हमीरपुर, एबीपी गंगा। बुंदेलखंड में हरित क्रांति के समय अमेरिका से आयी गाजर घास (पार्थेनियम हिस्टरोफोरस) अब यहां की फसलों और किसानों के लिए आफत का सबब बन रही है। इस घास की वजह से खेतों में फसलें बर्बाद हो रही हैं और किसान अस्थमा, एलर्जी और सांस संबंधित कई बीमारियों से ग्रसित हो रहे हैं। इस घास के एक बीज से लगभग 2 हजार घास के पेड़ देखते ही देखते तैयार हो जाते हैं। खास बात ये है कि इसे जानवर भी नहीं खाते हैं।


ये घास किसानों किसानों के लिए अभिश्राप बन गई है। इसे न किसी ने बोया है और न ही इसे कोई छूना पसंद करता है लेकीन फिर भी इसने हर जगह अपना कब्जा जमा रखा है। इस घास में छोटे-छोटे सफेद फूल होते हैं जो सूखने के बाद हवा के साथ उड़कर जहां पहुंचते है वहां अपने आप उग आते है। यह घास फसलों के बीच में भी आसानी से उग आती है जिसको नष्ट करना किसानों के लिए किसी आफत से कम नहीं है।


बुंदेलखंड के हमीरपुर जिले में नहीं बल्कि आस-पास के कई जिलो में भी इस गाजर घास ने अपने पैर पसार लिए हैं। इस घास की वजह से फसलों की पैदावार भी प्रभावित होती है। पर्यावरणविद की मानें तो इस घास का आगाज साल 1960 के दशक में हुआ था जब भारत में खाधान्न के लाले पड़े और भारत ने अमेरिका से मदद मांगी थी। अमेरिका ने भारत को लाखों टन गेहूं दिया था और इसी गेहूं के साथ पार्थेनियम हिस्टरोफोरस के बीज भारत में आ गये थे और आज इस घास का प्रकोप देश के कई हिस्सों में है।



कृषि अधिकारियों की मानें तो इस घास से बचाव का अभी तक कोई समुचित उपाय नहीं मिल पाया है लेकीन इसको जलाकर या फूल आने से पहले इसे उखाड़कर जमीन में दबा दिया जाए तो कुछ राहत जरूर पाई जाती सकती है। इस घास की सबसे बड़ी कमी यह है कि फसलों के बीच पैदा होकर नमी को खत्म कर देती है जिससे फसलों की पैदावार में गिरावट हो जाती है। दूसरी कमी ये है की इसको कोई भी जानवर नहीं खाता है कभी कभार अगर बकरियां इसे खा भी लेती हैं तो उनका दूध पूरी तरह कड़वा हो जाता है।


डाक्टरों की मानें तो इसके परागकण सांस के साथ अंदर जाकर ब्रॉन्कल अस्थमा, एलर्जी और सांस संबंधी (टीबी) जैसी गंभीर बीमारियों से ग्रसित कर देते हैं जो मौत का कारण भी बन सकती है। हमीरपुर में आलम ये है कि इन बीमारियों से पीड़ित कई किसान जिला अस्पताल अपना इलाज करवाने को भी पहुच रहे हैं।



अमेरिका द्वारा सौगात में मिली यह गाजर घास अब बुंदेलखंड के तबाह और बर्बाद हुए किसानों के लिए आफत बनी है। बुंदेलखंड जैसे सूखे क्षेत्र में यह घास यहां के खेतों की नमी को खत्म जमीन को बंजर बना रही है। यह घास किसानों को भी कई बीमारियों से ग्रसित कर रही है। कृषि वैज्ञानिक भी इससे बचाव का सही उपाय विकसित नहीं कर पाए हैं, जिसकी वजह से स्थिति और चिंताजनक बन गई है।