कानपुर, एबीपी गंगा: कानपुर छह महत्वपूर्ण जिलों का मण्डल मुख्यालय है यहां पर कमिश्नर, एडीजी जैसे वरिष्ठ अधिकारियों का कार्यालय है। कमिश्नर का ओहदा किसी विभाग के सचिव के बराबर होता है। यूपी के सबसे बड़े औद्योगिक शहर कानपुर के बड़े हिस्से में रहने वाले लोगों को प्रशासनिक कार्यों से कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन इतना होने के बाद भी शहर की बड़ी आबादी को समेटे कानपुर दक्षिण के रहने वाले लोग अपने जरूरी कार्यों के लिए कलेक्ट्रेट में आकर जूझते हैं।


सरकार ने किए प्रयास


पिछली कई सरकारों के कार्यकाल के दौरान दक्षिण के लोगों की समस्याओं को दूर करने के लिए एडीएम स्तर के अधिकारी के साथ एक पुलिस अधिकारी का कार्यालय खोले जाने का प्रस्ताव रखा गया था, जिसे लेकर सपा सरकार की तरफ से कुछ प्रयास भी किए गए थे।


क्या कहते हैं लोग


कानपुर दक्षिण के लोगों को खस्ताहाल यातायात व्यवस्था से जूझते हुए अपने हर जरूरी काम के लिए कानपुर कलेक्ट्रेट दौड़ना पड़ता है। बर्रा विश्व बैंक निवासी पूर्णेश तिवारी बताते है कि अगर उनके घर में कोई कार्यक्रम है और उस कार्यक्रम में वो डीजे लगवाना चालते हैं तो उनको डीजे बजवाने की परमीशन के लिए डीएम ऑफिस जाना पडता है, जो बर्रा से 15 किलोमीटर की दूरी पर है। सजेती की रहने वाली शान्ति देवी का कहना है कि उनकी पेंशन खाते में नहीं आ रही थी तो उनको 40 किलोमीटर से भी ज्यादा का सफर तय कर कलेक्ट्रेट जाना पड़ता है और अगर एक दिन में काम नहीं हुआ तो कई चक्कर भी लगाने पड़ जाते हैं।


बन चुका है चुनावी मुद्दा


कानपुर दक्षिण में कोई भी प्रशासनिक अधिकारी नहीं बैठता है। शहर की आधी आबादी कानपुर दक्षिण में निवास करती है जिनको हर छोटे बड़े काम के लिए बीच शहर बने कलेक्ट्रेट ऑफिस जाना पड़ता है। हालांकि सत्ता में आने से पहले भारतीय जनता पार्टी ने कानपुर दक्षिण को अलग जिला बनाने का मुद्दा उठाया था, लेकिन सत्ता में आने के बाद पार्टी इस मुद्दे को भूल गई। यहां की जनता आज भी प्रशासनिक स्तर पर बड़ी समस्या से जूझ रही है, अब देखना ये है कि इस बार के चुनाव में क्या ये मुद्दा फिर सुर्खियां बनता है नहीं।