NEET Result: रोज 70 किलोमीटर की दूरी तय करती थीं आकांक्षा, पहले प्रयास में हासिल किया ऑल इंडिया 2nd रैंक
आकांक्षा ने 720 में 720 अंक प्राप्त किए हैं लेकिन कम उम्र होने की वजह से उसे दूसरा स्थान मिला है. आकांक्षा की कामयाबी पर उसका परिवार और इलाके के लोग बहुत खुश हैं.
कुशीनगर: प्रतिभा किसी की मोहताज नहीं होती है. छोटे-छोटे कस्बों से भी अब ऐसी प्रतिभाएं निकल रहीं हैं जो पूरे देश में अपनी प्रतिभा का डंका बजा रही हैं. कुशीनगर की आकांक्षा ने भी कुछ ऐसा ही कारनामा किया है. आकांक्षा ने मेडिकल की नीट परीक्षा में ऑल इंडिया रैंकिंग में दूसरा स्थान हासिल करके अपने परिवार के साथ ही प्रदेश का नाम भी रोशन किया है.
आकांक्षा के पिता राजेंद्र कुमार राव ने अपनी बेटी के करियर को संवारने के लिए एयरफोर्स की नौकरी से वीआरएस ले ली थी. पेशे से प्राथमिक स्कूल में पढ़ाने वाली आकांक्षा की मां रूचि सिंह रोज अपनी बेटी को कोचिंग भेजने के लिए खुद स्कूटी से जाती थी और रात में उसके आने का बस स्टॉप पर इंतजार करती थी. परिवार इस बात से बहुत खुश है जिस आकांक्षा के लिए उन्होंने इतना प्रयास किया उसने उनकी आकांक्षा पूरी कर दी. राजेन्द्र कुमार राव और रुचि सिंह के दो संतानों में आकांक्षा बड़ी बेटी है.
आकांक्षा की सफलता से काफी खुश हैं इलाके के लोग आकांक्षा की सफलता ने ना केवल परिवार को गौरवान्वित किया है बल्कि पूरे इलाके के लोग इससे काफी खुश हैं. लोग आकांक्षा को सम्मानित करने उसके घर पहुंच रहे हैं. हालांकि कम उम्र होने के कारण आकांक्षा को देश में दूसरा स्थान मिला है लेकिन उसने 720 में से 720 नंबर प्राप्त किए हैं.
नीट परीक्षा में पहले प्रयास में ही देश में दूसरा स्थान पाने वाली आकांक्षा ने अपनी सफलता का श्रेय भगवान और अपने माता-पिता को दिया है. आकांक्षा भविष्य में न्यूरो की डॉक्टर बनना चाहती हैं.
प्राइमरी से लेकर हाई स्कूल तक की शिक्षा कसया नगर के एक निजी विद्यालय में पढ़ाई करने वाली आकांक्षा इंटर में दिल्ली के एक स्कूल में पढ़ने चली गई थी लेकिन बाद में लॉकडॉउन होने के कारण घर आ गई थी. इस दौरान उसने खाली समय का सदुपयोग किया. आकांक्षा ने कक्षा 9 से ही गोरखपुर स्थित आकाश इंस्टीट्यूट से कोचिंग शुरू कर दी थी.
70 किलोमटीर दूर कोचिंग के लिए जाती थी आकांक्षा आकांक्षा सप्ताह में 4 दिन रोडवेज बस से 70 किलोमीटर दूर गोरखपुर जाकर कोचिंग लेती थीं और रात में 9 बजे तक लौटती थीं. अपनी बेटी को लाने के लिए रुचि सिंह पहले से ही बस स्टॉप पर इंतजार करती थीं. आकांक्षा के भविष्य को देखते हुए एयरफोर्स में सार्जेंट पद पर तैनात उसके पिता राजेन्द्र कुमार राव ने 2017 में वीआरएस ले ली थी और लेकर उसके साथ दिल्ली चले गए थे.
एक मध्यम वर्गीय परिवार के मुखिया द्वारा अनिवार्य सेवानिवृत्ति जैसा निर्णय लेना साहसिक था. आकांक्षा के पिता का कहना था कि बेटी की प्रतिभा को देखते हुए उन्होंने यह निर्णय लिया था जिसे उसने सही साबित किया.
आकांक्षा की मां रुचि सिंह पेशे से प्राथमिक विद्यालय में अध्यापक हैं. अपनी बेटी का करियर को संवारने के लिए रुचि सिंह ने भी कड़ी मेहनत की है. स्कूल से आने के बाद रुचि अपनी बेटी आकांक्षा को रोडवेज बस में बैठाने के लिए ले जाती थी और फिर रात में रोडवेज बस स्टॉप पर जाकर अपनी प्रतिभावान बेटी का इंतजार करती थी. रूचि सिंह का कहना है कि आज बेटी की रैंक देखकर उन्हें लगता है कि उनकी ओर उनके परिवार की मेहनत सफल हो गई है .
आकांक्षा की सफलता की सूचना मिलते ही स्थानीय विधायक भी आकांक्षा के घर बधाई देने पहुंच गए. विधायक रजनीकांत मणि ने आकांक्षा को शाल भेंट कर सम्मानित किया. उन्होंने आकांक्षा को माता सरस्वती का एक चित्र भी भेंट किया. विधायक ने कहा आकांक्षा ने हम सभी के आकांक्षाओं को पूरा किया है. इसने देश के साथ अपने जिले का भी नाम रोशन किया है.
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