प्रयागराज. कोरोना महामारी की दूसरी लहर के दौरान प्रयागराज के एक गांव में पिछले डेढ़ महीने में 50 से ज्यादा लोग मौत का शिकार हो चुके हैं. इनमें से कुछ को छोड़कर ज्यादातर को कोई गंभीर बीमारी नहीं थी. ज्यादातर लोगों में सर्दी, जुकाम, बुखार और खांसी के लक्षण थे. 50 से ज्यादा मौतों के बाद गांव में दहशत इस कदर कायम हो गई है कि लोग घर से बाहर कदम रखने में हिचकते हैं. सड़कों और गलियों में पूरे दिन सन्नाटा पसरा रहता है.


हैरत की बात ये है कि इतनी मौतों के बावजूद आज तक न तो कोई जिम्मेदार अफसर पंहुचा है और न ही कोरोना व दूसरी बीमारियों की जांच करने के लिए कोई मेडिकल टीम. मौत का तांडव मचने के बाद भी गांव का सेनेटाइजेशन तक नहीं किया गया है. इलाके के विधायक और सांसद भी अभी तक इस गांव की सुध लेने का वक़्त नहीं निकाल सके हैं. नाकारा सिस्टम ने तकरीबन साढ़े 5 हज़ार की आबादी वाले इस गांव के लोगों को राम भरोसे छोड़ दिया है. उसी राम भरोसे, जिसका जिक्र पिछले दिनों इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ग्रामीण इलाकों में कोरोना से जुड़े मामले में दिए गए फैसले में तल्ख टिप्पणी करते हुए किया था.


अप्रैल के दूसरे हफ्ते से बिगड़े हालात
प्रयागराज शहर से तकरीबन 40 किलोमीटर की दूरी पर स्थित श्रृंगवेरपुर ब्लॉक की मेंडारा ग्राम सभा में अप्रैल के तीसरे हफ्ते से हालात बिगड़ने शुरू हुए. अप्रैल के तीसरे और चौथे हफ्ते में शायद ही कोई दिन ऐसा बीता हो, जब गांव में कोई अर्थी न उठी हो. 1 अप्रैल से 20 मई के 50 दिनों में गांव में पचास से ज़्यादा लोग मौत का शिकार हुए. गांव से सटे हुए दूसरे मरीजों को भी जोड़ लें तो इन 50 दिनों में 59 लोग काल के गाल में समा गए. हालांकि सरकारी रिकॉर्ड में अभी तक सिर्फ 35 जिंदगियां खत्म होने की बात ही दर्ज है.


50 से ज्यादा लोगों में से सिर्फ एक की मौत कोरोना से हुई. क्योंकि किसी की जांच नहीं हुई थी. वैसे मौत का शिकार होने वाले ज्यादातर लोग आम तौर पर पूरी तरह स्वस्थ थे. उनमें लक्षण कोरोना जैसे जरूर नजर आए थे. ज्यादातर लोगों को बुखार, खांसी, सर्दी, जुकाम और गले में खराश की समस्या हुई थी. सिर्फ चंद दिनों में ही 50 से ज्यादा लोगों की मौत के बाद से मेंडारा गांव में मातम का माहौल है. अकेले मेंडारा ही नहीं बल्कि आस-पास के तमाम दूसरे गांवों के लोग भी खौफजदा हैं. लोगों में डर और दहशत इस कदर है कि वे घर से बाहर कदम रखने से भी परहेज करते हैं.


गांव की जो गालियां हमेशा चहल-पहल से गुलजार रहती थीं, वहां अब मौत और खौफ का सन्नाटा पसरा रहता है. कई लोगों ने तो हफ्तों से अपनी दुकानें तक नहीं खोली हैं. गांव में अब तक न कोई अफसर झांकने पहुंचा है और न ही लोगों की जांच व इलाज के लिए मेडिकल टीम. संक्रमण की आशंका के बीच ग्रामीणों को सिर्फ आशा बहुओं, एनम और आंगनबाड़ी वर्कर्स के भरोसे छोड़ दिया गया है. 


हालांकि इनके पास न तो कोरोना की जांच की टेस्टिंग किट होती है और न ही पल्स ऑक्सीमीटर व थर्मामीटर. गांव के नव निर्वाचित प्रधान सरोज का दावा है कि वह कई बार जिम्मेदार लोगों से मदद करने व बाकी बचे लोगों की जिंदगी सुरक्षित करने की गुहार लगा चुके हैं, लेकिन हर बार सिर्फ वादों और आश्वासनों के सिवाय कुछ भी नहीं हुआ. खुद इलाके के लेखपाल अनिल कुमार पटेल और रोज़गार सेवक राम बाबू मौर्य का कहना है कि वह लोग बड़े अफसरों से लिखित तौर पर भी गांव में सेनेटाइजेशन कराने की सिफारिश कर चुके हैं, लेकिन हुआ अब तक कुछ भी नहीं है.


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