UP News: राष्ट्रपति चुनाव (Presidential Election) के दिन ओमप्रकाश राजभर (Om Prakash Rajbhar) अपने पार्टी के सभी विधायकों के साथ जिस तरह से द्रौपदी मुर्मू (Draupadi Murmu) के पक्ष में वोट की है उससे यह साफ जाहिर है कि आगे सपा के साथ गठबंधन को लेकर क्या कदम उठाएंगे. हालांकि वह अभी भी कहते हैं कि गठबंधन में बने हुए हैं. लेकिन अब एबीपी गंगा से बात करते हुए सुभासपा प्रमुख ने पहली बार जयंत चौधरी पर भी निशाना साधा है. ओम प्रकाश राजभर कहा कि उनके बेटे को विधान परिषद नहीं भेजे जाने की टीस भी साफ नजर आई.
दरअसल, ओम प्रकाश राजभर ने एबीपी गंगा से बात करते हुए कहा था कि जयंत चौधरी तो गठबंधन धर्म निभा रहे हैं, वे बड़े नेता हैं और वह इसे निभा रहे हैं, वह भाई भी हैं. उन्होंने क्या अखिलेश यादव से यह कहा कि आठ सीट जीतने पर हमें राज्यसभा भेज रहे हैं तो गठबंधन धर्म निभाते हुए एमएलसी चुनाव हो रहा है तो एक सुभासपा को भी दे दो. क्या उन्होंने अखिलेश को इस बारे में समझाया. इसी तरह गठबंधन धर्म निभा रहे हैं. आप पा गए, आप खुश तो कम से कम छोटे भाई का भी ख्याल करते.
मंत्री ने दिया था ऑफर
राजभर का दर्द साफ तौर पर झलक रहा है. विधान परिषद में उनके बेटे को समाजवादी पार्टी ने नहीं भेजा और शायद गठबंधन को लेकर आज जो स्थिति है उसके पीछे सबसे बड़ी वजह यही है. अब ओमप्रकाश राजभर के इस दर्द को अगर किसी ने समझा है तो वह है खुद को उनका छोटा भाई कहने वाले सरकार में कैबिनेट मंत्री डॉक्टर संजय निषाद हैं. संजय निषाद साफ तौर पर कह रहे हैं कि राजभर भाई ने जो समर्थन किया. मैं उसके लिए उन्हें बधाई देता हूं. मैं उम्मीद करता हूं कि आगे वह बीजेपी के साथ रहे और समाज की सेवा करें.
बीजेपी कहती है देर आए दुरुस्त आए. मैं बीजेपी को भी धन्यवाद दूंगा वह जो कहती है वह करती है. परिवार को ही नहीं अगर वह आएंगे तो बेटे की बात छोड़ दीजिए जो भी और सदस्य हैं, उनके साथ जो कार्यकर्ता हैं उनका भी समायोजन किया जाएगा. वह अगर पावर के साथ रहेंगे सत्ता के साथ रहेंगे तो समाज की समृद्धि कर सकेंगे. जब सत्ता से बाहर रहेंगे तो दुख के अलावा क्या मिलेगा और आज तो पावर बीजेपी के ही पास है.
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क्या हो सकता है प्लान?
ओमप्रकाश राजभर की नजदीकियां और डॉक्टर संजय निषाद के उनको ऑफर देने के पीछे की असल वजह कुछ और है. दरअसल, उत्तर प्रदेश की विधान परिषद की दो सीटें है, जिस पर हाल में इलेक्शन कमीशन ने चुनाव का एलान किया है. 11 अगस्त को इन दोनों सीटों पर चुनाव होना है. इसके अलावा विधान परिषद की छह सीटें जिस पर राज्यपाल को सदस्यों का मनोनयन करना है. इसके बाद विधान परिषद की पांच सीटें फरवरी 2023 में खाली होगी. वह भी स्नातक और शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र की हैं.
यानी यह उसी के लिए रिजर्व है फिर 2023 में एक भी सीट खाली नहीं है. उसके बाद 13 सीटें पांच मई 2024 को खाली होंगी. ऐसे में अगर किसी को विधान परिषद जाना है तो उसे अभी प्रयास करना होगा क्योंकि आगे तो उसका इंतजार लंबा है, वेटिंग लिस्ट लंबी है. शायद ओमप्रकाश राजभर जो बीजेपी के करीब आए हैं, कहीं ना कहीं पार्टी के आलाकमान को उन्होंने जरूर इस ओर भी इंगित किया होगा क्योंकि जब इंतजार लंबा हो जाता है. कई बार चीजें मनमाफिक नहीं होती और राजनीति में कहीं बाहर इंतजार की इंतहा नुकसानदायक साबित होती है.
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