नहीं रहे साहित्यकार गिरिराज किशोर, महात्मा गांधी की जीवनी पर मिला था पद्मश्री
हिंदी के वरिष्ठ साहित्यकार और पद्मश्री से सम्मानित गिरिराज किशोर का कानपुर में रविवार को निधन हो गया।
एबीपी गंगा। हिंदी के वरिष्ठ साहित्यकार और पद्मश्री गिरिराज किशोर का रविवार को कानपुर स्थित आवास पर निधन हो गया। गिरिराज को उनके पहले उपन्यास पहला गिरमिटिया से पहचान मिली थी। यह उपन्यास उन्होंने महात्मा गांधी के अफ्रीका प्रवास को लेकर लिखा था। उन्हें बाद में इसी उपन्यास के लिए 2007 में तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने पद्मश्री से सम्मानित किया। उनका 'ढाई घर' उपन्यास भी काफी पसंद किया गया था और इसके लिए उन्हें 1992 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित भी किया गया था।
गिरिराज किशोर को साहित्य अकादमी पुरस्कार के अलावा कई और सम्मान भी मिले। इनमें उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान ने की ओर से उन्हें 'चेहरे-चेहरे किसके चेहरे' नाटक के लिए भारतेन्दु सम्मान मिला। परिशिष्ट उपन्यास पर मध्य प्रदेश साहित्य कला परिषद की ओर से बीर सिंह देवजू सम्मान दिया गया। इसके अलावा उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान ने उन्हें साहित्यभूषण से भी नवाजा। भारतीय भाषा परिषद ने उन्हें शतदल सम्मान से नवाजा। वहीं, जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में आयोजित सत्याग्रह शताब्दी विश्व सम्मेलन में भी गिरिराज किशोर को साहित्य जगत में योगदान के लिए सम्मानित किया गया।
प्रकाशित रचनाएं उपन्यासों के अलावा गिरिराज किशोर के दस कहानी संग्रह, एक एकांकी संग्रह, चार निबंध संग्रह, सात नाटक और महात्मा गांधी की जीवनी 'पहला गिरमिटिया प्रकाशित' हो चुका है। कहानी संग्रह में नीम के फूल, चार मोती बेआब, पेपरवेट, रिश्ता और अन्य कहानियां, शहर-दर-शहर, हम प्यार कर लें, जगत्तारनी एवं अन्य कहानियां, वल्द रोज़ी, यह देह किसकी है? शामिल हैं। उपन्यासों में लोग (1966), चिड़ियाघर (1968), यात्राएं (1917), जुगलबंदी (1973), दो (1974), इन्द्र सुनें (1978), दावेदार (1979), यथा प्रस्तावित (1982), तीसरी सत्ता (1982), परिशिष्ट (1984), असलाह (1987), अंर्त ध्वंस (1990), ढाई घर (1991), यातनाघर (1997),पहला गिरमिटिया (1999) शामिल हैं। वहीं, प्रमुख नाटक नरमेध, प्रजा ही रहने दो, चेहरे-चेहरे किसके चेहरे, केवल मेरा नाम लो, जुर्म आयद, काठ की तोप।