Phulpur By Election Result 2024: संगम नगरी प्रयागराज की फूलपुर विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में बीजेपी के दीपक पटेल ने पार्टी को जीत की हैट्रिक लगाने के मौका दिया है. ख़ास बात यह है कि छह महीने पहले हुए लोकसभा चुनाव में बीजेपी को फूलपुर विधानसभा सीट पर तकरीबन अठारह हज़ार वोटों से करारी हार का सामना करना पड़ा था, लेकिन योगी और केशव मौर्य की पार्टी ने छह महीने में ही इस हार का बदला लेकर यहां एक बार फिर कमल खिला दिया. 


नतीजों से साफ़ है कि बीजेपी ने यहां न सिर्फ अखिलेश यादव के पीडीए के फार्मूले को पूरी तरह ध्वस्त कर दिया, बल्कि इंडिया गठबंधन के घटक दलों की एकजुटता की भी हवा निकाल दी. समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष श्याम लाल पाल फूलपुर विधानसभा सीट से ही वोटर हैं, ऐसे में उनके नेतृत्व और पाल बिरादरी के वोटरों को अपने पाले में लाने की अखिलेश यादव की कवायद भी सवालों के घेरे में है. 


आइए जानते हैं कि फूलपुर विधानसभा सीट पर बीजेपी की जीत और समाजवादी पार्टी की हार की पांच - पांच प्रमुख वजहें क्या रही : 


बीजेपी की जीत की पांच बड़ी वजह -


1- फूलपुर सीट पर बीजेपी का टिकट पाने के लिए पचास से ज़्यादा दावेदार थे, लेकिन पार्टी ने सबसे मजबूत दावेदार दीपक पटेल पर ही दांव लगाया. दीपक पटेल के नाम का एलान होते है बीजेपी यहां सीधी लड़ाई में आ गई और चुनाव आते -आते माहौल पूरी तरह उसके पक्ष में आ गया. साफ़ सुथरी और जुझारू छवि वाले युवा चेहरे पर लोगों ने भरोसा जताया. मां केशरी देवी के कार्यकाल में उनकी सक्रियता भी काफी काम आई. 


2- पार्टी ने यहां शुरू से ही आक्रमक अंदाज़ में प्रचार किया. सीएम योगी आदित्यनाथ ने दोनों चुनावी सभाओं में बटोगे तो कटोगे के नारे के ज़रिये जातियों का बैरियर तोड़ने का काम किया तो डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने गैर यादव ओबीसी जातियों को एकजुट करने के लिए यहां कई दिनों तक डेरा डाला और अपने मकसद में कामयाब रहे. 


3- बीजेपी प्रत्याशी दीपक पटेल का परिवार चुनावी मैनेजमेंट में माहिर माना जाता है. उनके बड़े भाई दिनेश पटेल ने पार्टी के साथ मिलकर हर बूथ के लिए अलग रणनीति बनाई और माइक्रो मैनेजमेंट करते हुए न सिर्फ घर - घर पैठ बनाई, बल्कि सपा और बसपा के कोर वोटर्स में भी जमकर सेंधमारी कराई. दलितों के आधे वोट हासिल किये. पंद्रह से बीस फीसदी यादव वोटों में सेंधमारी कराई तो दस फीसदी के करीब मुस्लिम वोट भी पाने में कामयाब रहे. दिनेश पटेल ने हर दल के ग्राम प्रधान और बीडीसी सदस्यों से संपर्क किया और उनके कुछ वोट भी पार्टी को दिलाए. 


4- पार्टी की एकजुटता. दीपक पटेल के नाम पर पार्टी कार्यकर्ता पूरी तरह एकजुट रहे और सभी ने कमल का फूल खिलाने का संकल्प लिया. पार्टी कार्यकर्ताओं की एकजुटता जीत का बड़ा आधार बनी. हालांकि कुछ प्रमुख नेताओं और पदाधिकारियों की भूमिका सवालों के घेरे में रही, लेकिन कार्यकर्ताओं की एकजुटता और सक्रियता ने मुश्किल लड़ाई को आसान बना दिया. कार्यकर्ताओं को एकजुट और सक्रिय करने में डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य की अहम भूमिका रही. 


5- विकास - क़ानून व्यवस्था और सुशासन बनाम गुंडाराज - माफियाराज के नैरेटिव ने खूब असर दिखाया. आधी आबादी पर ज़्यादा फोकस करने की रणनीति भी खासी कारगर साबित हुई. हर वर्ग की महिला वोटरों ने सीएम योगी के नाम और चेहरे पर भरोसा जताया. दीपक पटेल के मां और फूलपुर की निवर्तमान सांसद केशरी देवी पटेल और भाभी लक्ष्मी पटेल के साथ ही पार्टी की महिला नेताओं ने आधी आबादी के बीच ज़बरदस्त पैठ बनाई. केंद्र और प्रदेश सरकार की योजनाओं के ज़रिये वोटरों के बीच सबका साथ - सबका विकास का नारा भी खूब काम आया. सपा विधायक पूजा पाल और माफिया अतीक की साजिश से मारे गए उमेश पाल की पत्नी जया पाल ने भी बीजेपी को फायदा पहुंचाया.


समाजवादी पार्टी की हार की पांच बड़ी वजह : 
1- बेहतर उम्मीदवार का सेलेक्शन नहीं करना. फूलपुर में समाजवादी पार्टी के पास तमाम ऊर्जावान और जातीय समीकरण में फिट बैठने वाले चेहरे थे, लेकिन पार्टी ने बुजुर्ग मुजतबा सिद्दीकी पर दांव लगाकर पार्टी कार्यकर्ताओं और समर्थकों के उत्साह को ठंडा कर दिया. तमाम जगहों पर विरोध के बावजूद उम्मीदवार को नहीं बदलना पार्टी को भारी पड़ गया. वोटरों से लेकर पार्टी के ही तमाम कार्यकर्ता मुजतबा सिद्दीकी के नाम को लेकर आखिर तक नाखुश नज़र आए और पार्टी को खामियाजा भुगतना पड़ गया. यहां जमकर भितरघात भी हुआ है. मुस्लिम प्रत्याशी देने की वजह से ध्रुवीकरण भी हुआ. 


2- इंडिया गठबंधन के दूसरे घटक दल कांग्रेस से सपा नेताओं का कहीं कोई तालमेल ग्राउंड ज़ीरो पर नज़र नहीं आया. कांग्रेस पार्टी का कोई भी बड़ा या स्थानीय नेता फूलपुर में प्रचार के लिए नहीं पहुंचा. कांग्रेस जिलाध्यक्ष सुरेश यादव का बगावत कर चुनाव लड़ना भी समाजवादी पार्टी के लिए मुसीबत का सबब बना. कांग्रेस पार्टी की आख़िरी वक्त तक दावेदारी भी सपा प्रत्याशी और पार्टी को टेंशन देती रही. प्रत्याशी और पार्टी ने कांग्रेस के साथ न कोई कोआर्डिनेशन बैठक की और न ही प्रचार में उसकी मदद लेने की कोशिश की. 


3- फूलपुर समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष श्याम लाल पाल की भी सीट है. वह यहां कई दिनों तक रहे भी, लेकिन न तो चुनाव अभियान को रफ़्तार दे सके और न ही कार्यकर्ताओं को एकजुट कर सके. राष्ट्रीय महासचिव इंद्रजीत सरोज, विधायक संदीप पटेल, हाकिम लाल बिंद और एमएलसी  डा० मान सिंह यादव  ज़रूर पूरे चुनाव में सक्रिय रहे, लेकिन पूर्व सांसद कुंवर रेवती रमण सिंह और पूर्व सांसद धर्मराज पटेल समेत तमाम दूसरे नेता कहीं नज़र नहीं आए. पार्टी के ज़िम्मेदार लोगों ने नाराज़ और निष्क्रिय नेताओं को बाहर निकालने की कोई कोशिश भी नहीं की. कौशाम्बी की विधायक पूजा पाल ने तो बीजेपी के लिए वोट मांगे.  


4-  फूलपुर को लेकर समाजवादी पार्टी के पास न तो कोई ठोस रणनीति थी और न ही स्थानीय व परिस्थितियों के मुताबिक़ मुद्दे तय किये गए. मैनेजमेंट का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि यादव और मुस्लिम वोटरों वाले बूथों पर भी सन्नाटा पसरा रहा. अपने कोर वोटर्स को घर से निकालने की कोई ठोस कोशिश ही नहीं हुई. PDA के वोटरों को भी एकजुट रखने की कोशिश नाकाम रही. मीडिया और सोशल मीडिया का कोई उपयोग नहीं किया जा सका. महंगाई  - बेरोज़गारी और पेपर लीक जैसे मुद्दों के साथ ही प्रतियोगी छात्रों के आंदोलन का भी फायदा पार्टी नहीं उठा सकी. 


5- प्रत्याशी और पार्टी पदाधिकारियों के बीच तालमेल का अभाव रहा. प्रत्याशी मुजतबा सिद्दीकी का एक बयान भी उनके लिए सिरदर्द बना. शिवपाल यादव और डिम्पल यादव जैसे स्टार प्रचारकों की कमी भी पार्टी को खूब खली. अयोध्या के सांसद अवधेश पासी फतेहपुर के सांसद नरेश उत्तम पटेल समेत ज़्यादातर स्टार प्रचारक पूरे चुनाव में कहीं नज़र नहीं आए. फूलपुर की परिस्थितियों के आधार पर कहा जा सकता है समाजवादी पार्टी यहां हवा में चुनाव लड़ती रही और उसने जीत वाली थाली बीजेपी को तोहफे के तौर पर परोस दी. यहां समाजवादी पार्टी विपक्षी उम्मीदवार दीपक पटेल के मैनेजमेंट के सामने कहीं नहीं टिक सकी. 


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