आपने बड़े बड़े दावे सुने होंगे. पढ़े भी होंगे. उत्तर प्रदेश कैसे उत्तम प्रदेश बन रहा है. बदलाव के नए प्रतिमान गढ़ रहा है. कैसे क़ानून-व्यवस्था सख्त है. विकास की रफ्तार टकाटक है. सड़कें चकाचक है. बिजली ढिनचक है. पूरा प्रदेश चमक रहा है. चौबीस घंटे बिजली आपूर्ति से दमक रहा है....आदि..आदि.. दावों की पड़ताल करने पर कुछ सही होंगे कुछ ग़लत होंगे. ये ठीक है मगर राज की बात में आज बात रोशनी की, पावर की यानी बिजली की हो रही है. बिजली के हालात सुधरे हैं, ज्यादा आ रही है. ये दावा ठीक है, लेकिन उपभोक्ताओं को बिजली के बिलों की वजह से परेशान होना पड़ा रहा है, वह सबसे बड़ा सच है उत्तर प्रदेश में.


ख़ास बात है कि बिजली आपूर्ति को लेकर सवाल ज्यादा नहीं हैं. अपवादों को अगर छोड़ दें तो बिजली कमोबेश यूपी में ठीक या संतोषजनक है. इसके बावजूद उपभोक्ता परेशान हैं. कुछ बढ़ी बिजली दरों से तो ज्यादातर बिजली के ग़लत बिलों से.आज राज की बात में इन ग़लत बिलों के गुनहगारों पर उनके पनाहगारों पर होगी बात. कैसे सरकार के सख्त तेवरों और स्पष्ट निर्देशों के बावजूद उपभोक्ताओं को ग़लत बिलों को दुरुस्त कराने में जूझना पड़ा. साथ ही सरकार को इन ग़लत बिलों की वजह से राजस्व का भी हुआ नुक़सान. बावजूद इसके कैसे अफ़सरों का नहीं बदला काम करने का ढर्रा. और जब विभागीय मंत्री को खुलकर सामने आना पड़ा तो अफ़सर हटे तो, लेकिन कोई सजा जैसी पोस्टिंग के बजाय और बेहद अहम ज़िम्मेदारी से नवाज़ दिए गए.


सुर्खियों में रहा है यूपीपीसीएल का नाम
जी..देश के सबसे बड़े सूबे में वैसे भी कुछ छोटा नहीं होता. उत्तर प्रदेश के यूपीपीसीएल का नाम आपने खूब सुना होगा. यूपीपीसीएल उत्तर प्रदेश पावर कार्पोरेशन लिमिटेड पूरा नाम. ये नाम आपने पीएफ घोटाले को लेकर या बिजली के बिलों में कमियों और अन्य विवादों की वजह से ज्यादा सुना होगा बनिस्पत बिजली आपूर्ति वाली संस्था के रूप में. पीएफ घोटाले में ए.पी. मिश्र अंदर हैं, लेकिन उस समय जो ऊर्जा में प्रमु्ख सचिव और यूपीपीसीएल के चेयरमैन आलोक कुमार थे, उन्हें अब केंद्र में ऊर्जा सचिव बना दिया गया है.


इसी तरह बिलों के चक्कर में जो घालमेल चल रहा था, उसमें ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा के खुलकर सामने आने के बाद अरविंद कुमार को यूपीपीसीएल चेयरमैन और ऊर्जा सचिव से हटाया गया. लेकिन सही बिजली बिल बनवाने में नाकाम और राजस्व जुटाने में असफल रहने के बाद अरविंद कुमार को प्रदेश में उद्योग लगवाने और लाने की ज़िम्मेदारी सौंप दी गई. उन्हें औद्योगिक अवस्थापना विभाग में प्रमुख सचिव बनाया गया है.


बिजली बिलों की गड़बड़ी से सरकार की हुई किरकिरी
मतलब ग़लत बिलों से जनता हैरान हुई. उसका शोषण हुआ. बिजली के बिलों को सही कराने के नाम पर चक्कर काटने पड़े. कुछ को दलालों का सहारा लेकर पैसा देना पड़ा तब बिल सही हो पाए. जनता तो परेशान हुई ही और ग़लत बिलों का भुगतान लोग नहीं कर सके, इसलिए विभाग का भी नुक़सान हुआ. अब सबसे बड़ा सवाल यही है कि ऊर्जा मंत्री के बार-बार मोर्चा लेने के बाद तो चेयरमैन हटाए गए. मगर सवाल यही है कि यूपीपीसीएल की कार्यप्रणाली क्या अब सुधरेगी. निगम होने की वजह से यह स्वायत्त अंग है. बिजली बिलों की गड़बड़ी से लगातार प्रदेश सरकार की किरकिरी होती रही है और उपभोक्ताओं को खासी परेशानी उठाना पड़ रही है.


ऊर्जा मंत्री ने ही खोला मोर्चा
ये हम नहीं कह रहे. खुद ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा ने यूपीपीसीएल की कार्यप्रणाली से आजिज़ आकर पहले अपने स्तर पर सख्ती की. चूँकि यूपीपीसीएल स्वायत्त संस्था है और इसका चेयरमैन ही ऊर्जा सचिव भी होता है. ऐसे में सरकार या निगम दोनों की ज़िम्मेदारी एक व्यक्ति के पास होने की वजह से मंत्री भी सीधे कार्रवाई नहीं कर सके. तब श्रीकांत शर्मा ने खुद डाउनलोडेबल बिजली बिल का लक्ष्य न पूरा होने पर मोर्चा खोला. खुद कई जगह छापे मारे. सीएम योगी आदित्यनाथ से व्यक्तिगत स्तर पर मामला उठाया. यहां तक कि यूपीपीसीएल चेयरमैन की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाते हुए ट्वीट पर पूरे मसले पर लिखा.


श्रीकांत शर्मा ने ट्वीट किया कि -उपभोक्ताओं को सही बिल समय पर मिले यह यूपीपीसीएल चेयरमैन की ज़िम्मेदारी है. जुलाई २०१८ में बिलिंग एजेंसियों से हुए करार के मुताबिक़ ८ माह में शहरी व १२ माह में ग्रामीण क्षेत्रों में ९७ फ़ीसद डाउनलोडेबल बिलिंग होनी थी, लेकिन आज भी यह १०.६४ प्रतिशत है. यह घोर लापरवाही है. ऊर्जा मंत्री ने यूपीपीसीएल चेयरमैन के साथ-साथ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, यूपी बीजेपी और यूपी सरकार को भी ट्विटर पर टैग किया.


देहात के बिजली बिलों में ज्यादा थी समस्या
आप समझ सकते हैं कि अपने ही विभाग की इस कमी को सार्वजनिक पटल पर लाने से पहले शर्मा को कितना विवश होना पड़ा होगा. दरअसल, डाउनलोडेबल बिल का ज़िम्मा यूपीपीसीएल ने दो कंपनियों फ्लूएंट ग्रिड और एचसीएल को दिया हुआ है. देहात की ज़िम्मेदारी फ्लूएंट के पास और शहरी क्षेत्रों की एचसीएल के पास है असली समस्या देहात के बिलों में आ रही थी.


इसको लेकर बार-बार श्रीकांत शर्मा की तरफ़ से मुद्दा उठाया गया, लेकिन यूपीपीएसल जिसकी ये ज़िम्मेदारी थी, उसने अनसुनी की. तब ऊर्जा मंत्री को सार्वजनिक पटल पर आना पड़ा. ये वास्तव में यूपी में शासन-प्रशासन की कार्यप्रणाली और सरकार के अंदर चल रहे घालमेल का भी एक नमूना था.


अब असली मुद्दा जो उपभोक्ताओं को समस्या उठानी पड़ रही है, उस राज से उठाते हैं पर्दा. फ्लूएंट ग्रिड जो कि गाँवों में बिलिंग और कलेक्शन का काम कर रही है, उसको लेकर ही सवाल उठाए गए. ऊर्जा मंत्री का ट्वीट भी आपने देखा कि वह गाँवों में बिलिंग व्यवस्था को लेकर ही था. अब ये गड़बड़ कहां हो रही थी और कौन इसके लिए ज़िम्मेदार है? कुछ तथ्य आपके सामने रखते हैं, जिससे सब कुछ साफ हो जाएगा. डाउनलोडेबल बिल का मतलब ये हुआ कि कंपनी का प्रतिनिधि मीटर की रीडिंग के लिए जिसके घर पहुंचा वहां आधुनिक तकनीक से मीटर का डाटा उसके पास स्थित यंत्र में आया और वहीं उसने उपभोक्ता को कापी दे दी। पाया गया कि इस तकनीक से जो बिल निकल रहे थे, उनमें गल्तियां कम थीं.


स्वचालित मीटर रीड डाउनलोड मोड से बन रहे 10% से भी कम बिल
वैसे यूपीपीसीएल के साथ बिलिंग वाली कंपनियों का जो अनुबंध है, उसके मुताबिक़ मीटर रीडिंग एजेंसियों को स्वचालित मीटर रीड डाउनलोड मोड का उपयोग करके 100% बिल बनाने थे. यदि मीटर रीडिंग स्वचालित डाउनलोड मोड के माध्यम से की जाती है, तो मीटर रीडिंग बिलिंग एप्लिकेशन पर विशेष सॉफ़्टवेयर के माध्यम से अपने आप डाउनलोड हो जाती है, जिससे मैन्युअल त्रुटियां करना असंभव हो जाता है. अभी तथ्य है कि गाँवों में , स्वचालित मीटर रीड डाउनलोड मोड का उपयोग करके 10% से कम बिल बनाए जा रहे हैं. ख़ास बात ये कि लगातार फ्लूयएंट को लेकर विवाद उठते रहे. प्रयागराज डिविज़न से कंपनी को कारण बताओ नोटिस दिया गया. साथ ही उसकी तकनीक पर भी सवाल हैं.


गड़बड़ी का लगातार अनदेखी की गई
इसकी न सिर्फ अनदेखी की जा रही थी, बल्कि तीन बार तो मीटर रीडिंग एजेंसी की निविदा की तारीख़ें भी बदल चुकी हैं. इसमें विभाग की तरफ़ से लगातार चेताया गया और गड़बड़ का अंदेशा दिखा, लेकिन कभी भी इसे संबोधित करने का प्रयास नहीं किया गया. यहां ताकि हाल ही में भारत सरकार के एक नवरत्न कंपनी ने UPPCL के प्रबंधन को एक प्रेजेंटेशन दिया, जिसमें उन्होंने पूरे अनुबंध को संभालने की पेशकश की और ऐसे समाधान पेश किए जो बिलिंग त्रुटियों को कम करने में मदद करेंगे और यह सुनिश्चित करेंगे कि उपभोक्ताओं को समय पर और सही बिल दिए जाएं.


वे मौजूदा मीटर रीडिंग एजेंसी की तुलना में 30% -40% कम कीमत पर ऐसा करने को तैयार थे जिस से अगले कुछ वर्षों में UPPCL को 200 करोड़ से अधिक की बचत हो सकती थी. ये बचत अंतत: कम बिजली दरों के जरिए उपभोक्ताओं को दी जा सकती है.यूपीपीसीएल के प्रबंधन ने इसमें कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई है.


ऊर्जा मंत्री के आक्रामक रवैये का हुआ असर
खैर जब ऊर्जा मंत्री ने खुलकर मोर्चा खोला तो मुख्यमंत्री ने कार्रवाई की और अरविंद कुमार को इस पद से हटाकर औद्योगिक अवस्थापना भेज दिया. शर्मा का एक और बिंदु था कि ऊर्जा सचिव और यूपीपीसीएल का चेयरमैन एक व्यक्ति नहीं होना चाहिए. ऊर्जा मंत्री का तर्क था कि यूपीपीसीएल चेयरमैन विभाग और प्रमुख सचिव उपभोक्ता और सरकार के हितों का संरक्षण करेंगे तो संतुलन बना रहेगा. खैर उनके आक्रामक रवैये का असर हुआ और अब यूपीपीसीएल चेयरमैन देवराज बना दिए गए और आलोक सिन्हा प्रमुख सचिव ऊर्जा बना दिए गए हैं.


उपभोक्ताओं की परेशानी कम होने की उम्मीद
राज की बात ये है कि इस बदलाव के बाद अब उपभोक्ताओं को गड़बड़ बिजली के बिलों से मुक्ति मिले, इसके लिए युद्दस्तर पर प्रयास होंगे. इसको लेकर ऊर्जा मंत्री ने साफ-साफ ताकीद की और ट्वीट कर लिखा कि -सही बिल सही समय पर उपभोक्ताओं को मिले, प्रोब बिलिंग शत-प्रतिशत हो. यह यूपीपीपीसीएल चेयरमैन सुनिश्चित करें. लापरवाह डिस्काम्स पर दंडात्मक कार्रवाई करें. उपभोक्ता सेवा में शिथिलता बर्दाश्त नहीं है. फिर दूसरा ट्वीट उन्होंने किया कि-उपभोक्ताओं का उत्पीड़न स्वीकार्य नहीं. सरकार उपभोक्ताओं की है. प्रमुख सचिव ऊर्जा , उपभोक्ता सेवाओं की सतत निगरानी करें. अनियमितता मिलने पर संबंधित की जवाबदेही तय कर कठोर कार्रवाई की जाएगी.मतलब साफ़ है कि अब संतुलन के साथ इस दिशा में जब काम हो तो शायद उपभोक्ताओं की परेशानी कम हो सकेगी.


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