की जा रही है. आज भी ग्रामीणों ने कॉर्बेट पार्क के दो पर्यटक जॉन बंद कर दिया.
कॉर्बेट पार्क के इलाको में लोगों पर बाघों के हमले से स्थानीय ग्रामीण खासे परेशान है, यहां के कई क्षेत्रों में पिछले लंबे समय से बाघ और गुलदार का आतंक है जिससे ग्रामीण दहशत में जीने के लिए मजबूर है. ग्रामीण क्षेत्रों में बाघ और गुलदार अभी तक कई ग्रामीणों को शिकार बना चुके हैं. तो वहीं, कई पालतू जानवरों को भी अपना शिकार बना चुके हैं. वन्यजीवों के आतंक से निजात दिलाने को लेकर ग्रामीण लंबे समय से आंदोलन कर रहे हैं. इस आंदोलन के बावजूद भी इस क्षेत्र में जंगली जानवरों के आतंक काम होने का नाम नहीं ले रहा है. इस सब में वन महकमा पूरी तरह नाकाम साबित हो रहा है.
महिला को बाघ ने अपना शिकार
ग्राम चुकुम के रहने वाले गोपाल राम दो दिन पहले जंगल में नित्यक्रिया के लिए गए थे तभी बाघ ने हमला कर उन्हें मौत के घाट उतार दिया. तो वही रविवार की दोपहर ग्राम सांवल्दे पश्चिम निवासी दुर्गा देवी जब जंगल में लकड़ी लेने गई थी, तभी इस महिला को बाघ ने अपना शिकार बना लिया. इस घटना के बाद गांव में जहां एक और बाघ की दहशत है तो वहीं ग्रामीण परेशान है. सोमवार को दर्जनों ग्रामीणों ने ग्राम सांवल्दे मुख्य सड़क पर जाम लगाते हुए धरना प्रदर्शन करते हुए कॉर्बेट प्रशासन के खिलाफ नारेबाजी की. पुलिस और वन विभाग के अधिकारियों ने ग्रामीणों को समझाने का प्रयास किया लेकिन ग्रामीण अपनी मांग पर अड़े रहें.
ग्रामीणों ने मांग की है कि हमलावर बाघ को शीघ्र ट्रेंकुलाइज कर उसे गोली मारी जाए और ग्रामीणों को वन्यजीवों के आतंक से सुरक्षा प्रदान की जाए. उन्होंने कहा कि यदि ऐसा नहीं हुआ तो 11 फरवरी को रामनगर में एक राज्य स्तरीय बैठक का आयोजन किया गया है जिसमें एक बड़े आंदोलन को लेकर रणनीति तैयार की जाएगी. उत्तराखंड के कई जंगलों में केयरिंग कैपेसिटी से कहीं अधिक बाघ और लेपर्ड हो चुके हैं लेकिन वन महकमा इस सच्चाई को कबूल करने को तैयार नहीं है.
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