नई दिल्ली, एबीपी गंगा। प्रेसिडेंट ऑफ पॉलिटिक्स अमित शाह करिश्माई नेतृत्व पूरी दुनिया ने देखा है। अमित भाई पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भरोसा बरसों पुराना है। ये रिश्ता आजमाया हुआ है और कामयाबी की नई-नई इबारतें गढ़ने वाला है। नरेंद्र मोदी की राहों से कांटे चुनने वाले शाह के बारे में एक किस्सा हम आपको बताते हैं जिसकी जानकारी बेहद कम लोगों को ही है।
हंसते हुए बोले शाह- जैसा आप चाहें साहेब
मोदी और अमित शाह की नजदीकियों को समझना कोई रहस्य नहीं है लेकिन इन रहस्यों के कई किस्से हैं और ये किस्से भी आम नहीं है। कहा जाता है कि जिस वक्त अमित शाह का गुजरात क्रिकेट एसोसिएशन का अध्यक्ष चुना जाना तय था उस दिन अमित भाई और उस वक्त गुजरात के मुख्यमंत्री रहे नरेंद्र मोदी एक ही कार में एसोसिएशन के दफ्तर पहुंच रहे थे। बीच रास्ते में नरेंद्र मोदी को न जाने क्या सूझी कि उन्होंने अमित भाई से कहा क्यों न मैं जीसीए का अध्यक्ष बन जाऊं इस पर अमित शाह मुस्करा दिए और बोले जैसा आप चाहें साहेब और मिनटों के बाद जीसीए अध्यक्ष नरेंद्र मोदी बन गए जबकि अमित शाह उपाध्यक्ष।
कभी नहीं रुकते शाह
इतिहास एक दिन में नहीं लिखा जाता, इस बात को अमित शाह बखूबी समझते हैं तभी तो शाह सार्वजनिक तौर पर ये कहने से गुरेज नहीं करते कि वो अगले चुनाव का इंतजार नहीं करते। 2019 के चुनाव की तैयारी शाह ने 27 मई 2014 से ही शुरू कर दी थी और उनकी तैयारियों का असर नतीजों पर किस तरह से दिखा ये पूरी दुनिया के सामने है।
शाह की सियासी व्यूह रचना
विपक्ष के कई आरोपों से घिरे रहने के बावजूद मोदी सरकार ने न केवल वापसी की बल्कि अपनी पिछली जीत से भी बड़ी जीत हासिल करते हुए विपक्ष की उम्मीदों को धराशायी कर दिया। ये जीत एक दिन की नहीं है। दरअसल, शाह ने 2019 के चुनाव का चक्रव्यूह बहुत पहले ही रच दिया था। ये सियासत का वो चक्रव्यूह था जिसमें, राहुल गांधी, अखिलेश और माया का महागठबंधन, लालू पुत्र तेजस्वी यादव, ममता बनर्जी सब परास्त हो गए। शाह के चक्रव्यूह में कोई टिक न सका और जो इसमें दाखिल हुआ वो निकल ही नहीं पाया।
चली तो सिर्फ शाह की
पूरब से पश्चिम तक और उत्तर से दक्षिण तक किसी की अगर चली तो वो अमित शाह ही थे। भाजपा की जीत और सीट के आंकड़े बताते हैं कि अमित ने जीत को केवल पुचकार और वो खुद बखुद उनकी तरफ दौड़ी चली आई। यूपी में 64, बिहार में 39, बंगाल में 18 ओडिशा में 8, महाराष्ट्र में 41, कर्नाटक में 25 तेलंगाना में 4 और दिल्ली, हिमाचल, उत्तराखंड हरियाणा, राजस्थान, गुजरात जैसे राज्यों में क्लीन स्वीप। ये वो आकड़े हैं जो शाह के सियासी चक्रव्यूह की दास्तां बयां करने के लिए काफी हैं। हालांकि, ये इतना आसान नहीं था लेकिन कठिनाइयों से डर जाना मोदी और शाह की जोड़ी ने सीखा ही नहीं। जीत के इन आंकड़ों को जुटाने के लिए कमान प्रधानमंत्री मोदी ने संभाली और उनके पीछे अमित शाह डट कर खड़े नजर आए।
न रुके न थमे
2019 के लोकसभा चुनाव में मेरठ से प्रचार अभियान शुरू करते हुए पीएम मोदी ने चुनाव खत्म होने तक 142 रैलियां कीं, इसके लिए 1 लाख किमी से ज्यादा का सफर तय किया, जबकि बतौर पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने 161 रैलियों को संबोधित किया। शाह ने इसके लिए 1.58 किमी का सफर तय किया। जीत के अभियान में जुटे अमित शाह ने 18 रोड शो भी किए। शाह ने जिस तरह से मेरा बूथ, सबसे मजबूत की मुहिम चलाई थी उसका असर ऐसा रहा कि बीजेपी हर एक बूथ पर अपना असर दिखने को बेकररार रही और ये असर नेताओं के वोट के जीत के अंतर से भी दिखा।
नहीं थमा बीजेपी का अभियान
अमित शाह की सियासी कसरत ने विपक्ष के मुद्दों को हवा में उड़ा दिया। बंगाल में ममता से दो-दो हाथ करने उतरी बीजेपी को अपने कई कार्यकर्ताओं की जान भी गंवानी पड़ी। ममता का विरोध सियासत की लकीरें लांघ कर जब व्यक्तिगत हो गया तो भी बीजेपी का अभियान थमा नहीं। नतीजा ये हुआ कि ममता के गढ़ से बीजेपी 18 सीटें छीनने में कामयाब हो गई। बीजेपी के इतिहास में ऐसा कारनाम कोई नहीं कर पाया, तब भी जब आडवाणी और अटल जी जैसी दिग्गज जोड़ी हुआ करती थी। अब सियासत बदल चुकी है और सियासत के नए शहंशाह को लोग अमित भाई शाह के नाम से जानते हैं।