प्रयागराज. पुरखों की आत्मा की शांति और मुक्ति के लिए एक पखवारे तक चलने वाला पितृ पक्ष पूर्णिमा के श्राद्ध के साथ शुरू हो गया है. पितृ मुक्ति का प्रथम व मुख्य द्वार कहे जाने की वजह से संगम नगरी प्रयागराज में पिंडदान व श्राद्ध का विशेष महत्व है. कोरोना की महामारी की वजह से इस बार कुछ धर्मगुरुओं ने ऑनलाइन पिंडदान व तर्पण किये जाने की तैयारी की है, लेकिन तीर्थ पुरोहितों के साथ ही कई संत-महात्मा इसका विरोध कर रहे हैं. ऑनलाइन पिंडदान कराने की वकालत करने वाले इसे कोरोना के मुश्किल दौर में वक़्त की ज़रुरत बता रहे हैं तो वहीं विरोध करने वालों की अपनी अलग दलील है. ऑनलाइन पिंडदान को लेकर धार्मिक जानकारों व कर्मकांडियों के एक राय न होने की वजह से श्रद्धालु पशोपेश में हैं.


पितृ पक्ष पर कोरोना महामारी का साया


हिन्दू धर्म के मुताबिक़ पिंडदान की परम्परा सिर्फ प्रयाग, काशी और गया में ही है, लेकिन पितरों के श्राद्ध कर्म की शुरुआत प्रयाग के मुंडन संस्कार से ही शुरू होती है. पितृ पक्ष पर प्रयागराज के संगम पर हर साल हज़ारों नहीं बल्कि लाखों की संख्या में श्रद्धालु पिंडदान - श्राद्ध व तर्पण के लिए आते हैं. हालांकि इस बार के पितृ पक्ष पर कोरोना की महामारी का साया साफ़ तौर पर देखने को मिल रहा है. गंगा और यमुना का जलस्तर बढ़ने से प्रयागराज का संगम इस बार सिमटकर रह गया है. यहां गंगा किनारे वैसे ही हर वक़्त सैकड़ों की भीड़ जमा रहती है. पितृ पक्ष में जब रोज़ाना हज़ारों की संख्या में देश के कोने कोने से पिंडदान व श्राद्ध के लिए लोग आएंगे तो भीड़ और बढ़ेगी. इसके साथ ही कोरोना के संक्रमण के फैलने का खतरा भी बढ़ेगा. भीड़ रोकने के लिए ही गया में श्रद्धालुओं के आने पर रोक लगा दी गई है. इसके बाद ही कई धर्मगुरुओं व टेक्नोक्रेट बाबाओं ने ऑनलाइन पिंडदान और श्राद्ध का फार्मूला दिया.


ऑनलाइन पिंडदान का समर्थन


प्रयागराज में गंगा सेना के संयोजक स्वामी आनंद गिरि के मुताबिक़ कोरोना काल में न तो ज़िंदगी को खतरे में डाला जा सकता है और न ही पितरों की शांति व मुक्ति के कर्मकांड रोके जा सकते हैं. ऐसे में ऑनलाइन पूजा व अन्य रस्में अदा करना ही सबसे बेहतर है. उनके मुताबिक़ जब सारी बैठकें -आयोजन व रोज़मर्रा की ज़रूरतों के तमाम काम ऑनलाइन हो रहे हैं तो धार्मिक कार्यों को रोकने से बेहतर दूसरे विकल्पों का इस्तेमाल कर लेना है. स्वामी आनंद गिरि व दूसरे धर्मज्ञों का कहना है कि ऑनलाइन पिंडदान व तर्पण का भी वही फल प्राप्त होगा जो पारंपरिक पूजा में होता है.


विरोध भी...
दूसरी तरफ प्रयागराज के तीर्थ पुरोहित ऑनलाइन पिंडदान - श्राद्ध व तर्पण का खुलकर विरोध कर रहे हैं. उनके विरोध की एक बड़ी वजह अपनी कमाई पर पड़ने वाले प्रभाव को लेकर है, लेकिन वो दलील यह दे रहे हैं कि ऑनलाइन पूजा शास्त्रों व धर्मग्रंथों के खिलाफ है. इस तरह की पूजा का कोई विधान नहीं है. कोई भी व्यक्ति जब तीर्थस्थल पर जाकर आस्था व समर्पण के साथ पूजा अर्चना करता है तो उसके पूर्वज तृप्त होते हैं और अपने वंशजों को आशीर्वाद देते हैं. तीर्थ पुरोहितों के मुताबिक़ पिंडदान जैसे महत्वपूर्ण काम में कतई रस्म अदायगी या औपचारिकता नहीं की जा सकती है. तीर्थ पुरोहितों की राष्ट्रीय संस्था के महामंत्री मधु चकहा के मुताबिक़ ऑनलाइन पिंडदान को कतई स्वीकार नहीं किया जाएगा.


हिन्दू धर्म की मान्यता के मुताबिक़ कोई भी व्यक्ति पूरी तरह नहीं मरता है और वह बार-बार जन्म लेता है, इसलिए पितृ पक्ष में पिंडदान और तर्पण कर पुरखों को खुश करने की परम्परा सदियों से चली आ रही है. ऐसी मान्यता है कि संगम पर पिंडदान करने से भगवान विष्णु के साथ ही तीर्थराज प्रयाग में वास करने वाले सभी तैंतीस करोड़ देवी-देवता भी पितरों को मोक्ष प्रदान करते हैं.


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