SC On Emerald Court Tower: देश की सर्वोच्च न्यायालय ने सुपरटेक के एमराल्ड कोर्ट टावर 16 और 17 को अवैध करार देते हुए 3 माह के अंदर गिराने का आदेश दिया है. इसके साथ ही कोर्ट ने कहा कि गिराने में जो भी खर्च आए उसकी भरपाई बिल्डर से की जाए. इस फैसले से जहां एमरॉल्ड कोर्ट के बायर्स बेहद खुश हैं वहीं उन बायर्स के लिए भी यह फैसला किसी संजीवनी से कम नहीं है जो बिल्डर्स के शोषण का शिकार हो रहे हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में साफ कहा है कि 3 माह के अंदर टावर 16 और 17 को गिराया जाए और इसके गिराने का जो भी खर्च आए उसे बिल्डर से वसूला जाए साथ ही यह भी निर्देश दिया है कि टावर को गिराते समय आसपास के टावरों को कोई नुकसान न हो इसका विशेष ध्यान रखा जाए. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से जहां सालों से संघर्ष कर रहे एमराल्ड कोर्ट के बायर्स खुश हैं वही इस फैसले ने बिल्डर और प्राधिकरण के सांठ-गांठ की पोल भी खोल कर रख दी है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा है कि प्राधिकरण और बिल्डर की मिलीभगत से नोएडा में अवैध कार्य किए जा रहे हैं.
दरसल पहले हम आपको बताते हैं कि आखिरकार यह पूरा मामला है क्या जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना ये फैसला सुनाया है. आपको बता दे 2012 में एमराल्ड कोर्ट की RWA ने इलाहाबाद हाईकोर्ट सुपर टेक बिल्डर और नोएडा प्राधिकरण के खिलाफ एक याचिका दायर की, जिसमें आरोप लगाया कि बिल्डर बिना किसी नक्शे के अवैध निर्माण कर रहा है. एमराल्ड कोर्ट ओनर रेजीडेंट वेलफेयर एसोसिएशन की याचिका पर सुनवाई करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 2014 में एपेक्स और सियान टावरों को गलत ठहराते हुए ढहाने का आदेश दिया था. हाईकोर्ट ने सुपरटेक को फ्लैट बुक कराने वालों को पैसा वापस करने का आदेश दिया था. साथ ही प्लान सेंक्शन (मंजूर) करने के जिम्मेदार नोएडा अथारिटी के अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा चलाने का आदेश दिया था.
इसके बाद इस फैसले के खिलाफ सुपरटक बिल्डर और नोएडा अथॉरिटी ने कुवैत भारत को अपने साथ लेकर सुप्रीम कोर्ट में चुनौती सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई करते हुए टावर को गिराने पर रोक लगाते हुए यथास्थिति बनाये रखने का आदेश दिया. साथ ही सुपरटेक से कहा था कि जो लोग पैसा वापस चाहते हैं उन्हें पैसा लौटाया जाए. वही सुप्रीम कोर्ट ने एनबीसीसी से दोनों टावरों की जांच कर कोर्ट में रिपोर्ट पेश करने को कहा. एनबीसीसी ने अपनी जो रिपोर्ट पेश की उसमें साफ कहा कि दोनों टावरों के बीच जरूरी दूरी नहीं है. नियमानुसार टावर का निर्माण अवैध है.
जिसके बाद इसी मामले पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को यह फैसला सुनाया है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा बिल्डर ने प्राधिकरण से मिलकर इन दोनों टायरों का अवैध रूप से निर्माण किया है जो जांच में पूरी तरह से अवैध पाए गए हैं. यही वजह है कि प्राधिकरण 3 माह के अंदर इन दोनों टावरों को गिराए और गिराने में जो भी खर्च आए उसकी वसूली बिल्डर से करे.
सुप्रीम कोर्ट द्वारा सुनाए गए फैसले को लेकरबायर्स काफी खुश है उनका कहना है कि सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला सदियों तक याद किया जाएगा क्योंकि इस फैसले ने यह साबित कर दिया है आम जनता को कहीं न्याय मिले या ना मिले लेकिन उसे कोर्ट में न्याय जरूर मिलेगा. यही वजह है कि आज भी आम आदमी जब किसी मुसीबत में फंसता है या उसके साथ गलत होता है तो यही कहता है कि हम तुम्हें कोर्ट में देख लेंगे क्योंकि उसे पता होता है कि उसे कोर्ट में न्याय जरूर मिलेगा.
एबीपी गंगा से बातचीत के दौरान लीगल कमेटी चेयरमैन पूर्व RWA अध्यक्ष उदयभान सिंह तेवतिया ने बताया कि उन्होंने जब बिल्डर से यह जानकारी ली कि आखिरकार जब आपने हमें फ्लैट बेचे इसे ग्रीन बेल्ट बताया था, लेकिन आज अचानक से यहां पर निर्माण क्यों शुरू हो गया. इसका जवाब जब बिल्डर ने नही दिया तो उन्होंने नोएडा प्राधिकरण से संपर्क साधा और उससे प्लान और नक्शा मांगा, ताकि यह जानकारी हो सके कि आखिरकार बिल्डर यह निर्माण नियमावली के तहत कर रहा है. लेकिन जब प्राधिकरण ने इन वायरस को कोई नक्शा व प्लान उपलब्ध नहीं कराया तो दिसंबर 2012 में उदय भान सिंह तेवतिया के नेतृत्व में एमराल्ड कोर्ट के बायर्स ने याचिका दायर कर न्याय की गुहार लगाई थी और 2014 में उन्हें न्याय मिल भी गया. लेकिन बिल्डर और प्राधिकरण ने सांठगांठ कर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. लेकिन आज सुप्रीम कोर्ट ने भी सुप्रीम फैसला सुनाते हुए बिल्डर और प्राधिकरण के साठगांठ को उजागर कर दिया.
उदय भान सिंह ने कहा कि दोनों टावर के बीच में महज 9 मीटर का गैप है. जबकि, 2006 में जो लॉ था उसके हिसाब से दोनों टावरो के बीच में कम-से-कम 35 मीटर का फासला होना चाहिए था. अगर हम 2010 के नए कानून की बात करें तो उस हिसाब से भी कम से कम दोनों टावरों के बीच में 20 मीटर का फासला होना चाहिए और यही वजह है कि जब सुप्रीम कोर्ट ने एनडीसीस से जांच कराई तो प्राधिकरण और बिल्डर की सच्चाई सामने आ गई थी. लेकिन आज सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने उन्हें एक बहुत बड़ी राहत ही नहीं दी बल्कि उन आमलोगों में एक विश्वास जताया है जो इन बिल्डरों से परेशान होकर कोर्ट का दरवाजा खटखटा रहे हैं.
इसके बाद हमने वर्तमान में आरडब्ल्यूए अध्यक्ष राजेश कुमार राणा सोसाइटी के कुछ बायर से बात कर यह जानने की कोशिश की कि आखिरकार सुप्रीम कोर्ट द्वारा जो जजमेंट आया उसको लेकर उनका क्या कहना है तो उनका क्या कहना था की कोर्ट में जाना उनका फैसला सही साबित हुआ. और प्राधिकरण बिल्डर की मिलीभगत की वजह से उन्हें न्याय नहीं मिल रहा था. उन्होंने बताया कि एक वक्त ऐसा आ गया जब उनके टावर की हवा पानी और फायर की गाड़ियों के जाने का रास्ता तक बिल्डर ने बंद कर दिया था. लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद सालों से संघर्ष कर रहे बायस राहत की सांस ले रहे हैं और यह फैसला सिर्फ एमराल्ड कोर्ट के बाहर के लिए नहीं है बल्कि उन सभी भारत के लिए है जो बिल्डर की प्रताड़ना झेल रहे हैं.
सुपरटेक बिल्डर के एमरॉल्ड कोर्ट के टावर 16 और 17 में कुल 915 फ्लैट और 21 दुकानें हैं. इसमें शुरू में 633 लोगों ने बुकिंग कराई थी. जिसमें से 248 लोगों ने पैसा वापस ले लिया है. 133 लोगों ने सुपरटेक के दूसरे प्रोजेक्ट में निवेश कर दिया है और 252 लोग अभी बचें हैं जिन्होंने पैसा वापस नहीं लिया है. सुपरटेक को दोनों टावरों से करीब 188 करोड़ रुपये मिले थे, जिसमें से उसने 148 करोड़ रुपये वापस कर दिये हैं.
लेकिन अब सुपरटेक बिल्डर को सभी बायर्स का पैसा प्रति वर्ष 12 परसेंट ब्याज की दर से वापस करना होगा. इस फैसले ने जहां बायर्स को बड़ी राहत दी है, वही इस फैसले ने प्राधिकरण के अधिकारियों और बिल्डर्स को चेतावनी भी दी है कि अगर वह इस तरह का कृत्य करेंगे तो उनके खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई की जाएगी.