Supreme Court on Greater Noida Land Compensation: एक पुरानी कहावत है कि जहां चाह होती है, वहां राह होती है. इस कहावत को सच करके दिखाया है ग्रेटर नोएडा के एच्छर गांव निवासी बृजेश भाटी और उनके चाचा ने जिन्होंने 32 साल तक मुआवजे की लड़ाई लड़ी और अंत में जीत हासिल की. इस जीत से पूरा परिवार खुश है और सुप्रीम कोर्ट का धन्यवाद अदा कर रहा है.
जमीन अधिग्रहण के मुआवजे से जुड़ा है मामला
दरसल, पूरा मामला जमीन अधिग्रहण के मुआवजे से जुड़ा हुआ है. साल 1989 में ग्रेटर नोएडा के एच्छर गांव की करीब 534 एकड़ जमीन अधिग्रहित की गई. अधिग्रहण के समय ये जमीन बुलंदशहर जिले में आती थी, जो अब ग्रेटर नोएडा में आ गई है. क्योकि, उस समय ग्रेटर नोएडा प्राधिकार की स्थापना नहीं हुई थी और 1989 में अधिग्रहण की गई जमीन का मुआवजा दो तरह से दिया गया था. जहां कासना गांव के किसानों को 65 रुपये प्रति वर्ग गज के हिसाब से मुआवजा दिया गया था तो वहीं एच्छर गांव के किसानों को 39 रुपये प्रति वर्ग गज के हिसाब से मुआवजा दिया गया था.
एक बराबर मुआवजे की मांग
कासना गांव के बराबर मुआवजे की मांग करते हुए एच्छर गांव के निवासी मुनिराम भाटी ने जिला न्यालय का दरवाजा खटखटाया लेकिन सफलता हाथ नहीं लगी. कुछ सालों बाद उनकी मौत हो गई, उसके बाद उनके बेटे पप्पू भाटी ने इस लड़ाई को आगे बढ़ाया और हाईकोर्ट में याचिका दायर की. लेकिन, 2017 में उनकी भी मौत हो गई और इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 16 सितंबर 2019 को उसे वापस रिफ्रेश कोर्ट में भेज दिया.
दादा और पिता की लड़ाई को आगे बढ़ाया
हाईकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ दादा और पिता की लड़ाई को आगे बढ़ाते हुए पोते शशिंदर भाटी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर सुप्रीम कोर्ट के आर्डर का हवाला देते हुए कहा कि माननीय न्यायालय ने कहा है कि न्यूनतम मुआवजा 65 रुपये किसानों को दिया जाए. एक गांव के किसानों को 65 रुपये के हिसाब से मुआवजा और वहीं दूसरे गांव के किसानों को 39 रुपये के हिसाब से मुआवजा देना ठीक नहीं है जबकि दोनों गांवों की जमीन एक साथ है.
गांव में खुशी का माहौल
सुप्रीम कोर्ट ने 2019 में दाखिल याचिका पर गौर करते हुए 16 जुलाई 2021 को फैसला सुनाया की किसानों को 65 रुपये के हिसाब से मुआवजा दिया जाए. जिसमें 39 रुपये के हिसाब से मुआवजा दिया जा चुका है, इसलिए 26 रुपये बढ़ाकर मुआवजा तत्काल दिया जाय. 32 सालों के संघर्ष के बाद शीर्ष अदालत ने जमीन का मुआवजा 39 रुपये से बढ़ाकर 65 रुपये प्रति वर्ग गज करने का आदेश दिया है. अब मुनिराम भाटी के पोते शशिंदर भाटी का कहना है कि यह न्याय उनके दादा और पिता को मिला है. कोर्ट के फैसले से गांव में खुशी का माहौल है. हर कोई माननीय न्यायालय का धन्यवाद अदा कर रहा और कह रहा कि हर पीड़ित को न्याय असल में न्यायालय से ही मिलता है.
जीत मायने रखती है
हालांकि, अब इस जमीन का कितना मुआवजा बढ़ाकर देना है वो अब प्रशासन को तय करना है. वहीं, याचिकाकर्ता का कहना है कि हमारे लिए पैसा मायने नहीं रखता, जीत मायने रखती है. इस जीत के बाद आगे किसानों की राह और आसान होगी.
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