प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अगर आज की राजनीति का महानायक कहे तो गलत नहीं होगा। देश में जब-जब राजनैतिक मुद्दों पर बात होती है तो उसमें नरेंद्र मोदी का जिक्र करना जरूरी हो जाता है। नरेंद्र मोदी के बिना देश की राजनीति का अध्याय अधूरा है।
साल 1975... ये वो समय था जब देश ने इमरजेंसी का दौर देखा था। 26 जून 1975 की सुबह जब देशवासियों की नींद खुली तो रेडियो पर आपाताकाल लगाये जाने का एलान हो चुका था। आपातकाल की घोषणा करने वाली आवाज तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की थी। स्वतंत्र भारत के इतिहास में यह सबसे विवादास्पद और अलोकतांत्रिक काल था। इस दौर में चुनाव स्थगित हो गए... इंदिरा राज में नागरिक अधिकारों को समाप्त करके मनमानी की गई। प्रेस की आजादी पर पूरी तरह पाबंदी लगा दी गई थी और कई नेताओं को जेल में डाल दिया गया था।
लेकिन एक शख्स ऐसा भी था जो जेल की सलाखों से दूर था। वो शख्स था नरेंद्र दामोदर दास मोदी। जिस नरेंद्र मोदी के चारों ओर आज देश की राजनीति घूमती है वो नरेंद्र मोदी इमरजेंसी के समय करीब 20 महीने पुलिस की पहुंच से दूर रहे। ... तो नरेंद्र मोदी ने इन 20 महीनों में क्या किया? कैसे वो जेल की सलाखों से दूर रहे? नरेंद्र मोदी के साथी ने खुद बताया कि वो इमरजेंसी में कैसे पुलिस को चकमा देने में कामयाब रहे।
नरेंद्र मोदी के साथी पंकज पारेख बताते हैं “कभी-कभी मोदी साधू के वेश में निकलते थे तो कभी सूट-पैंट में। इमरजेंसी के समय मोदी अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग वेश बनाकर घूमते थे।’’
इमरजेंसी से भी दो साल पहले 1973 में गुजरात में नव निर्माण आंदोलन चलाया गया था। ये आंदोलन अहमदाबाद में एल.डी कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग के छात्रों ने चलाया था और इसकी वजह थी कैंटीन में खाने की कीमतों में 20 फीसदी का इजाफा। छात्रों को जैसे ही पता चला कि कैंटीन के खाने की कीमतें बढ़ा दी गई हैं तो उन्होंने आंदोलन का झंडा उठा लिया। छात्रों ने विरोध किया तो पुलिस ने उन्हें यातनाएं दीं। आंदोलन की आग पूरे राज्य में फैल गई। इसे नाम दिया गया ''नव निर्माण आंदोलन''।
नरेंद्र मोदी के करीबी साथी रहे विष्णु पांडया बताते हैं कि कैसे मोदी उन दिनों इस आंदोलन पर अपनी नजर रखते थे। उन्होंने बताया “उन दिनों की कार्यशैली बहुत अलग थी, वो एक तरह से जीवन की पाठशाला थी…”
पांडया के मुताबिक, मोदी के राजनीतिक करियर की शुरूआत इसी आंदोलन के साथ हुई थी। मोदी जैसे कई बड़े नेता इस आंदोलन के साथ जुड़े जिसके बाद ये आंदोलन सफल हुआ और गुजरात के मुख्यमंत्री शिवन भाई पटेल को इस्तीफा देना पड़ा।...... आंदोलन के दौरान मोदी गिरफ्तार होने से कैसे बचे इसका जिक्र वो अपनी किताब में करते हैं। मोदी ने अपनी किताब में लिखा है, “दोपहर के 12 बजे थे.. मैं स्कूटर से आरएसएस दफ्तर पहुंचा तो देखा बाहर एक पुलिस वैन खड़ी है और उसमें संघ के नेता बैठे हैं। पूरे दफ्तर को पुलिस ने घेर रखा था। तभी मैंने स्कूटर घुमाया और पुलिस को चकमा देकर वहां से निकल गया।”
सियासत के जादूगर कहे जाने वाले मोदी ने इमरजेंसी के दौरान भी गिरफ्तारी से बचने के लिए ऐसी ही जादूगरी दिखाई थी। मोदी ने पुलिस से बचने के लिए कभी कॉलेज स्टूडेंड तो कभी स्वामी का रूप बदला। मोदी की इस चाल से पुलिस बेखबर रही। मोदी ने उस समय अपने करीबी दोस्त हरेन व्यास के घर को अपना ठिकाना बनाया हुआ था। हरेन भाई उस समय को याद करते हुए बताते हैं “मोदी कभी किसी भी चीज की मांग नहीं करते थे.. वे बहुत ही साधारण तरीके से से रहते थे और अपनी हर तकलीफ वो खुद उठाते थे”
मोदी इमरजेंसी के खिलाफ अंडरग्राउंड रहकर काम कर रहे थे। वो कुछ ऐसा करना चाह रहे थे जिससे युवा जागरुक हो सकें..युवाओं में इमरजेंसी के खिलाफ जोश भरने के लिए ''साधना'' नाम की एक पत्रिका निकाली गई.. हालांकि मोदी के कई साथी सरकार विरोधी इस पत्रिका के खिलाफ थे.. लेकिन मोदी की राय जुदा थी और उन्होंने ना सिर्फ इस पत्रिका का समर्थन किया बल्कि इसे छापने का भी निर्णय लिया।
मोदी की मेहनत की बदौलत ही साधना पत्रिका के साथ हिंदी और गुजराती भाषा में कई पत्रिकाएं निकलने लगीं थीं। जिनके आने का इंतज़ार गुजरात में ही नहीं बल्की देश के कई राज्यों के लोगों को होता था..और इसे बांटने के लिए खुद मोदी ही जाते थे..इमरजेंसी के दौरान मोदी के साथी रहे लोगों का मानना है की ये उनकी जीजिविशा ही थी जिसकी वजह से पुलिस उन्हें छू भी नहीं सकी..