अयोध्या में बन रही मस्जिद के ट्रस्ट में सरकारी प्रतिनिधि शामिल करने की मांग खारिज, SC ने सुनवाई से किया इंकार
सुप्रीम कोर्ट ने पूरी विवादित ज़मीन हिंदू पक्ष को दी थी. वहां मंदिर के निर्माण और व्यवस्था के लिए एक ट्रस्ट के बना कर उसमें केंद्र और राज्य सरकार के प्रतिनिधियों को भी रखने का आदेश दिया था. कोर्ट ने सुन्नी वक्फ बोर्ड को भी अयोध्या में अलग से 5 एकड़ जमीन दी, जिसमें वह मस्जिद बना सके. लेकिन उसके निर्माण और देखरेख में सरकार की कोई भूमिका तय नहीं की.
नई दिल्ली: अयोध्या में 5 एकड़ वैकल्पिक जमीन में बन रहे मस्जिद के ट्रस्ट में सरकारी प्रतिनिधि भी शामिल करने पर सुनवाई से सुप्रीम कोर्ट ने मना कर दिया है. याचिका में कहा गया था कि अयोध्या में शांति और सौहार्द बनाए रखने के लिए ऐसा करना जरूरी है.
वकील शिशिर चतुर्वेदी और करुणेश शुक्ला ने इस मामले में याचिका दाखिल की थी. दोनों ने अयोध्या विवाद पर पिछले साल 9 नवंबर को आए फैसले का हवाला दिया था. इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने पूरी विवादित ज़मीन हिंदू पक्ष को दी थी. वहां मंदिर के निर्माण और व्यवस्था के लिए एक ट्रस्ट के बना कर उसमें केंद्र और राज्य सरकार के प्रतिनिधियों को भी रखने का आदेश दिया था. कोर्ट ने सुन्नी वक्फ बोर्ड को भी अयोध्या में अलग से 5 एकड़ जमीन दी, जिसमें वह मस्जिद बना सके. लेकिन उसके निर्माण और देखरेख में सरकार की कोई भूमिका तय नहीं की.
याचिकाकर्ताओं ने कहा था कि केंद्र सरकार ने कोर्ट के आदेश का पालन करते हुए ‘राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र’ नाम के ट्रस्ट का गठन किया. इसमें केंद्र और राज्य सरकार के एक-एक अधिकारी को सदस्य बनाया गया. अयोध्या के डीएम को भी ट्रस्टी का दर्जा दिया गया. दूसरी तरफ, यूपी सरकार ने कोर्ट के आदेश का पालन करते हुए अयोध्या के धन्नीपुर गांव में सुन्नी वक्फ बोर्ड को 5 एकड़ जमीन दे दी. 29 जून को वक्फ बोर्ड ने मस्ज़िद निर्माण की व्यवस्था संभालने के लिए ‘इंडो इस्लामिक कल्चरल फाउंडेशन’ नाम के ट्रस्ट के एलान किया. लेकिन 15 सदस्य इस ट्रस्ट में सरकार के किसी प्रतिनिधि को शामिल नहीं किया गया.
अयोध्या मामले में हिंदू पक्ष के वकील रहे दोनों याचिकाकर्ताओं ने कहा था कि अयोध्या में शांति बनाए रखना बहुत ज़रूरी है. मस्जिद के निर्माण के लिए देश से ही नहीं बल्कि विदेशों से भी चंदा आ रहा है. जब वहां मस्जिद, हॉस्पिटल, लाइब्रेरी, सांस्कृतिक केंद्र आदि का निर्माण हो जाएगा, तब वहां हजारों लोग आएंगे. ऐसे में यह बहुत जरूरी है कि ट्रस्ट की कामकाज और वहां आने वाले लोगों पर सरकार की भी नजर रहे. इसके लिए ट्रस्ट में कुछ सरकारी प्रतिनिधियों को भी शामिल किया जाना चाहिए. याचिकाकर्ताओं ने सुझाव दिया था कि सरकारी प्रतिनिधि मुस्लिम समुदाय से ही रखे जाएं.
आज यह मामला जस्टिस रोहिंटन नरीमन, नवीन सिन्हा और के एम जोसफ की बेंच में लगा. जजों ने याचिकाकर्ताओं के लिए पेश वकील हरिशंकर जैन को थोड़ी देर तक सुना. लेकिन याचिका में रखी गई मांग पर विचार पर सहमत नहीं हुए.