Ganga Pollution: राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव को बलिया जिले में गंगा नदी (Ganga River) के प्रदूषण से संबंधित एक मामले में दोषी अधिकारियों की जिम्मेदारी तय करने सहित उपचारात्मक कार्रवाई सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है. 


अधिकरण गंगा से जुड़े कटहल नाले में सीवेज और अपशिष्ट को बहाए जाने का दावा करने वाली याचिका पर सुनवाई कर रहा था. लगभग दो करोड़ लीटर अपशिष्ट पानी प्रति दिन नाले के माध्यम से नदी में बहाये जाने का उल्लेख करते हुए एनजीटी अध्यक्ष न्यायमूर्ति ए के गोयल की पीठ ने कहा, ‘‘हम राज्य प्रशासन की विफलता, विशेष रूप से सार्वजनिक धन की बर्बादी और गंगा नदी को होने वाले नुकसान को रोकने के लिए दोषी अधिकारियों को जवाबदेह ठहराने में नाकामी पर अप्रसन्नता व्यक्त करते हैं.’’


पीठ में न्यायिक सदस्य न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल और विशेषज्ञ सदस्य ए सेंथिल वेल तथा अफरोज अहमद भी शामिल हैं. पीठ ने कहा, ‘‘मुख्य सचिव राज्य में संबंधित अन्य प्राधिकारों के साथ समन्वय करके वर्तमान मामले में उपचारात्मक कार्रवाई सुनिश्चित कर सकते हैं, जिसके लिए दोषी अधिकारियों की जिम्मेदारी तय करने सहित उपचारात्मक उपायों की योजना बनाने और उन्हें क्रियान्वित करने के लिए एक महीने के भीतर संबंधित अधिकारियों की एक विशेष बैठक बुलाई जाएगी.’’


पीठ ने कहा कि एनजीटी के पहले के आदेश के अनुसार दाखिल की गई एक कार्रवाई रिपोर्ट में बुनियादी जिम्मेदारी से बचने के बहाने पैसे की भारी मांग को छोड़कर राज्य के अधिकारियों की ‘‘बिल्कुल निष्क्रियता’’ दिखी. पीठ ने कहा कि पहले आवंटित धन का उपयोग नहीं किया गया, न ही स्थानीय स्तर पर धन एकत्र करने का कोई प्रयास किया गया और दोषी अधिकारियों पर जवाबदेही तय की गई.


चार महीने के भीतर कार्रवाई रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश देते हुए एनजीटी ने मामले को 23 अगस्त के लिए सूचीबद्ध किया. याचिका के अनुसार नाले के लिए प्रस्तावित सीवेज परियोजना का ठेका एक निजी कंपनी को दिया गया था, लेकिन भारी राशि खर्च करने के बावजूद पिछले 13 वर्षों के दौरान सीवेज नेटवर्क स्थापित नहीं किया गया, जिसके परिणामस्वरूप शहर का अपशिष्ट पानी ‘‘लगातार’’ गंगा नदी में बह रहा है. 


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