प्रयागराज, मोहम्मद मोईन। आयरन लेडी के नाम से मशहूर पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का जन्म प्रयागराज की जिस बिल्डिंग में हुआ था उस पर तकरीबन सवा चार करोड़ रूपये का हाउस टैक्स बकाया है। करोड़ों की रकम जमा नहीं किये जाने पर प्रयागराज के नगर निगम ने नोटिस जारी कर दिया है। नोटिस जारी होने के बाद इंदिरा की जन्मस्थली से लेकर दिल्ली के सियासी गलियारे तक हड़कंप मच गया है।


बिल्डिंग जिस ट्रस्ट द्वारा संचालित होती है, उसने अब सरकारी अमले को चिट्ठी लिखकर टैक्स को कम किये जाने व माफी की गुहार लगाई है। इंदिरा की जन्मस्थली पर करोड़ों के टैक्स बकाये को लेकर नोटिस जारी होने के बाद अब इस मुद्दे पर सियासत भी गरमाने लगी है। कांग्रेस नेताओं का आरोप है कि नेहरू-गांधी परिवार की पहचान को खत्म करने के इरादे से साजिश के तहत इस तरह का नोटिस जारी किया गया है, जबकि विवादों में घिरे नगर निगम का कहना है कि लम्बे अरसे से टैक्स जमा नहीं किये जाने की वजह से बकाया रकम इतनी बढ़ गई है और इसमें सब कुछ नियम के मुताबिक ही हुआ है।



प्रयागराज की मेयर अभिलाषा गुप्ता ने इस मामले में दखल देते हुए कहा है कि अगर बिल्डिंग चलाने वाला ट्रस्ट इसके चैरिटेबल होने और बिल्डिंग को राष्ट्र को समर्पित किये जाने के दस्तावेज देकर कोई अनुरोध करता है तो नियमों के मुताबिक टैक्स माफी पर जरूर विचार किया जाएगा।


इंदिरा की जन्मस्थली आनंद भवन और उसका दूसरा हिस्सा स्वराज भवन कभी नेहरू गांधी परिवार का पैतृक आवास हुआ करता था। आज़ादी की लड़ाई के दौरान यह इमारत आंदोलनकारियों की रणनीति का केंद्र होती थी तो साथ ही यह बिल्डिंग काफी दिनों तक कांग्रेस पार्टी का मुख्यालय भी रही है।


यह बिल्डिंग जवाहरलाल नेहरू मेमोरियल ट्रस्ट द्वारा संचालित होती है। इस ट्रस्ट में नेहरू गांधी परिवार के सदस्यों के साथ ही उनके करीबी दिग्गज कांग्रेसी नेता शामिल हैं। इस बिल्डिंग के अब तीन हिस्से हैं। आनंद भवन, स्वराज भवन व बाल भवन और प्लेनेटेरियम। बिल्डिंग के जिन हिस्सों को लोग देखने के लिए आते हैं, उनसे टिकट वसूला जाता है, इसी वजह से नगर निगम ने इसे कामर्शियल कैटेगरी का मानते हुए इस पर हर साल आठ लाख रूपये से ज़्यादा का टैक्स निर्धारित किया है। साल 2013 से पहले इस पर सालाना तेरह लाख रूपये का टैक्स लगाया गया था। इंदिरा के जन्मदिवस से ठीक पहले उनकी जन्मस्थली पर टैक्स को लेकर मचा कोहराम चर्चा का सबब बना हुआ है।


गौरतलब है कि इंदिरा गांधी के दादा मोतीलाल नेहरू ने इलाहाबाद में भारद्वाज आश्रम के पास एक बिल्डिंग खरीदी थी। पंडित नेहरू का बचपना व उनका सियासी संघर्ष इसी इमारत में बीता था। इंदिरा गांधी का जन्म इसी बिल्डिंग में 19 नवम्बर 1917 को हुआ था। इसी बिल्डिंग में इंदिरा की शादी हुई थी।



अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई के दौरान यह बिल्डिंग आंदोलन की रणनीति का केंद्र होती थी। मोतीलाल और जवाहर लाल नेहरू यहीं रहते थे तो साथ ही राष्ट्रपिता महात्मा गांधी भी अक्सर यहीं रुका करते थे। यह बिल्डिंग कई सालों तक कांग्रेस पार्टी का मुख्यालय भी रही है। पैतृक आवास और देश से जुड़ी तमाम यादों को साझा करने की वजह से ही आज़ादी के बाद 16 नवम्बर 1969 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इसे राष्ट्र को समर्पित करने का एलान कर दिया था। बाद में जवाहर लाल नेहरू मेमोरियल ट्रस्ट इस बिल्डिंग का संचालन करने लगा।


बिल्डिंग कैम्पस को कई हिस्सों में बांटकर अलग-अलग गतिविधियां संचालित की जाने लगीं। आनंद भवन में म्यूजियम बनाया गया, जिसमें नेहरू गांधी परिवार से जुड़ी यादों के साथ ही आज़ादी की लड़ाई से सम्बंधित चीजों को रखा गया। जवाहर तारामंडल के ज़रिये लोगों को विज्ञान की जानकारी दी जाती है। स्वराज भवन के कुछ हिस्से तक आम लोगों को जाने दिया जाता है, जबकि बाकी हिस्सा नेहरू गांधी परिवार के सदस्यों व ट्रस्ट से जुड़े लोगों के लिए आरक्षित रहता है।


सोनिया-राहुल और प्रियंका जब भी प्रयागराज आते हैं, इसी स्वराज भवन में रुकते हैं। इन सभी हिस्सों में जाने के लिए अब टिकट लगता है। बिल्डिंग के एक छोटे से हिस्से में अब अनाथालय चलता है। यह सभी बिल्डिंग्स दो लाख चौंतीस हजार पांच सौ स्क्वायर फिट में हैं।


किसी जमाने में इस बिल्डिंग पर सालाना छह सौ रूपये का टैक्स लगता था। ट्रस्ट साल दर साल इसका भुगतान भी करता था। साल 2003 से नियम बदलने के बाद प्रॉपर्टी के क्षेत्रफल और उस पर बने निर्माण के हिसाब से टैक्स लगने लगा। तब यह टैक्स बढ़कर लाखों में हो गया। इसी हिसाब से बिल्डिंग चलाने वाले ट्रस्ट को बिल भेजा जाने लगा। लेकिन ट्रस्ट ने बढ़ा हुआ बिल देने के बजाय सिर्फ छह सौ रूपये टैक्स ही भरता रहा।



साल 2009 में इस पर सालाना टैक्स बढ़ाकर तेरह लाख अठावन हजार रूपये कर दिया गया। जवाहर लाल नेहरू मेमोरियल ट्रस्ट ने इस साल भी टैक्स का भुगतान कर दिया है, लेकिन नगर निगम के बिल के मुताबिक नहीं, बल्कि अपने मनमाने छह सौ रूपये की दर से ही। नगर निगम बाकी रकम को न सिर्फ 2003 से बकाये में डालता जा रहा है, बल्कि उस पर चक्रवृद्धि ब्याज भी लगा रहा है।


नियमों में बदलाव के बाद साल 2014 में टैक्स तेरह लाख से घटाकर सवा आठ लाख रूपये कर दिया गया है। मौजूदा समय में इस बिल्डिंग पर दो करोड़ सात लाख बकाया और दो करोड़ चार लाख का ब्याज है। मौजूदा साल के सवा आठ लाख के टैक्स को जोड़ने के बाद कुल डिमांड चार लाख उन्नीस हज़ार की हो गई है।


बड़े बकायेदारों में शामिल होने के बाद नगर निगम ने नोटिस जारी कर दिया तो हड़कंप मच गया। ट्रस्ट के प्रशासनिक सचिव डा. एन. बालाकृष्णन ने चार दिन पहले सरकारी अमले को चिट्ठी भेजकर टैक्स का पुनर्मूल्यांकन करने, इसे घटाने व बढे हुए टैक्स को माफ़ करने की भी मांग की है। इस खत के ज़रिये यह बताया गया है कि बिल्डिंग का कोई कामर्शियल उपयोग नहीं है और यह चैरिटेबल ट्रस्ट है, इस नाते इस पर टैक्स नहीं लगना चाहिए।


हालांकि, ट्रस्ट के चैरिटेबल होने व इसे राष्ट्र को समर्पित किये जाने के कोई दस्तावेज नहीं दिए गए हैं। नगर निगम के टैक्स सुप्रीटेंडेंट पीके मिश्र का कहना है कि सब कुछ नियमों के मुताबिक ही हुआ है। ट्रस्ट ने कभी भी कोई आपत्ति दाखिल नहीं की थी और मनमाने तरीके से कुछ रकम जमा की जाती थी।



मेयर अभिलाषा गुप्ता का कहना है कि इस मामले में अगर कागजात देकर अपील की जाती है तो नियमों के मुताबिक उस पर ज़रूर विचार किया जाएगा। कांग्रेस नेताओं ने टैक्स के इस विवाद को सियासत से जोड़ते हुए इसमें सियासी साजिश होने की आशंका जताई है। कांग्रेसियों ने तो इस मामले में आंदोलन तक की धमकी दे डाली है। नेहरू गांधी परिवार ने इस मामले में अभी तक सोशल मीडिया पर भी कोई बयान जारी नहीं किया है।