Mirzapur News: नवरात्र (Navratri 2022) के सातवें दिन विन्ध्य पर्वत पर कालीखोह में विराजमान कालरात्रि मां (Kalratri Maa) की पूजा अर्चना की जाती है. मां कालरात्रि का स्वरूप देखने में अत्यंत भयानक है, इनका वर्ण अंधकार की भांति काला है. केश बिखरे हुए हैं, कंठ में विद्युत की चमक वाली माला है. मां कालरात्रि के तीन नेत्र ब्रह्माण्ड की तरह विशाल और गोल हैं, जिनमें से बिजली की भांति किरणें निकलती रहती हैं. इनकी नासिका से श्वास तथा नि:श्वास से अग्नि की भयंकर ज्वालायें निकलती रहती हैं.


दुष्टों के लिए मां कालरात्रि का भयंकर है रूप
मां का यह भय उत्पन्न करने वाला स्वरूप केवल पापियों का नाश करने के लिए है. मां कालरात्रि अपने भक्तों को सदैव शुभ फल प्रदान करने वाली होती हैं. इस कारण इन्हें शुभंकरी भी कहा जाता है. दुर्गा पूजा के सप्तम दिन साधक का मन सहस्त्रार चक्र में अवस्थित होता है. भक्तों को अभय प्रदान करने वाली माता गर्दभ (गदहा ) पर सवार चार भुजा धारण किये हुए है. दुष्टों के लिए माता का रूप भयंकर है, वहीं भक्तों के लिए कल्याणकारी है. मां की महिमा अपरम्पार है,  इनके गुणों का बखान देवताओं ने भी किया है. मां का दर्शन पूजन करने से भक्तों की सारी मनोकामनाएं पूरी होती है. नवरात्र में मां शक्ति के नौ रूपों की आराधना की जाती है.


 विंध्य पर्वत पर त्रिकोण पथ पर स्थित मां काली आकाश की ओर अपने खुले मुख से असुरों का रक्तपान करते हुए भक्तों को अभय प्रदान करती है. यह रूप उन्होंने दुष्टों के विनाश के लिए बनाया हुआ है. मधु कैटभ नामक महापराक्रमी असुर से जीवन की रक्षा हेतु भगवान विष्णु को निंद्रा से जगाने के लिए ब्रह्मा जी ने इसी मंत्र से मां की स्तुति की थी. यह देवी काल रात्रि ही महामाया हैं और भगवान विष्णु की योगनिद्रा हैं. इन्होंने ही सृष्टि को एक दूसरे से जोड़ रखा है. देवी काल-रात्रि का वर्ण काजल के समान काले रंग का है जो अमावस की रात्रि से भी अधिक काला है. मां कालरात्रि के तीन बड़े-बड़े उभरे हुए नेत्र हैं जिनसे मां अपने भक्तों पर अनुकम्पा की दृष्टि रखती हैं.देवी की चार भुजाएं हैं दायीं ओर की उपरी भुजा से महामाया भक्तों को वरदान दे रही हैं और नीचे की भुजा से अभय का आशीर्वाद प्रदान कर रही हैं. बायीं भुजा में क्रमश: तलवार और खड्ग धारण किया है. 


देवी कालरात्रि को लेकर यह है मान्यता
देवी कालरात्रि के बाल खुले हुए हैं और हवाओं में लहरा रहे हैं. देवी काल रात्रि गर्दभ पर सवार हैं. मां का वर्ण काला होने पर भी कांतिमय और अद्भुत दिखाई देता है. देवी कालरात्रि का यह विचित्र रूप भक्तों के लिए अत्यंत शुभ है.अत: देवी को शुभंकरी भी कहा गया है. कालरात्रि भगवती का स्वरूप बहुत ही विकराल है. कालों का शमन  कर देने वाली माता माया से आच्छादित है. मां को इस रूप में नाना प्रकार के व्यंजनों का भोग लगाते है. 


विशेष रूप से मधु और महुआ के रस के साथ गुड़ का भोग होता है. सभी पापों का नाश कर अभय प्रदान करने वाली है, जगत जननी माता के दरबार में पहुंचे भक्त माँ के भव्य रूप का दर्शन कर परम शांति का अनुभव करते है. विंध्य पर्वत पर विराजमान मां काली त्रिकोण पथ पर अवस्थित होकर सभी भक्तों का कल्याण कर रही हैं. दूर-दूर से आए भक्तों का कहना है कि मां सभी की मनोकामना पूर्ण कर देती हैं. देवी का यह रूप ऋद्धि सिद्धि प्रदान करने वाला है. 


दुर्गा पूजा का सातवां दिन तांत्रिक क्रिया की साधना करने वाले भक्तों के लिए अति महत्वपूर्ण होता है. सप्तमी पूजा के दिन तंत्र साधना करने वाले साधक मध्य रात्रि में देवी की तांत्रिक विधि से पूजा करते हैं. इस दिन मां की आंखें खुलती हैं. षष्ठी पूजा के दिन जिस विल्व को आमंत्रित किया जाता है उसे आज तोड़कर लाया जाता है और उससे मां की आंखें बनती हैं.दुर्गा पूजा में सप्तमी तिथि का काफी महत्व बताया गया है. इस दिन से भक्त जनों के लिए देवी मां का दरवाजा खुल जाता है और भक्तगण पूजा स्थलों पर देवी के दर्शन हेतु पूजा स्थल पर जुटने लगते हैं. शास्त्रों में जैसा वर्णित हैं उसके अनुसार पहले कलश की पूजा करनी चाहिए फिर नवग्रह, दशदिक्पाल, देवी के परिवार में उपस्थित देवी देवता की पूजा करनी चाहिए फिर मां कालरात्रि की पूजा करनी चाहिए, देवी की पूजा से पहले उनका ध्यान करना चाहिए.


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