पूर्वांचल में बड़ी सेंध लगाने की तैयारी में हैं ओवैसी और राजभर की जोड़ी, दिलचस्प होंगे सियासी समीकरण
ओवैसी यूपी के दौरे पर हैं. सुभासपा के मुखिया ओम प्रकाश राजभर के साथ उनकी जुगलबंदी अन्य सियासी दलों के लिये बड़ी चुनौती खड़ी कर सकती है. हालांकि 2022 विधानसभा चुनाव को अभी एक साल से ज्यादा का वक्त है.
वाराणसी: पूर्वांचल में राजनीतिक सरगर्मी बढ़ने लगी है. एआईएमआईएम के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी का काशी आगमन और सुभासपा नेता ओमप्रकाश राजभर के साथ चार जिलों का दौरा बड़े राजनीतिक संदेश दे रहा है.
पूर्वांचल में ओवैसी की दस्तक ने राजनीतिक हलचल ला दी है. काशी की धरती पर उतरते ही ओवैसी के सीधे समाजवादी पार्टी पर निशाना साधा और कहा कि सपा शासन में 28 बार मेरे आने की परमिशन नहीं मिली, अब आया हूं यानी सीधे तौर पर ओवैसी ने जता दिया कि वो आजमगढ़ जा ही नहीं रहे हैं, बल्कि वहां सपा के किले में सेंध लगाने की कवायद शुरू करने जा रहे हैं. मुस्लिम बाहुल्य इलाके में पहुंचकर भारी भीड़ के साथ मुस्लिम वोटों को साधना और यादव को राजनीतिक पटखनी देना ये दोनों उद्देश्य आज साफ तौर पर दिखाई दिए.
ओवैसी-राजभर की जुगलबंदी
आज ओवैसी का आगमन था तो वहीं सुभासपा नेता भी कम उत्साहित नहीं थे. सुबह से ही ओमप्रकाश राजभर विपक्षियों पर जमकर बरस रहे थे और पिछड़ा दलित वोट के साथ मुस्लिम वोट पर बयान दे रहे थे. ओवैसी काशी आते ही सपा को साध बैठे लेकिन सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ओवैसी पर बोलने से बचते दिखे, हां आजमगढ़ से पुराना नाता रहा है ये जरूर बोले लेकिन सीधे तौर पर ओवैसी को नहीं लिया.
पूर्वांचल का जातिगत समीकरण
अब जरा पूर्वांचल के राजनीतिक समीकरण को भी समझ लीजिए राजनीतिक दलों के आधार पर मिले आंकड़ों के अनुसार यहां मुस्लिम-15 से 16 फीसदी ,राजपूत 6 से 7, ब्राह्मण-9 से 10, यादव-13 से 14 प्रतिशत, दलित-20 से 21 प्रतिशत, निषाध-3 से 4, राजभर 3 से 4, सोनकर 1.5 प्रतिशत, नोनिया-2 से 3, कुर्मी-4 से 5 प्रतिशत, कुम्हार-2 से 3 प्रतिशत, मौर्या (कोयिरी)-4 प्रतिशत व अन्य-12 से 13 प्रतिशत हैं.
क्या हैं चुनौती
वहीं आजमगढ़ में अगर ओवैसी मुस्लिम वोट को साधेंगे तो उन्हें स्थानीय पीस पार्टी से भी जूझना होगा या फिर उसे भी मिलाना होगा. इतना ही नहीं यादव वोट जिस तरह से आजमगढ़ में पांच विधायक सपा के हैं, यहां बंधा नजर आ रहा है. अब इन वोटों में जनभागीदारी मोर्चा कितना सेंध लगा पाता है ये देखने वाली बात होगी.
राजनीति का ऊंट किस ओर बैठेगा, ये तो आने वाला वक्त बताएगा. लेकिन ओवैसी के आगमन से इतना तो तय है कि आने वाले चुनाव में मुस्लिम वोट एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा बनकर सामने आने वाला है.
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