शामली: आज हम आपको दो मासूम बच्चों और एक बुजुर्ग की ऐसी कहानी से रूबरू कराने जा रहे हैं जिसके बारे में सुनकर आप लोगों की आंखों में भी पानी आ जाएगा. पाकिस्तान के साथ हुई 1965 की जंग में दोनों आंखें चले जाने के बावजूद भी जिसके हौसले पस्त नहीं हुए, आज वह अंधा फौजी चहिराम सरकार के सामने झोली फैलाकर गिड़गिड़ाने को मजबूर है. कोरोना महामारी की काली परछाई में दो बेटे खो देने के बाद अब परिवार में केवल एक बूढ़ा फौजी और उसके दो मासूम पोता-पोती ही बचे हैं और यह दोनों नन्हें मासूम पढ़ लिख कर पुलिस ऑफिसर बनना चाहते हैं लेकिन अब इन दोनों को यह सपना बिखर चुका है, क्योंकि अब इन दोनों नन्हे मासूम बच्चों के साथ एक अंधा बूढ़ा बाबा है और परवरिश के लिए किसी का भी हाथ इन दोनों के सिर पर नहीं है. 


स्मॉग बम फटने की वजह से चली गई थी आंख


दरअसल शामली जनपद के गाँव लिसाढ़ के रहने वाले 85 वर्ष के फौजी चहिराम वर्ष 1965 में भारत-पाकिस्तान के बीच हुई जंग में लड़ चुके हैं. आर्डिनेंस कोर में तैनात फौजी चहिराम की जंग के दौरान स्मॉग बम समय से पहले फटने के चलते दोनों आंखे चली गई थी. इसके बाद 1970 में मेडिकल बोर्ड द्वारा उन्हें घर भेज दिया गया था. फौजी चहिराम बताते हैं कि तीन बेटों में से उनका सबसे बड़ा बेटा देवेंद्र अविवाहित था, जो उनके साथ ही रहता था. दूसरा बेटा रविंद्र अपने परिवार के साथ अलग रहता है, और तीसरे बेटे राजीव की पत्नी तीन साल पहले अपने पति और दो बच्चों बेटे अंशुल मलिक(12) और बेटी धनाक्षी (6) को छोड़कर घर से चली गई थी. 25 मार्च 2020 को बेटे राजीव की कोरोना के चलते मेरठ मेडिकल कॉलेज में मौत हो गई थी. इसके बाद बड़ा भाई देवेंद्र अपने पिता और भाई राजीव के दोनों बच्चों के लिए मेहनत मजदूरी कर परिवार चला रहा था. लेकिन 14 जून 2021 को कथित तौर पर कोरोना महामारी के चलते वह भी चल बसा इसके बाद अब परिवार में सिर्फ नेत्रहीन फौजी और उसके दो पोता-पोती ही बचे हैं.


कोरोना महामारी के दौरान कई परिवारों के सामने जिंदगी और मौत की मुश्किलें आ खड़ी हुई हैं. वहीं, फौजी चहिराम ने बताया कि आंखे चले जाने के बाद उसे बेटों का सहारा था, लेकिन बेटों के चले जाने के बाद अब वह खुद पर ही बोझ बन गया है. ऐसे में बेटे के दोनों मासूम बच्चों की परवरिश, पढ़ाई और सामाजिक सुरक्षा भी उनके लिए चुनौती बन रही है, क्योंकि चहिराम दोनो आंखों से नेत्रहीन हैं. वहीं, फौजी चहिराम इन्हीं सब परेशानियों को लेकर डीएम शामली जसजीत कौर के कार्यालय पर पहुंचे थे. जहां पर डीएम से मिलने का इंतजार कर रहे फौजी अपनी चिंताओं को लेकर रोते-गिड़गिड़ाते हुए नजर आ रहे हैं. वहीं, चहिराम की स्थिति को देखते हुए डीएम जसजीत कौर ने उनकी समस्याओं को समझते हुए प्रशासनिक तौर पर आवश्यक मद्द का रास्ता तैयार करने का आश्वासन दिया.


मां-पिता का साया भी उठा


डीएम आफिस पर अपने बाबा के साथ पहुंचे 12 साल के अंशुल ने बताया कि तीन साल पहले मां उन्हें छोड़कर चली गई है. इसके बाद 25 मार्च 2020 को उसके पापा और बाद में बड़े ताऊ जी भी उन्हें छोड़कर चले गए, जबकि दूसरे ताऊजी परिवार से अलग रहते हैं. वही अंशुल ने बताया कि वह पढ़ लिखकर पुलिस अफसर बनना चाहता है. अगर सरकार उनकी कोई मदद नहीं करती है तो वह मेहनत करके फिर भी अपना सपना पूरा करेगा. वहीं, अपने नेत्रहीन दादा के साथ आई 6 साल की धनाक्षी मलिक को अभी हालातों की समझ नहीं है. धनाक्षी ने बताया कि वो डीएम मैम से मिलने आई है. उसे भी पुलिस अफसर बनना है. फिलहाल ग्राम समाज के लोग इस परिवार के दुख दर्द में खड़े हुए हैं लेकिन मासूमों की परवरिश और पढ़ाई लिखाई के लिए सरकार को भी आगे आने की जरूरत है ताकि इनका भविष्य सुरक्षित हो सके.


डीएम के सामने गिड़गिड़ाये


नेत्रहीन फौजी चहिराम और दो नन्हे मासूम बच्चों की परवरिश के मामले में जिला अधिकारी जसजीत कौर ने प्रोबेशन अधिकारी व एसडीएम  की टीम गठित कर इस परिवार को सरकारी योजनाओं का लाभ देने का आश्वासन दिया है. वहीं, गांव लिसाड़ में रहने वाले इस परिवार की देखरेख के लिए गार्जियन बनाने के निर्देश भी दिए गए हैं ताकि इस परिवार के रहन-सहन एवं खानपान के इंतजाम को कमी न आये. अब देखना होगा कि नन्हे-मुन्ने मासूम बच्चों की पढ़ाई लिखाई और उनकी सुरक्षा सरकार किस तरह से करा पाती है.


ये भी पढ़ें.


यूपी: संजय निषाद ने की बड़ी मांग, विधानसभा चुनाव में बीजेपी बनाए डिप्टी सीएम का चेहरा