गोरखपुर शहर से पूरब में स्थित कुसम्ही जंगल में बुढ़िया माता का मंदिर जिले में काफी प्रसिद्ध है. मंदिर के महंत रामकृष्ण त्रिपाठी बताते हैं कि दूर-दराज से श्रद्धालु यहां पर दर्शन के साथ मुंडन और अन्य शुभ संस्कार करने के लिए आते हैं. नवरात्रि के अवसर पर आस्था के प्रतीक देवी मां के इस मंदिर में श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है. यहां आने वाले श्रद्धालु पूरी श्रद्धा के साथ मां की पूजा अर्चना करते हैं. हलवा-पूड़ी बनाते हैं और माता के चरणों में अर्पित करते हैं. नवरात्रि में 9 दिन का व्रत रखने वाले श्रद्धालु माता के दरबार में मत्था टेकने जरूर आते हैं. गोरखपुर और आसपास के जिलों के अलावा नेपाल से भी यहां पर श्रद्धालुओं के आने का सिलसिला साल भर जारी रहता है.
क्या है मंदिर का इतिहास
गोरखपुर के कुसम्ही जंगल में स्थित बुढ़िया माता का मंदिर सदियों से श्रद्धालुओं की आस्था का प्रतीक बना हुआ है. मान्यता है कि लकड़ी के पुलिया के पास बैठी बुढ़िया माता ने वहां से जा रही बारात के लोगों से नाच दिखाने के लिए कहा. बारात में शामिल जोकर ने तो नाच दिखा दिया, लेकिन किसी और ने उन्हें नाच नहीं दिखाया. लकड़ी की पुलिया पर जब बारात चढ़ी तभी पुलिया टूट गई और सारे बाराती पोखरे में डूब कर मर गए. तभी से लोग बुढ़िया माता के मंदिर में दर्शन करने के लिए आते हैं. शारदीय नवरात्रि में इस मंदिर में श्रद्धालुओं की भीड़ दर्शन के लिए जुट जाती है. मान्यता है कि यहां जो भी मुराद मांगो वह पूरी हो जाती है.
सदियों पुराने बुढ़िया माता के मंदिर में श्रद्धालु बरसों से हर नवरात्रि पर यहां आते हैं. यहां आने वाले श्रद्धालुओं की सारी मनोकामनाएं भी पूरी होती हैं. बुढ़िया माता उन्हें आशीर्वाद देती हैं और उन्हें धन-धान्य से परिपूर्ण करती हैं.
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