Parliament Security Breach: 13 दिसंबर को संसद हमले की बरसी के दिन लोकसभा में हुई सेंधमारी की घटना ने सुरक्षा व्यवस्था को लेकर सवाल उठा दिए हैं. जिसे लेकर कई तरह के बयानबाजी भी देखने को मिल रही है, जहां एक तरफ़ इस घटना को लेकर चिंता जताई जा रही है तो वहीं दूसरी तरफ सेंधमारी करने वाले युवाओं को बेरोजगारी से परेशान भी बताया जा रहा हैं. इस बीच समाजवादी पार्टी के सांसद जावेद अलीन ने 35 साल पुरानी एक घटना को याद किया, जो लगभग इसी तरह हुई थी.
अंग्रेजी अखबार इकॉनमिक टाइम्स से बात करते हुए जावेद अली ने 18 अगस्त, 1988 की उस घटना को याद किया जब दिल्ली की जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी को केंद्रीय यूनिवर्सिटी का दर्जा देने के लिए लोकसभा में एक विधेयक लाया गया था. उन्होंने बताया कि इस दौरान यूनिवर्सिटी के दो छात्रों ने इसी तरह दर्शक दीर्घा से कागज फेंककर कुछ आपत्तियां जताई थी. इनमें से एक छात्र ख़ुद जावेद अली खान थे और दूसरे का नाम राज वशिष्ठ था जो उनका दोस्त था.
दर्शक दीर्घा से फेंक दिए थे पेपर
जावेद ने कहा कि यूनिवर्सिटी के महासचिव और अध्यक्ष होने के नाते हमें लगा कि इस विधेयक को कुछ प्रावधानों के खिलाफ आवाजाही उठाना जिम्मेदारी थी. उन्होंने बताया कि जब विधेयक लाया गया था तो उसमें कई छात्र और फ़ैकल्टी के सदस्य इस बात से खुश थे कि यूनिवर्सिटी को केंद्रीय दर्जा दिया जा रहा है, तो वहीं कई लोगों पढ़ाई का माध्यम सिर्फ़ उर्दू होने पर आपत्ति जताई थी. जिसके बाद हमने इसका विरोध करने का फ़ैसला लिया.
जावेद खान ने बताया कि घटना से एक दिन पहले हम दोनों तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष बलराम जाखड़ के आवास पर गए और विजिटर पास बनाने को कहा, हम छात्र थे तो उन्होंने हमारे पास बना दिए. जैसे ही बहस शुरू हुई, मैं और मेरे दोस्त ने लोकसभा कक्ष में कागजात नीचे फेंकना शुरू कर दिया. जिसके बाद सदन को स्थगित कर दिया गया और हम दोनों को संसद सुरक्षा द्वारा हिरासत में ले लिया गया.
जावेद अली ने बताई पूरी कहानी
जावेद खान ने बताया कि सुरक्षा कर्मचारियों ने हमें डांटा और पूछताछ शुरू की और हमारे पास की जांच की और पता लगाया कि यह किसकी सिफारिश पर बनाया था. जिसके बाद दोनों छात्रों को जाखड़ के सामने लाया गया वो इसकी अपराध की वजह जानना चाहते थे. इसके बाद हम दोनों ने घटना पर दुख जताया और अपनी बात रखी.
जावेद खान ने ने कहा, "हमारे बारे में पूरी जानकारी लेने के बाद लोकसभा अध्यक्ष ने हमें दोबारा ऐसा न करने की चेतावनी देकर छोड़ दिया क्योंकि हम छात्र थे. थोड़ी समय के बाद फिर से सदन शुरू हुआ और प्रस्ताव पारित हुआ कि हमें कड़ी चेतावनी देकर छोड़ दिया गया है. सुरक्षा कर्मियों ने हमें संसद परिसर में कभी नहीं आने की चेतावनी दी.
जावेद अली ने जाखड़ की उदारता को याद करते हुए कहा कि भगवान को कुछ और ही मंज़ूर था और 26 साल बाद 2014 में मैं सांसद बना. उन्होंने कहा कि अगर इन युवाओं की कोई आपराधिक पृष्ठभूमि नहीं है और उनके कोई गलत इरादे नहीं हैं, तो सरकार को ऐसे मामलों में प्राथमिकता पर ध्यान देना चाहिए.
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