(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
'पानी जिंदगानी है, गलत ये कहानी है' जानें- कैसे तीन पीढ़ियां हो गईं बर्बाद, हैरान करने वाली है ये रिपोर्ट
आगरा में पानी के नाम लोग जहर पीने को मजबूर हैं। फ्लोराइड युक्त पानी जिंदगी के लिए 'काल' बन गया है। 70 साल के बुजुर्ग से लेकर छोटे-छोटे बच्चे तक के बच्चे इस दंश को झेल रहे हैं।
आगरा, नितिन उपाध्याय। हुकूमतें बदलीं लेकिन आगरा के बरौली अहीर ब्लॉक के पचगाईं खेड़ा गांव की तस्वीर नहीं। उदासीनता और उपेक्षा के चलते यहां के अधिकांश लोगों की जिंदगी भागकर नहीं, बल्कि घिसट-घिसट कर गुजर रही है। कोई 20 साल से तो कोई दो साल से अपने पैरों पर खड़ा नहीं हो सका है। बरौली अहीर ब्लॉक के पचगाईं खेड़ा ग्राम पंचायत में तीन पीढ़ियों से अधिकांश लोगों की ऐसी ही हालत है। दशकों बाद भी इनकी लाचारी दूर नहीं हुई है। इनके लिए धरती की कोख का पानी अभिशाप बना हुआ है।
पानी में फ्लोराइड की अधिकता के चलते लगभग हर घर के एक न एक सदस्य के हाथ-पैरों की हड्डियां कमान की तरह से मुड़ गई हैं। पैरों में सूजन और दर्द तो लगभग हर शख्स की शिकायत है। 70 साल के बुजुर्ग से लेकर छोटे-छोटे बच्चे तक के बच्चे इस दंश को झेल रहे हैं।
'यहां पीने योग्य पानी की व्यवस्था है'...भीषण गर्मी में आपने यह तो जगह-जगह लिखा देखा होगा, लेकिन पचगाईं खेड़ा गांव में हैंडपम्पों पर लिखा है कि 'यह पानी पीने योग्य नहीं है।' पचगाईं खेड़ा ग्राम पंचायत के तीनों गांव खेड़ा, पचगाईं और पट्टी पचगाईं इन तीनों गांव में करीब 1200 से ज्यादा परिवार रहते हैं, लेकिन हर घर में पानी का प्रभाव नजर आता है।
पचगाईं खेड़ा ग्राम पंचायत में कई साल पहले प्रशासन ने सरकारी पानी की टंकियों पर लिख दिया था कि यहां का पानी पीने योग्य नहीं है। 'जहरीले' होते पानी का सेवन रोकने के लिए तो हैंडपम्पों पर लाल निशान तक लगा दिए हैं। लेकिन लोग इसी पानी को पीने के लिए मजबूर हैं। जल निगम ने समस्या के समाधान के लिए गांव में पानी की टंकियां भी रखवाईं, लेकिन इसमें भी फ्लोराइड काफी मात्रा में था। ऐसी स्थिति में जल निगम को अपनी ही टंकिंयों और हैंडपम्पों के पानी को फेल करना पड़ा। वर्तमान में पूरा गांव भूमिगत पानी पर ही निर्भर है। दूसरा कोई और स्त्रोत नहीं है। जल निगम सब कुछ जानते हुए भी गांव में पानी के लिए वैकल्पिक बंदोबस्त नहीं कर सका है।
केस-1 70 वर्ष से ज्यादा की उम्र की बादामी पिछले 20 साल से अपने पैरों पर खड़ी नहीं हो पाई हैं। पानी ने उनके दोनों पैर उसने छीन लिए हैं। शुरुआत में उनकी ऐसी हालत नहीं थीं। बताती हैं कि बचपन में उनके पैर बिलकुल ठीक थे। शादी के बाद जब वे पट्टी पचगाईं आईं तो उसके कुछ साल बाद से ही पैरों में तकलीफ शुरू हो गई।
केस-2 33 वर्षीय लोहरे पिछले दो साल से कमर के बल खिसककर चल रहा है। बताता है कि इससे पहले उसके पैरों में टेढ़ापन तो शुरू हो गया था, लेकिन चल-फिर सकता था। अब वह दैनिक कार्यों के लिए भी दूसरों पर निर्भर है। वह कहता है कि पानी की कोई दूसरा व्यवस्था नहीं है। ऐसे में मजबूरी में यही पानी पीना पड़ता है।
केस- 3 14 वर्षीय रोहित के तीन साल पहले हाथ और पैर उसका साथ छोड़ गए। उसकी मां चंद्रवती बताती हैं कि बचपन में वह बिलकुल ठीक था। मगर, कुछ साल पहले उसके हाथ-पैरों में दिक्कत होने लगी। चिकित्सक को दिखाया तो उसने पानी की वजह से यह दिक्कत बताई। अब उसका बेटा चल नहीं पाता है।
केस- 4 राजन सिंह की आंखों की रोशनी चली गई है, उम्र करीब 40 साल है, 5 बच्चे हैं। पानी ने जिन्दगी बर्बाद कर दी है, परचून की दुकान चलाकर जैसे तैसे पेट भरते हैं। उनका कहना है मजबूरी में ये पानी पड़ रहा है।।
केस- 5 रामचरन की उम्र 52 साल है, पूरा शरीर टेढ़ा पड़ा हुआ है। लेकिन इस समस्या का कोई समाधान सरकार ने नहीं किया है। लाठी लेकर चलते हैं।
केस- 6 रामा देवी की हालत सबसे ज्यादा खराब है। पूरा शरीर वक्र है। व्हील चेयर के जरिए जिन्दगी को घिसट रही हैं। न मुंह से ठीक से बोल पाती हैं और न ही ठीक से बैठ पाती हैं।
कम हो रही खेतों की उर्वरक क्षमता एक तरफ भूमिगत पानी की वजह से लोग परेशान हैं, दूसरी तरफ देवरी रोड स्थित सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट उनकी खेती को बर्बाद कर रहा है। इस ट्रीटमेंट प्लांट से गंदा पानी सीधे कच्चे नाले में छोड़ दिया जाता है, इसकी वजह से पट्टी खेड़ा के खेतों में फसल को नुकसान पहुंचता है। किसानों का कहना है कि केमिकल युक्त इस पानी की वजह से उनकी आधी फसल बर्बाद हो जाती है।
पचगाईं खेड़ा के प्रधान राधेश्याम कुशवाहा के मुताबिक उनकी ग्राम पंचायत के 1200 परिवारों में पानी से सभी परेशान हैं। शरीर में हड्डीयों में समस्या, आंखों की रोशनी, दांतों की समस्या समेत कई शरीरिक समस्या हैं। पानी इतना खराब है कि लोहे की कील को पानी में डाल दिया जाए, तो कुछ दिन में राख हो जाती है। बर्तनों में पानी पर परत जम जााती हैं । गंगाजल परियोजना का हमारे गांव तक विस्तार हो ताकि हमें भी पीने का शुद्ध पानी मिल सकेगा।
ग्रामीणों का यह भी कहना है कि 30 रुपये की बोतल खरीदकर पीना हर किसी के वश की बात नहीं है, इसलिए मजबूरन फ्लोराइड युक्त पानी पीने को मजबूर हैं। इस पानी से फर्नीचर गल रहे हैं, घर की दीवारें गल रही हैं और तो और कान के पर्दे भी गल गए हैं। और इसी वजह से गांव में कोई शादी भी करने को तैयार नहीं है। नई पीढ़ी पर इस पानी का ज्यादा असर है।
इस पूरे मसले पर फतेहपुर सीकरी सांसद राजकुमार चाहर चिंतित नजर आते हैं, उनका कहना है कि 'मेरे क्षेत्र में पानी की बड़ी समस्या है, यही वजह है कि बादशाह अकबर को भी अपनी राजधानी फतेहपुर सीकरी से दोबारा आगरा स्थानांतरित करनी पड़ी थी। पचगाईं खेड़ा में वाटर एटीएम लगवाये जा रहे हैं। पानी की समस्या को लेकर सीएम और पीएम से भी मिल चुका हूं। मेरी प्राथमिकता रहेगी कि पानी की समस्या का स्थायी समाधान निकाला जा सके।'