देहरादून, एबीपी गंगा। सड़क हादसों में ज्यादातर गाड़ियों की टक्कर का जिक्र होता है, जिनमें कई मौतें भी होती हैं। लेकिन ये बात सड़क दुर्घटना की हो गई। चौंकाने वाली बात तो तब होती है जब पैदल चलनेवाली यात्री सड़क हादसे का शिकार होते हैं। उत्तराखंड में सड़क हादसों में पैदल चलने वाले यात्री भी सुरक्षित नहीं हैं। एक आंकड़ों के मुताबिक 273 पैदल यात्री दो सालों में अपनी जान गंवा चुके हैं। हिमालयी राज्यों में हिमांचल प्रदेश के बाद उत्तराखंड में ये आंकड़ा सबसे ज़्यादा है, हिमांचल में दो सालों के दौरान 353 यात्रियों की पैदल चलते हुए मौत हुई है।


जहां एक ओर देश में पैदल यात्रियों की मौतों का आंकड़ा बढ़ा है, वहीं उत्तराखंड भी इससे अछूता नहीं है। प्रदेश की सड़कें पैदल यात्रियों के लिए बिल्कुल भी सुरक्षित नहीं हैं। देश में 2015 में 14 हजार के करीब सड़क पर पैदल चलने वाले लोगों की मौतें हुईं। वहीं वर्ष 2018 में यह आंकड़ा बढ़कर 22 हजार के करीब पहुंच गया है। उत्तराखंड की बात करें तो 2015 में 106 यात्रियों की मौत हुईं तो वहीं 2018 में 146 पैदल चलने वालों की सड़क हादसों में मौतें हुई हैं। इन आंकड़ों से ये निकल कर सामने आया है कि हर साल यह आंकड़ा बढ़ता जा रहा है। जिसकी वजह है यहां की सड़कों पर काम तो हुआ लेकिन पैदल चलने वालों के लिए कोई व्यवस्था नहीं बन पाई है। डीजी लॉ एंड आर्डर अशोक कुमार भी मानते हैं कि पैदल यात्रियों के मौत का आंकड़ा बढ़ा है जिसकी मुख्य वजह ओवरस्पीड और कोहरा है।


पैदल यात्रियों की सड़कों पर मौत का ये आंकड़ा इसलिए भी ज्यादा प्रमाणिक है कि क्योंकि सड़क परिवहन राजमार्ग मंत्रालय ने लोकसभा में दिया है। एक जानकारी के मुताबिक प्रदेश में पिछले 19 वर्षों में सड़कों की लंबाई तो बढ़ी, लेकिन उस गति से सड़कों के चौड़ीकरण का कार्य नहीं हो पाया।