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Uttarakhand News: राष्ट्रीय बाल आयोग के अध्यक्ष ने मदरसों पर जताई चिंता, कहा- '70 साल बाद भी देश में कोई नीति नहीं'

उत्तराखंड में राष्ट्रीय बाल आयोग के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने मदरसों को लेकर चिंता जताई है. उन्होंने यह भी कहा कि देश में 70 साल बाद भी कोई नीति नहीं बनी. वहीं मदरसों में बुनियादी सुविधाओं की कमी भी है.

Uttarakhand News: राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के अध्यक्ष प्रियांक कानूनगो उत्तराखंड पहुंचे थे. उन्होंने यहां कई मदरसे में जाकर छापेमारी की. उसके बाद सरकार के अधिकारियों के साथ बैठक बाद में मीडिया से बात करते हुए उन्होंने बताया कि देहरादून में 3 ऐसे मदरसे पाए गए जहां बाहर से लाकर बच्चो को इलामिक शिक्षा दी जा रही है. इसमें बिहार और उत्तरप्रदेश के बच्चे शामिल है इन मदरसों को खिलाफ कार्यवाही के लिए हमने अल्पसंख्यक विभाग को 15 दिन का समय सिया है उसके बाद पुलिस को आगे की कार्यवाही के लिए लिखा जाएगा.

प्रियांक ने साथ ही उत्तराखंड की सरकार को भी आड़े हाथों लिया और सरकार पर भी कई अरूप लगाए, आयोग के द्वारा जब छापेमारी की गई तो देहरादून के मदरसा वली उल्लाह दहलवी व मदरसा दारुल उलूम के निरीक्षण के दौरान पाया कि इनमें न सिर्फ अन्य राज्यों के बच्चे पढ़ रहे हैं, बल्कि इनमें बुनियादी सुविधाओं की भी कमी है.जहां बच्चे सोते हैं, वहीं खाना बनता है. जहां दीनी तालीम पढ़ते हैं, वहीं लोग नमाज भी पढ़ने आते हैं.

'मदरसों में बुनियादी सुविधाओं की कमी'
बाल संघरक्षक आयोग के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रियांक कानूनगो ने राज्य सरकार पर भी आरोप लगाया. उन्होंने कहा की प्रदेश में ना जाने कितने ही मदरसे बिना रजिस्ट्रेशन के चल रहे है और उनमें हिंदू बच्चे भी शिक्षा ले रहे है. जबकि हर बच्चे की शिक्षा की जिम्मेदारी राज्य सरकार की है. उनको स्कूल खोने पड़ेंगे. अगर राज्य सरकार ऐसा नहीं करेगी तो हम स्कूल खोलेंगे. वही कानूनगो ने कहा की हमने मदरसों की मैपिंग के लिए 10 जून तक का समय दिया गया है. आयोग ने मदरसा वली उल्लाह दहलवी व मदरसा दारूल उलूम के निरीक्षण के दौरान पाया कि इनमें न सिर्फ अन्य राज्यों के बच्चे पढ़ रहे है. बल्कि इनमें बुनियादी सुविधाओं की भी कमी है. 

'70 साल बाद भी कोई नीति नहीं बनी'
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के अध्यक्ष ने कहा, बिना मान्यता एवं डमी मदरसों और विद्यालयों के मामले में यदि जिला शिक्षा अधिकारी एवं राज्य के शिक्षा अधिकारी शामिल हैं तो उनके खिलाफ कार्रवाई हो. सड़क पर रहने वाले बच्चों के पुनर्वास के मामले में कहा, उत्तराखंड में सर्वे चल रहा है. देश में 70 साल बाद भी इस तरह के बच्चों के लिए कोई नीति नहीं बनी. पहली बार केंद्र सरकार ने सर्वे कर आयोग के माध्यम से इन बच्चों के लिए एसओपी बनाई है. आरटीई के तहत आठवीं कक्षा के बाद बच्चों के पढ़ाई के बारे में उन्होंने कहा इस मसले पर आयोग की ओर से विभिन्न स्तरों पर चर्चा हो चुकी है.

वही प्रियांक कानूनगो ने बताया की हमारे संज्ञान में आया है कि उत्तराखंड के कई जिलों के जिला अधिकारी आयोग का सहयोग नही करते. हम जल्द ही उत्तराखंड के सभी आला अधिकारियों को नोटिस जारी कर दिल्ली बुलाएंगे. किसी भी हाल में किसी भी बच्चे के साथ कोई अन्याय नहीं होने दिया जाएगा. अल्पसंख्यक बच्चो को भी पड़ने का अधिकार है. हम उनको शिक्षा से वंचित नहीं होने देंगे. राज्य सरकार को उसकी जिम्मेदारी समझनी होगी.

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