एबीपी गंगा। देश की राजधानी दिल्ली में लगातार कोरोना वायरस (Coronavirus) के मामले बढ़ते जा रहे हैं। निजामुद्दीन मामले ने शासन और प्रशासन दोनों की टेंशन और बढ़ा दी है। इस बीच सोमवार को तेलंगाना में कोरोना संक्रमित छह लोगों की मौत हो गई है। बताया जा रहा है कि ये सभी लोग दिल्ली के निजामुद्दीन स्थित तब्लीगी जमात के मरकज (सेंटर) के कार्यक्रम में शामिल थे। इस धार्मिक कार्यक्रम में देश के अलग-अलग हिस्सों से लेकर दुनिया के कई देशों के लोग शामिल हुए थे। इसमें मलेशिया और इंडोनेशिया से आए लोग भी शामिल हुए थे। इस मामले के सामने आने के बाद अब केंद्र और राज्य सरकार दोनों उन लोगों को ढूंढने में जुट गई हैं, जिन्होंने इस कार्यक्रम में हिस्सा लिया था।


मरकज से जुड़े 24 लोग कोरोना पॉजिटिव


ऐसे समय में जब कोरोना वायरस के खतरे की वजह से देश लॉकडाउन है, निजामुद्दीन मामले में सरकार की कोशिशों पर पानी फेरने जैसा काम किया है। जानकारी के मुताबिक, तब्लीगी जमात मरकज से जुड़े 24 लोग कोरोना पॉजिटिव (Nizamuddin Markaz Coronavirus Case) निकले हैं। इसके अलावा दिल्ली के दो अलग-अलग अस्पतालों में 228 संदिग्ध मरीजों को भी भर्ती कराया गया है। जिनकी रिपोर्ट आनी अभी बाकी है। जिस वजह से कोरोना संक्रमण के खतरे की संभावना बढ़ गई है, जिसने हर किसी को चिंतित कर दिया है।



कब हुई तब्लीगी जमात की शुरुआत


कोरोना वायरस के खतरे और देश में लॉकडाउन (Lockdown In India) की चर्चा के बीच सोमवार से तब्लीगी जमात (Tablighi Jamaat ) का नाम लगातार चर्चे में हैं। ऐसे में ये जानना भी जरूरी है, आखिर ये तब्लीगी जमात है क्या और इसकी कब शुरुआत हुई थी। दावा किया जाता है कि दुनिया का ऐसा कोई भी मुल्क नहीं है, जहां पर तबलीगी जमात की पहुंच न हो। हर साल भोपाल में लाखों की भीड़ के साथ जमात एक बड़ा इज़्तिमा भी करती है। साथ ही, बड़े स्तर पर मेवाल और महाराष्ट्र में भी जमात द्वारा आयोजित इज़्तिमा होते हैं। बताया जाता है कि कई लोगों ने मुगल काल में कुबूल लिया था, लेकिन इसके बावजूद वो हिंदू परंपरा और रीती-रिवाजों का पालन कर रहे थे। जब भारत में अंग्रेजों की हुकूमत आई, उसके बाद आर्य समाज ने इन लोगों को दोबारा हिंदू बनाने के लिए शुद्धिकरण अभियान शुरू किया। वहीं, मौलाना इलियास कांधलवी ने अपने धर्म के प्रसार-प्रचार के लिए इस्लाम की शिक्षा देने का काम शुरू किया। जिसके बाद दिल्ली के निजामुद्दीन में स्थित मस्जिद साल 1926-27 में कांधलवी ने ही कुछ लोगों के साथ मिलकर तबलीगी जमात का गठन किया। जिसके जरिए उन्होंने मुसलमानों को अपने ही धर्म में बने रहने, इस्लाम का प्रचार-प्रसार और इससे जुड़ी जानकारी देनी लोगों को शुरू की।


तब्लीगी जमात मरकज का मतलब क्या है


अल्लाह की कही बातों का प्रचार करने वाले को तब्लीगी कहते हैं। वहीं, जमात का मतलब होता है समूह। जिसका मतलब हुआ अल्लाह की कही बातों का प्रचार करने वाला समूह। वहीं, मरकज का मतलब है, मीटिंग की जगह। बता दें कि तब्लीगी जमात से जुड़े सदस्य पारंपरिक इस्लाम को मानते हैं और अल्लाह की कही बातों के प्रचार-प्रसार का काम करते हैं।



तब्लीगी जमात का मकसद


छह उसूलों पर काम करना तब्लीगी जमात का मुख्य मकसद हैं, ये उसूल- कलिमा, सलात, इल्म, इक्राम-ए-मुस्लिम, इख्लास-ए-निय्यत, दावत-ओ-तबलीग थे। इसी के तहत इस जमात से जुड़े लोग दुनियाभर में हैं और इस्लाम के प्रचार-प्रसार का काम करते हैं।


तब्लीगी जमात कैसे करती है काम


दिल्ली स्थिति तब्लीगी जमात के मरकज से ही देश और दुनिया के अलग-अलग हिस्सों के लिए तमाम जमातें निकलती हैं। ये संख्या में बांटा गया है। ये जमात कम से कम तीन दिन की होती है। उसके बाद ये संख्या पांच दिन, 10 दिन, 40 दिन और चार महीने तक की होती हैं। इसकी एक जमात यानी समूह में 8-10 लोग शामिल होते है। जिनमें दो लोग सेवा के लिए होते हैं, जो खाने-पीने की व्यवस्था करते हैं। इसी जमात में शामिल लोग सुबह और शाम शहर में निकलते हैं और लोगों को नजदीकी मस्जिद में इकट्ठा होने के लिए कहते हैं। ये सुबह 10 बजे हदीस पढ़ते हैं। इनको द्वारा नमाज पढ़ने और रोजा रखने पर विशेष जोर दिया जाता है।


तब्लीगी जमात से जुड़े कुछ दावे


भारत में तब्लीगी जमात का मुख्य ऑफिस दिल्ली में हज़रत निजामुउद्दीन दरगाह के पास मरकज़ के नाम से है। इस जमात से जुड़े उलेमाओं का दावा है कि मौजूदा वक्त में ऐसा कोई देश नहीं है, जहां जमात न फैला हो। दुनियाभर में जमात से करीब 15 करोड़ लोग जुड़े हुए हैं। उलेमाओं का ये भी कहना है कि जमात किसी भी तरह की सरकारी मदद नहीं लेती है। इसकी कोई भी अपनी बेवसाइट, अखबार या फिर टीवी चैनल नहीं है। जमात अपना एक अमीर यानी अध्यक्ष चुनता है, उसी के मुताबिक सारे काम या कार्यक्रम करता है।


पहली जमात लेकर कहां गए थे इलियास कांधलवी


बताया जाता है कि दिल्ली से सटे हरियाणा के मेवात इलाके के नूह कस्बे में इलियास कांधलवी ने पहली जमात लेकर गए थे। जहां पर उन्होंने मेवाती समुदाय को नमाज, कलमा सहित इस्लामिक शिक्षा सिखाने पर जोर दिया था। उन्होंने मुस्लिम समुदाय से ताल्लुक रखने वालों को इस्लाम की शिक्षा देने के बारे में कहा था।
दावा किया जाता है कि आज इस जमात का काम दुनिया के लगभग 213 देशों तक फैला हुआ है।



जमात का पहला जलसा


भारत में साल 1941 में तब्लीगी जमात का पहला धार्मिक कार्यक्रम या कहे जलसा हुआ था, जिसमें करीब 25,000 लोगों ने हिस्सा लिया था। बताया जाता है कि 1940 तक जमात का कामकाज केवल भारत तक की सीमित था, लेकिन अब इसके शाखाएं कई प्रमुख देशों में हैं। पाकिस्तान, बांग्लादेश समेत कई देशों में ये फैल चुका है। हर साल ये जमात एक बड़ा जलसा आयोजित करती है, जिसे इज्तेमा कहते हैं। जिसमें दुनियाभर के लाखों मुसलमान हिस्सा लेते हैं।


जमात पर कब, कौन-कौन से आरोप लगे हैं


17 नवंबर, 2011
विकिलीक्स ने  तब्लीगी जमात पर कई बड़े खुलासे करते हुए उसके और आतंकी संगठन अलकायदा के बीच संपर्क होने की बात कही थी। उसने दावा किया कि तब्लीगी जमात की मदद से भारत में अलकायदा के नेटवर्क से जुड़े लोगों को रुपया और वीजा हासिल किया जा रहा है। हालांकि, जमात के उलेमाओं ने इन आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए कहा था कि जमात सिर्फ धर्म का प्रचार-प्रसार करती है और इसी के लिए एक जगह से दूसरी जगह जाती है।


18 जनवरी 2016
हरियाणा के मेवात स्‍थित नूहु से दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने अलकायदा के एक संदिग्ध को गिरफ्तार किया था। बताया जाता है कि ये संदिग्ध अपराधी जमात में शामिल था, जो झारखंड से मेवात पहुंचा था। तब दो अन्य संदिग्धों को भी दिल्ली पुलिस ने अलग-अलग जगहों से हिरासत में लिया था। 


जमात से जुड़े उलेमा पर आरोप
बीते रोज जमात से जुड़े एक उलेमा पर गंभीर आरोप लगा था। जिनका नाम मोहम्मद सलमान है। आरोप था कि ये हरियाणा के पलवल में एक मस्जिद बनवा रहे थे, जिसके निर्माण में आतंकी हाफिज सईद की पैसा लगा था। ये आरोप नेशनल इंवेस्टीगेशन एजेंसी (एनआईए) ने लगाते हुए बताया था कि इस मस्जिद के निर्माण के लिए पैसा हाफिज सईद के फलाह-ए-इंसानियत फाउंडेशन से जुड़े एक व्यक्ति से लिया गया था, जो खाड़ी देश में रह रहा था।


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