रहस्य व रोमांच से भरी है ओशो और आनंद शीला की कहनी, जानें- अनसुनी बातें
शीला ने ओशो और अपने रिश्ते के बारे में स्पष्ट कहा कि यह रिश्ता न तो गुरु और शिष्या की तरह का था और ना ही उसमें कुछ भी गलत था। प्रेम के रिश्ते की बुनियाद न तो अध्यात्म था और ना ही सेक्स। यह तो कुछ और ही था।
लखनऊ, एबीपी गंगा। ओशो एक ऐसा नाम है जिसने जीवन की नई परिभाषा गढ़ दी। ओशो ने धर्म से आगे की बात बड़े की सरल तरीके से की और पूरी दुनिया को नया अर्थ दिया। मध्य प्रदेश के में 11 दिसंबर को जन्मे ओशो का असली नाम रजनीश चंद्र मोहन था।
बचपन से ही नास्तिक विचारधारा से जुड़े ओशो ने एक नए दर्शन को जन्म दिया। ओशो ने सेक्स को ही समाधि तक पहुंचने की कड़ी बता दिया। उनकी विचारधारा ने समाज को चुनौती दी। जो लोग ओशो के बारे में नहीं जानते उनके लिए ओशो विवादित शख्सियत की हैं, जिन्होंने हमेशा बेरोकटोक जीवन और मुक्त सेक्स जैसी बातों का समर्थन किया।
ओशो के विचारों को लेकर विवाद भी हुए लेकिन बावजूद इसके लोगों ने पूरी दुनिया के लोगों को प्रभावित किया। भारत में रहते हुए ओशो ने रायपुर विश्वविद्यालय, जबलपुर यूनिवर्सिटी, मुंबई और पूना में कार्य किया। धीरे-धीरे ओशो की ख्याति बढ़ने लगी और उनके अनुयायियों में विदेशियों की संख्या में खूब इजाफा हुआ। 1980 के दशक में ओशो अमेरिका चले गए और वहां रजनीशपुरम की स्थापना की।
ओशो की कहानी आज भी पूरी दुनिया के लोगों को सम्मोहित करती है। आज भी ओशो से जुड़े कई रहस्य हैं जिनको लेकर चर्चा भी होती है। एक ऐसी ही कहनी है- ओशो और शीला की कहानी। ओशो और शीला की कहनी बहुत दिलचस्प है। ओशो और शीला बिलकुल जुदा व्यक्तित्व हैं लेकिन दोनों ने मिलकर जो चमत्कार किया उसे पूरी दुनिया ने देखा। अमेरिका के खिलाफ 'अघोषित लड़ाई' लड़ने वाली शीला कहती हैं कि उन्होंने फकीर ओशो को 'किंग' बनाया, तो ओशो ने कहा कि उन्होंने साधारण होटल परिचारिका को 'क्वीन' बनाया।
शीला पर हत्या जैसे गंभीर आरोप लगे और ये आरोप किसी और ने नहीं बल्कि ओशो ने लगाए थे। शीला को जेल हुई। मुकदमे अब भी लंबित हैं और शीला स्विटजरलैंड में हैं। ओशो को भी 1986 में अमेरिका से खदेड़ दिया गया। 1990 में ओशो का पुणे में देहांत हो गया। कहा तो ये भी गया कि अमेरिका ने ओशो के खिलाफ साजिश रची थी और उन्हें जहर देकर मारा गया था। वहीं, शीला कहती हैं कि अमेरिका ने नहीं, ओशो को ओशो ने ही मारा और वह ओशो को मरने देना नहीं चाहती थीं।
वड़ोदरा से निकलकर 18 साल की उम्र में शीला पढ़ाई करने अमेरिका चली गईं। वहीं, पर शादी की और 1972 में पति के साथ वापस भारत आ गईं। आध्यात्मिक अध्ययन की तलाश में दोनों ओशो के आश्रम पहुंचे और उनके शिष्य बन गए। शीला बताती हैं कि जब वह पहली बार भगवान रजनीश (ओशो) से मिलीं तो उन्होंने उनके सिर पर हाथ रखा। उसी वक्त शीला को लगा कि उनकी जिंदगी का मकसद पूरा हो गया है।
इसी बीच शीला के पति का देहांत हो गया और वे ओशो के और करीब आ गईं। 1981 में शीला रजनीश की निजी सचिव बन गईं। सचिव बनने के बाद शीला ने ओशो को इस बात के लिए मना लिया कि वह अपना आश्रम अमेरिका में शिफ्ट कर लें। शीला बताती हैं कि पूरे आश्रम का संचालन उनके जिम्मे था, ओशो उसमें कोई दखल नहीं देते थे। फिर एक समय ऐसा आया जब आश्रम में बढ़ते संन्यासियों की वजह से अमेरिकी सरकार के माथे पर बल पड़ने शुरू हो गए।
एक इंटरव्यू के दौरान ओशो को किसने मारा इस सवाल का जवाब देते हुए शीला ने कहा कि, 'उसी ने जिससे मैं उन्हें बचाना चाहती थी। डॉक्टर देवराज उर्फ अमृतो के साथ उनकी बढ़ती 'रिलेशनशिप' पर मुझे ऐतराज था। शीला ने तहा कि डॉ. देवराज ड्रग का अधिक डोज देकर ओशो को गुलाम बना चुका था। वह तिल-तिल कर मर रहे थे। मैं उन्हें इस तरह मरने देना नहीं चाहती थी।
शीला ने बताया कि उन लोगों के प्रति मेरा विरोध ही ओशो और उनके बीच के अलगाव का कारण बना। ओरेगॉन, अमेरिका में 64 हजार हेक्टेयर में फैले रजनीशपुरम, जिसमें दुनियाभर के हजारों उच्च शिक्षित, पेशेवर और धनकुबेर ओशो के चरणों में पड़े रहते थे, मेरे छोड़ते ही सब कुछ खत्म हो गया। अमेरिकी सरकार की भूमिका पर शीला ने कहा कि अमेरिकी सरकार नहीं चाहती थी कि हमारा वर्चस्व और बढ़े। उसने लोगों को भड़काया। लेकिन मैंने हर मुश्किल का सामना किया।
शीला ने ओशो और अपने रिश्ते के बारे में स्पष्ट कहा कि यह रिश्ता न तो गुरु और शिष्या की तरह का था और ना ही उसमें कुछ भी गलत था। मेरे पिता ओशो के करीब थे। तब मैं 16 साल की थी, जब ओशो मेरे घर आए और मैं उनसे मिली। उनके सम्मोहन में मैं अमेरिका तक जा पहुंची। मैं उनके प्रेम में पागल हो चुकी थी। लेकिन प्रेम के रिश्ते की बुनियाद न तो अध्यात्म था और ना ही सेक्स। यह तो कुछ और ही था। स्विटरजरलैंड के बेसल स्थित आवास की दीवारों पर शीला ने अब भी ओशो की तस्वीरें सजा रखी हैं।
ओशो का जीवन पहेली है। इसमें रहस्य भी है और रोमांच भी। ओशो और शीला एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। शीला को जाने बिना ओशो का समझ पानी मुमकिन नहीं है। ओशो और शीला के रिश्ते की इसी केमेस्ट्री को लेकर चर्चा अब फिल्म जगत में भई हो रही है। शीला के जीवन पर फिल्म और सीरीज बनने जा रही है और इसी कारण ये नाम एक बार फिर चर्चा में आ गए हैं।
ओशो के बारे में अनुसनी बातें
ओशो के बारे में कई बातें हैं जो बेहद रोचक हैं। कहते हैं कि जब ओशो पैदा हुए थे तो वो तीन दिन तक न तो हंसे थे और न ही रोए थे।
शुरू से कुछ नया जानने की इच्छा ओशो के अंदर बेहद प्रबल थी। कहा जाता है कि ओशो 12 साल की उम्र में रात के वक्त श्मशान जाते थे। वो ये पता करना चाहते थे कि आखिर इंसान मरने के बाद कहां जाता है।
ओशो पढ़ने लिखने के शौकीन थे। एक दिन में तीन-तीन किताबें पढ़ लेते थे। उन्हें जर्मनी, मार्क्स और भारतीय दर्शन से संबंधित किताबें पढ़ना सबसे ज्यादा पसंद था।
ओशो के बचपन के बारे में एक दिलचस्प बात और कही जाती है कि वो नदी में नहाते वक्त अपने दोस्तों को पानी में डुबो देते थे। जिसकी वजह से उनका अपने मित्रों से बहुत झगड़ा होता था। वो कहते थे कि 'मैं यह देखना चाहता हूं की मरना क्या होता है'।
ओशो जिद्दी स्वभाग के थे। एक बार उन्होंने ये जिद पकड़ ली कि हाथी पर बैठकर ही स्कूल जाएंगे। ओशो की जिद के आगे उनके परिवार वाले भी हार गए और उन्हें हाथी मंगाना पड़ा था।
ओशो ने अपने एक इंटरव्यू में कहा था कि वो 365 रोल्स रॉयस खरीदना चाहते थे। हालांकि, उनके पास 90 रॉल्स रॉयस कारें थीं। ओशो अपने इंटरव्यू में कई बार कहा की वो अमीरों के गुरु हैं।